अलख निरंजन
‘अलख निरंजन' क्या है?
दत्तात्रेय भगवान का एक प्रचलित जयघोष है ‘अलख निरंजन’।अलख निरंजन का भावार्थ क्या है?
"अलख" शब्द का अर्थ है, अगोचर अर्थात जिसे स्थूल दृष्टि से देखा नहीं जा सके। लख शब्द लक्ष का अपभ्रंश है।लक्ष का तात्पर्य देख पाने की शक्ति से है। अलक्ष यानी ऐसा जिसे हम सामान्य नेत्रों से देख ही न पाएं, सामान्य बुद्धि जिसे समझ ही न पाए। वह इतना चमकीला इतना तेजस्वी है कि उसे देख पाना सहज संभव नहीं।
"निरंजन" शब्द बना है, नि: और अंजन से। अंजन कहते हैं, काजल को।काजल काला होता है।यहां काला रंग अंधकार का भाव लिए हुए है अर्थात अज्ञान।इस प्रकार निरंजन का अर्थ हुआ,अज्ञान का न होना यानि अज्ञान का नष्ट हो जाना अर्थात ज्ञान हो जाना।
इस प्रकार ‘अलख निरंजन’ का भाव हुआ, ज्ञान का ऐसा प्रकाशमान तेज, जिसे देख पाना संभव न होते हुए भी उसका प्रत्यक्ष साक्षात्कार होना,अज्ञान की कालिमा से मुक्त होकर ज्ञान में प्रवेश करना।
इसका एक अर्थ और भी बताया जाता है-
अघोरपंथियों के अनुसार अलख का अर्थ होता है जगाना (या पुकारना) और निरंजन का अर्थ होता है अनंत काल का स्वामी…अलख निरंजन का घोष करके वे कहते हैं- हे! अनंतकाल के स्वामी जागो, देखो हम आपको पुकार रहे हैं।
अलख का अर्थ है अगोचर; जो देखा न जा सके।
निरंजन परमात्मा को कहते हैं। अतः 'अलख निरंजन' का अर्थ यह भी हुआ- "परमात्मा जिन्हें देखा न जा सके पर वह सब जगह व्याप्त हैं।" परमात्मा सब जगह होने की बात को विभिन्न प्रकार से कहा जा सकता है जैसे वासुदेव: सर्वम् , सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् आदि।
आप सभी को रक्षा बंधन और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
अभी अल्प प्रवास पर अमेरिका आया हुआ हूँ। परसों अर्थात 17 अगस्त की रात्रि को स्वदेश के लिए प्रस्थान करना है, अतः लेखन को यहीं विराम देना होगा। इस बार प्रवास की अवधि में स्वाध्याय और सत्संग, दोनों का अच्छा अवसर और लाभ मिला।स्वाध्याय में विशेष तौर पर श्री मद्भागवत महापुराण के ग्यारहवें स्कंध का अध्ययन रहा, जिसमें उद्धव-श्री कृष्ण प्रसंग है। इसी स्कंध में दत्तात्रेय भगवान के 24 गुरुओं का प्रसंग है, जिस पर पिछली श्रृंखला आधारित थी।
दूसरी बात:- चिन्मय मिशन के बारे में आचार्य श्री गोविंद राम जी शर्मा से प्रायः चर्चा होती रहती थी परंतु इस मिशन के बारे में मुझे ज्यादा अनुभव नहीं था। हाँ, कुछ अध्ययन स्वामी श्री चिन्मयानंद जी की गीता की टीका का भी किया था परंतु इस बार ऑकलैंड (कैलिफोर्निया) में स्वामी श्री चिन्मयानंदजी के शिष्य और स्वामी श्री तेजोमयानन्द जी के साथ रहे श्री जिम गिलमैन से सत्संग का सुअवसर मिला।लगभग तीन सप्ताह उनके Hindu spirituality study group के सत्संग कार्यक्रमों में भाग लिया।इस अवधि में group में अद्वैत वेदांत पर विशेष रूप से चर्चा हुई। श्री जिम गिलमैन से ही अवधूत गीता, कठोपनिषद, विवेक चूड़ामणि और अष्टावक्र गीता पर गंभीर विचार विमर्श हुआ।समय मिलते ही आपसे पुनः ब्लॉग के माध्यम से भेंट होगी, तब तक आज्ञा चाहूंगा। आप सभी का साथ बने रहने के लिए आभार और प्रणाम।
।।हरि:शरणम्।।
‘अलख निरंजन' क्या है?
दत्तात्रेय भगवान का एक प्रचलित जयघोष है ‘अलख निरंजन’।अलख निरंजन का भावार्थ क्या है?
"अलख" शब्द का अर्थ है, अगोचर अर्थात जिसे स्थूल दृष्टि से देखा नहीं जा सके। लख शब्द लक्ष का अपभ्रंश है।लक्ष का तात्पर्य देख पाने की शक्ति से है। अलक्ष यानी ऐसा जिसे हम सामान्य नेत्रों से देख ही न पाएं, सामान्य बुद्धि जिसे समझ ही न पाए। वह इतना चमकीला इतना तेजस्वी है कि उसे देख पाना सहज संभव नहीं।
"निरंजन" शब्द बना है, नि: और अंजन से। अंजन कहते हैं, काजल को।काजल काला होता है।यहां काला रंग अंधकार का भाव लिए हुए है अर्थात अज्ञान।इस प्रकार निरंजन का अर्थ हुआ,अज्ञान का न होना यानि अज्ञान का नष्ट हो जाना अर्थात ज्ञान हो जाना।
इस प्रकार ‘अलख निरंजन’ का भाव हुआ, ज्ञान का ऐसा प्रकाशमान तेज, जिसे देख पाना संभव न होते हुए भी उसका प्रत्यक्ष साक्षात्कार होना,अज्ञान की कालिमा से मुक्त होकर ज्ञान में प्रवेश करना।
इसका एक अर्थ और भी बताया जाता है-
अघोरपंथियों के अनुसार अलख का अर्थ होता है जगाना (या पुकारना) और निरंजन का अर्थ होता है अनंत काल का स्वामी…अलख निरंजन का घोष करके वे कहते हैं- हे! अनंतकाल के स्वामी जागो, देखो हम आपको पुकार रहे हैं।
अलख का अर्थ है अगोचर; जो देखा न जा सके।
निरंजन परमात्मा को कहते हैं। अतः 'अलख निरंजन' का अर्थ यह भी हुआ- "परमात्मा जिन्हें देखा न जा सके पर वह सब जगह व्याप्त हैं।" परमात्मा सब जगह होने की बात को विभिन्न प्रकार से कहा जा सकता है जैसे वासुदेव: सर्वम् , सर्वं खल्विदं ब्रह्मम् आदि।
आप सभी को रक्षा बंधन और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
अभी अल्प प्रवास पर अमेरिका आया हुआ हूँ। परसों अर्थात 17 अगस्त की रात्रि को स्वदेश के लिए प्रस्थान करना है, अतः लेखन को यहीं विराम देना होगा। इस बार प्रवास की अवधि में स्वाध्याय और सत्संग, दोनों का अच्छा अवसर और लाभ मिला।स्वाध्याय में विशेष तौर पर श्री मद्भागवत महापुराण के ग्यारहवें स्कंध का अध्ययन रहा, जिसमें उद्धव-श्री कृष्ण प्रसंग है। इसी स्कंध में दत्तात्रेय भगवान के 24 गुरुओं का प्रसंग है, जिस पर पिछली श्रृंखला आधारित थी।
दूसरी बात:- चिन्मय मिशन के बारे में आचार्य श्री गोविंद राम जी शर्मा से प्रायः चर्चा होती रहती थी परंतु इस मिशन के बारे में मुझे ज्यादा अनुभव नहीं था। हाँ, कुछ अध्ययन स्वामी श्री चिन्मयानंद जी की गीता की टीका का भी किया था परंतु इस बार ऑकलैंड (कैलिफोर्निया) में स्वामी श्री चिन्मयानंदजी के शिष्य और स्वामी श्री तेजोमयानन्द जी के साथ रहे श्री जिम गिलमैन से सत्संग का सुअवसर मिला।लगभग तीन सप्ताह उनके Hindu spirituality study group के सत्संग कार्यक्रमों में भाग लिया।इस अवधि में group में अद्वैत वेदांत पर विशेष रूप से चर्चा हुई। श्री जिम गिलमैन से ही अवधूत गीता, कठोपनिषद, विवेक चूड़ामणि और अष्टावक्र गीता पर गंभीर विचार विमर्श हुआ।समय मिलते ही आपसे पुनः ब्लॉग के माध्यम से भेंट होगी, तब तक आज्ञा चाहूंगा। आप सभी का साथ बने रहने के लिए आभार और प्रणाम।
।।हरि:शरणम्।।
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