Sunday, August 4, 2019

गुरु-19

गुरु-19
         मनुष्य के साथ सबसे बड़ी विडंबना है कि वह अपनी पसंद की वस्तुओं को इक्कट्ठा करता है। एक दिन यही वस्तु संग्रह उसके दु:ख का बहुत बड़ा कारण बनता है। हमारी सुख की चाहना ही हमें संग्रह करने को बाध्य करती है परंतु हम यह भूल जाते हैं कि संग्रह  ही दुःख का जनक है। संग्रह के कारण उस संग्रहित वस्तुओं पर सदैव ही दूसरों की नज़र बनी रहती है और अवसर पाकर वह उनको अपने अधिकार में करना चाहता है। अगर वह उन्हें किसी भी प्रकार अधिकृत कर भी लेता है, तो फिर उसके लिए भी एक दिन वह संग्रह दुःख का कारण बन जाता है। अकिंचन मनुष्य, जिसकी कोई चाहना ही नहीं है, वह संग्रह में विश्वास ही नहीं करता।यहां तक कि वह किसी भी बात का मानसिक संग्रह तक भी नहीं करता। यही कारण है कि चाहना रहित पुरुष सदैव सुखी रहता है। अतः अकिंचन भाव युक्त पुरुष ही परमात्मा को पाने का अधिकारी होता है।
           यह ज्ञान दत्तात्रेयजी ने अपने 18वें गुरु कुरर पक्षी से लिया। कैसे लिया? इसके पीछे भी एक वृतांत है। एक कुरर पक्षी का पेट भर हुआ था फिर भी ताज़ा मांस के एक टुकड़े को पड़े देखकर मन ललचा गया। बाद में खा लेने की सोचकर उसने वह टुकड़ा अपनी चोंच में उठा लिया। वह उसको छुपाने के लिए कोई सुरक्षित स्थान की तलाश कर रहा था।बस, इतना ही पर्याप्त था, उसके जीवन में दुःख को प्रारम्भ करने के लिए। दूसरे पक्षियों ने जब उसकी चोंच में वह मांस का टुकड़ा देखा, तो सभी छीनने के लिए उसके पीछे पड़ गए। अब वह आगे आगे, शेष सभी उसके पीछे पीछे। चोंच मारकर सब उसे घायल कर रहे थे। वह पीड़ा से व्याकुल था। आखिर उसकी चोंच से वह मांस का टुकड़ा नीचे गिर गया। मांस के उस टूकड़े के छूटते ही सभी अन्य पक्षियों ने उसको पीड़ा देना भी छोड़ दिया और उस मांस के टुकड़े को लेने उस ओर चले गए। तब उस कुरर पक्षी को यह अनुभव हुआ कि झगड़ा व्यक्तिगत न होकर अधिग्रहित किये गए मांस के उस छोटे से टुकड़े के लिए था, जिसे उसने भविष्य में खाने के लिए संग्रहित करने का प्रयास किया था।उसकी समझ में आ गया था कि संग्रह ही दुःख का कारण है।
         दत्तात्रेयजी ने उस दिन कुरर पक्षी से सीख ली कि मनुष्य को कभी भी संग्रह नहीं करना चाहिए अन्यथा उसके जीवन से दुःखों का निवारण कभी भी नहीं हो पायेगा।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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