अवधूत
अवधूत का अर्थ होता है, जीवनमुक्त ज्ञानी। अवधूत गीता में दत्तात्रेयजी ने "अवधूत-गीता"के अंतिम अध्याय में अवधूत शब्द की व्याख्या की है।वे कहते हैं कि अवधूत शब्द निम्न चार अक्षरों से मिलकर बना है:अ+व+धू+त।इनका विस्तृत अर्थ निम्न प्रकार है-
अवधूत में 'अ' का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
आशापाशविनिर्मुक्त आदिमध्यान्त निर्मलः।
आनन्दे वर्तते नित्यमकारं तस्य लक्षणम्।।8/6।।
अ--
--जो व्यक्ति "आशा" पाश से मुक्त है।
--जो व्यक्ति "आदि, मध्य और अंत" सब ओर से निर्मल हो।
--जो नित्य ही "आनंद" में मग्न रहता हो।
अवधूत में 'व' का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
वासना वर्जित येन वक्तव्यं च निरामयम् ।
वर्तमानेषु वर्तेत वकारं तस्य लक्षणम् ।।8/7।।
व--
--जिसने "वासना" का अंत कर दिया हो।
--जिसका "वक्तव्य"राग-द्वेष से रहित हो।
--जो सदैव "वर्तमान"में रहता हो।
अवधूत में 'धू' के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
धूलोधूसरगात्राणि धूतचित्तो निरामयः ।
धारणाध्याननिर्मुक्तो धूकार स्तस्य लक्षणम् ।।8/8।।
धू--
--"धूलधूसर" ही जिसके अंग हो।
--जिसका "धूतचित्त"हो।जिसका मन निर्मल हो चुका हो।
--जो "धारणा, ध्यान" आदि क्रियाओं से मुक्त हो गया हो।
तत्वचिंता धृतायेन चिंताचेष्टा विवर्जितः।
तमोsहंकार निर्मुक्तस्तकारस्तस्य लक्षणम्।।8/9।।
अवधूत में "त" के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
त--
--जिसने "तत्व चिंतन"को ही धारण किया हो।
--जिसने समस्त सांसारिक चिंता व चेष्टा का "त्याग" कर दिया हो।
--जो "तम रूपी अहंकार" से रहित हो।
दत्तात्रेयजी का एक और कथन है: "अलख निरंजन"।
कल अलख निरंजन के बारे में-
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
अवधूत का अर्थ होता है, जीवनमुक्त ज्ञानी। अवधूत गीता में दत्तात्रेयजी ने "अवधूत-गीता"के अंतिम अध्याय में अवधूत शब्द की व्याख्या की है।वे कहते हैं कि अवधूत शब्द निम्न चार अक्षरों से मिलकर बना है:अ+व+धू+त।इनका विस्तृत अर्थ निम्न प्रकार है-
अवधूत में 'अ' का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
आशापाशविनिर्मुक्त आदिमध्यान्त निर्मलः।
आनन्दे वर्तते नित्यमकारं तस्य लक्षणम्।।8/6।।
अ--
--जो व्यक्ति "आशा" पाश से मुक्त है।
--जो व्यक्ति "आदि, मध्य और अंत" सब ओर से निर्मल हो।
--जो नित्य ही "आनंद" में मग्न रहता हो।
अवधूत में 'व' का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
वासना वर्जित येन वक्तव्यं च निरामयम् ।
वर्तमानेषु वर्तेत वकारं तस्य लक्षणम् ।।8/7।।
व--
--जिसने "वासना" का अंत कर दिया हो।
--जिसका "वक्तव्य"राग-द्वेष से रहित हो।
--जो सदैव "वर्तमान"में रहता हो।
अवधूत में 'धू' के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
धूलोधूसरगात्राणि धूतचित्तो निरामयः ।
धारणाध्याननिर्मुक्तो धूकार स्तस्य लक्षणम् ।।8/8।।
धू--
--"धूलधूसर" ही जिसके अंग हो।
--जिसका "धूतचित्त"हो।जिसका मन निर्मल हो चुका हो।
--जो "धारणा, ध्यान" आदि क्रियाओं से मुक्त हो गया हो।
तत्वचिंता धृतायेन चिंताचेष्टा विवर्जितः।
तमोsहंकार निर्मुक्तस्तकारस्तस्य लक्षणम्।।8/9।।
अवधूत में "त" के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
त--
--जिसने "तत्व चिंतन"को ही धारण किया हो।
--जिसने समस्त सांसारिक चिंता व चेष्टा का "त्याग" कर दिया हो।
--जो "तम रूपी अहंकार" से रहित हो।
दत्तात्रेयजी का एक और कथन है: "अलख निरंजन"।
कल अलख निरंजन के बारे में-
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
अद्भुत ज्ञान, निर्मोही निर्मुक्त जीवन के लिए, धन्यवाद प्रभु जी
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