Monday, September 23, 2019

उद्धव-कृष्ण संवाद-3

उद्धव-कृष्ण संवाद-3
         उद्धव के इस प्रश्न पर कृष्ण ने मुसकुराते हुए उनके कन्धे पर हाथ रखा और बोले, “प्रिय सखा, वृन्दावन गोकुल में कोई मेरे प्रेम के लिए व्याकुल नहीं है, सब उस आनंद को ढूंढ रहे जो मैंने उनको दिया और जो उन्होंने मेरे साथ बिताए गए समय में पाया | कुछ मेरे बचपन की लीलाओं के आनंद के अनुभव को याद कर तड़प रहे तो कुछ मेरे संग की गयी शैतानियों और क्रीड़ाओं को याद कर विक्षिप्त से दिखते हैं तुम्हें |”
                    श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया  -  “ वास्तविकता तो यह है कि गोपियाँ भी मुझसे प्रेम के कारण व्याकुल नहीं हैं या मुझसे विछोह के कारण व्याकुल नहीं है। वो व्याकुल हैं उस रस के कहीं चले जाने से जो उनको पूर्णता प्रदान करता था | अगर उन्होंने प्रेम किया होता तो वो सभी की सभी अभी भी उस प्रेम का आनंद ले रही होती | प्रेम सिर्फ और सिर्फ आनंदमय है, उसमें व्यथित होने की कोई सम्भावना ही नहीं है | व्यथा या दुःख केवल मुझसे दूरी का है, मेरे इस शरीर से दूरी का है अन्यथा मैं तो प्रत्येक स्थान और प्रत्येक प्राणी में हूँ और वे सभी मुझमें है|”
        “प्रेम समर्पण का नाम है ना कि किसी परआधिपत्य स्थापित करने का | प्रेम जीवन को जीने का नाम है ना कि किसी को प्राप्त कर उस पर अधिकार कर लेने का | प्रेम तो केवल एक भावना है, पारलौकिक है, सर्वज्ञ है, सर्वस्व है,वह केवल किसी एक व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं | अगर आपकी भावना सीमित है तो फिर वह प्रेम नहीं है । आज मुझसे प्रीत को पाने को किये गए जिस त्याग को वो याद कर रोते हैं वो मात्र प्रेम रुपी यज्ञ में एक आहुति थी, जो कि यज्ञवेदी की प्रेमरूपी अग्नि को प्रज्वलित रखने के लिए अति आवश्यक है |”
      “उन्हें मैं निष्ठुर लगता होऊंगा, निर्मोही भी कहते होंगे वो मुझे | पर अब परिस्थितियाँ पहले जैसी नहीं रही, न ही मैं वो ही पहले वाला ग्वाला कान्हा हूँ | अब मैं एक राज्य का उत्तराधिकारी हूँ, अब मेरे ऊपर पूर्ण राज्य की प्रजा के पालन की जिम्मेदारी है | उन्हें जिस कृष्ण से प्रेम था, वो सभी जिम्मेदारियों से मुक्त था | आज का कृष्ण प्रजा पालक है, तब का कृष्ण सिर्फ एक नटखट बालक था |”
        उद्धव चकित थे इस कृष्ण को देख कर | पर कृष्ण अभी भी मुसकुरा रहे थे | कृष्ण ने उद्धव के दोनों कंधों पर अपने दोनों हाथ रखे और मुसकुराते हुए उद्धव को कहा, “मेरे प्रिय सखा उद्धव, जीवन एक उत्सव है, इसके हर पल को अपने हिस्से की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ साथ प्रेम पूर्वक हर्षौल्लास से जीना चाहिए | यही जीवन का मूल सार है |”
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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