भगवान दत्तात्रेय
हमने अभी तक श्री मद्भागवत महापुराण में वर्णित भगवान दत्तात्रेय के गुरुओं की चर्चा की है। आइए अब जानते हैं कि दत्तात्रेय कौन थे? भागवत महापुराण के अनुसार मनु और शतरूपा के पांच संताने हुई, दो पुत्र और तीन पुत्रियां। प्रियव्रत और उत्तानपाद नाम के दो पुत्र हुए तथा आकूति, देवहूति और प्रसूति नामक तीन पुत्रियां हुई । उत्तानपाद के पुत्र श्रीहरि के महान भक्त ध्रुव से हम परिचित हैं ही। मनु शतरूपा की तीन पुत्रियों में से सबसे बड़ी आकूति का विवाह रूचि प्रजापति के साथ, मँझली पुत्री देवहूति का कर्दम ऋषि के साथ और सबसे छोटी पुत्री प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ।दक्ष प्रजापति और प्रसूति की पुत्री सती थी जिनका विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ।
मनु और शतरूपा की मँझली पुत्री देवहूति और कर्दम ऋषि के एक पुत्र और नौ कन्याएं हुई। इनकी संतानों में सबसे छोटे उनके पुत्र कपिल के रूप में स्वयं विष्णु भगवान अवतरित हुए, जिन्होंने अपनी माता देवहूति को ज्ञान दिया। कपिलजी के अतिरिक्त इनकी नौ कन्याओं थी जिनके नाम थे: कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती और शान्ति । दूसरे क्रम की कन्या अनुसुइया का विवाह अत्रि ऋषि के साथ हुआ,जिनके पुत्र दत्तात्रेयजी हुए।
अत्रि पत्नी अनुसुइया शास्त्रों में सती अनुसुइया के नाम से प्रसिद्ध हैं।उन्होंने साधुवेश में भिक्षा मांगने आये त्रिदेव को दूध पीते बच्चे बना दिये थे। साधुओं का वेश बनाये ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अनुसूइया से निःवस्त्र होकर गोद में बिठाकर भोजन कराने का आग्रह किया। अनुसूइया ने अपने पतिव्रत धर्म के बल से उन तीनों को शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और फिर उन्हें निर्वस्त्र होकर गोद में लेकर दूध पिलाने लगी।जब ब्रह्माणी, लक्ष्मी और रुद्राणी के पतिदेव देर तक वापिस नहीं लौटे तो वे उनकी तलाश में अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंची । तब सती अनुसूइया को उन तीनों की वास्तविकता का पता चला।सती अनुसूइया ने उन शिशुओं को पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में परिवर्तित कर् दिया। अनुसूइया के पतिव्रत धर्म से प्रभावित होकर त्रिदेव ने वर मांगने को कहा। अनुसूइया ने त्रिदेव को ही पुत्र रूप में मांग लिया। उसी वर के अनुसार भगवान विष्णु उनके पुत्र दत्तात्रेय हुए।दत्तात्रेजी का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ला पूर्णिमा को हुआ था।भगवान ब्रह्मा का जन्म चंद्र के रूप में और भगवान शंकर का जन्म महर्षि दुर्वासा के रूप में हुआ। इस प्रकार त्रिदेव ने अनुसूइया के गर्भ से तीन शिशुओं के रूप में जन्म लिया।
भगवान दत्तात्रेय के रायपुर (छ.ग.) और इंदौर (म. प्र.) में जगप्रसिद्ध मंदिर हैं।दत्तात्रेयजी अवधूत नाम से भी जाने जाते हैं।कहा जाता है कि अवधूत गीता उन्हीं के द्वारा कही गयी है। अवधूत गीता अद्वैत वाद का समर्थन करती है।इसी कारण से कई विद्वान इस ग्रंथ को लिपिबद्ध करना अद्वैतवादी आदिगुरु शंकराचार्य के काल के बाद, लगभग 11वीं शताब्दी में मानते हैं।अवधूत गीता भी अपने आप में एकअद्भुत ग्रन्थ है।
कल अवधूत शब्द पर चर्चा करेंगे।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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