गुरु-24
दत्तात्रेयजी ने भृङ्गी नामक कीट को अपना 24 वां गुरु बताया है। आइए!सबसे पहले जानते हैं कि भृङ्गी कीट कैसा होता है और क्या करता है? वैसे तो इस जगत में कीड़ों की अनेक प्रजातियां हैं।आपको जानकर आश्चर्य होगा कि संसार में प्राणियों में सर्वाधिक आबादी ही कीड़ों (arthropods)की है। उन्हीं कीड़ों की प्रजाति में भृङ्गी भी एक कीट है।भृंगी कीट एक पंखों वाले चींटे के समान जीव होता है । इसकी विशेषता ये है कि ये नर और मादा मिलकर जनन क्रिया द्वारा बच्चे उत्पन्न नहीं करता क्योंकि भृंगी कीट में नर मादा जीव अलग अलग होते ही नहीं है । ये दीवाल आदि पर बने अपने तीन चार छिद्रों वाले मिट्टी के छोटे से गोल घर में किसी तिनके जैसे मामूली कीङे (जो कि उसके द्वारा दिये गए अंडे से निकला हुआ लार्वा ही होता है) को उठा लाता है और घर के अन्दर डालकर स्वयं बाहर से पंख फ़ङफ़ङाता हुआ तेज भूँ भूँ हूँ हूँ की ध्वनि करता है । इसके स्वर से छोटा कीङा भय से बेहोश हो जाता है और भय से ही उसकी आंतरिक तथा बाह्य संरचना परिवर्तित होकर भृंगी कीट जैसी ही हो जाती है ।वास्तव में उसका लार्वा ही बेहोश होकर प्यूपा बन जाता है ।उस अवधि में उसकी आंतरिक व बाह्य रचना परिवर्तित होकर भृङ्गी कीट का रूप ले लेती है।
राजा यदु को दत्तात्रेयजी बता रहे हैं कि हे राजन्!मैंने इसी भृङ्गी कीट से यह शिक्षा ली है कि यदि व्यक्ति स्नेह से, द्वेष से अथवा भय से तीनों में से किसी भी भाव से एकाग्र होकर मन को किसी मे भी लगा दे वह उसी के स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।इस प्रकार से अगर मनुष्य परमात्मा में एकाग्रचित्त कर ले तो शीघ्र ही वह स्वयं ही परमात्मा के स्वरूप को उपलब्ध हो जाता है।मीरां बाई ने स्नेह से अपने मन को श्री कृष्ण में लगाया और वे उन्हीं में समा गई। रावण सदैव द्वेष पूर्वक प्रभु श्री राम को याद करता रहा, इससे उसका मन सदैव राम में लगा रहा, परिणाम हमारे सामने है। मृत्यु के बाद उनको परमात्मा का धाम ही मिला। कहने का अर्थ है कि सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, एकाग्रचित्त होकर परमात्मा का स्मरण करना और सबसे अच्छा है, प्रेम पूर्वक परमात्मा का स्मरण।
इस प्रकार दत्तात्रेय जी ने राजा यदु को पृथ्वी से लेकर भृङ्गी कीट तक के 24 गुरुओं से ली हुई शिक्षा से परिचित कराया। अंत में वे कहते हैं कि अपनी इस मनुष्य देह से भी महत्वपूर्ण ज्ञान लिया है।यह ऐसा ज्ञान है जो कि जीवन की सत्यता से हमारा परिचय कराता है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
दत्तात्रेयजी ने भृङ्गी नामक कीट को अपना 24 वां गुरु बताया है। आइए!सबसे पहले जानते हैं कि भृङ्गी कीट कैसा होता है और क्या करता है? वैसे तो इस जगत में कीड़ों की अनेक प्रजातियां हैं।आपको जानकर आश्चर्य होगा कि संसार में प्राणियों में सर्वाधिक आबादी ही कीड़ों (arthropods)की है। उन्हीं कीड़ों की प्रजाति में भृङ्गी भी एक कीट है।भृंगी कीट एक पंखों वाले चींटे के समान जीव होता है । इसकी विशेषता ये है कि ये नर और मादा मिलकर जनन क्रिया द्वारा बच्चे उत्पन्न नहीं करता क्योंकि भृंगी कीट में नर मादा जीव अलग अलग होते ही नहीं है । ये दीवाल आदि पर बने अपने तीन चार छिद्रों वाले मिट्टी के छोटे से गोल घर में किसी तिनके जैसे मामूली कीङे (जो कि उसके द्वारा दिये गए अंडे से निकला हुआ लार्वा ही होता है) को उठा लाता है और घर के अन्दर डालकर स्वयं बाहर से पंख फ़ङफ़ङाता हुआ तेज भूँ भूँ हूँ हूँ की ध्वनि करता है । इसके स्वर से छोटा कीङा भय से बेहोश हो जाता है और भय से ही उसकी आंतरिक तथा बाह्य संरचना परिवर्तित होकर भृंगी कीट जैसी ही हो जाती है ।वास्तव में उसका लार्वा ही बेहोश होकर प्यूपा बन जाता है ।उस अवधि में उसकी आंतरिक व बाह्य रचना परिवर्तित होकर भृङ्गी कीट का रूप ले लेती है।
राजा यदु को दत्तात्रेयजी बता रहे हैं कि हे राजन्!मैंने इसी भृङ्गी कीट से यह शिक्षा ली है कि यदि व्यक्ति स्नेह से, द्वेष से अथवा भय से तीनों में से किसी भी भाव से एकाग्र होकर मन को किसी मे भी लगा दे वह उसी के स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।इस प्रकार से अगर मनुष्य परमात्मा में एकाग्रचित्त कर ले तो शीघ्र ही वह स्वयं ही परमात्मा के स्वरूप को उपलब्ध हो जाता है।मीरां बाई ने स्नेह से अपने मन को श्री कृष्ण में लगाया और वे उन्हीं में समा गई। रावण सदैव द्वेष पूर्वक प्रभु श्री राम को याद करता रहा, इससे उसका मन सदैव राम में लगा रहा, परिणाम हमारे सामने है। मृत्यु के बाद उनको परमात्मा का धाम ही मिला। कहने का अर्थ है कि सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, एकाग्रचित्त होकर परमात्मा का स्मरण करना और सबसे अच्छा है, प्रेम पूर्वक परमात्मा का स्मरण।
इस प्रकार दत्तात्रेय जी ने राजा यदु को पृथ्वी से लेकर भृङ्गी कीट तक के 24 गुरुओं से ली हुई शिक्षा से परिचित कराया। अंत में वे कहते हैं कि अपनी इस मनुष्य देह से भी महत्वपूर्ण ज्ञान लिया है।यह ऐसा ज्ञान है जो कि जीवन की सत्यता से हमारा परिचय कराता है।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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