गुरु-17
बहुत प्राचीन समय की बात है।मिथिला नगर में एक वेश्या रहती थी। उसका नाम था पिङ्गला। उसका प्रतिदिन एक ही कार्य था। शाम होते ही सज धज कर अपने निवास की ड्योढ़ी पर आकर खड़ी हो जाती और अपनी अदाओं से रास्ते से गुजरने वाले पुरुषों को आकर्षित करती। उन्हें पैसे के बदले शारीरिक सुख लेने के लिए आमंत्रित करती। वास्तव में उसे शारीरिक सुख प्राप्त करने की कोई कामना नहीं थी बल्कि उसके मन में पुरुषों को शारीरिक सुख देने के बदले उनसे मिलने वाले धन की कामना रहती थी । इस प्रकार विदेह नगरी में रहते हुए उसे कई वर्ष बीत गए। उसने अपने शरीर का उपयोग कर बहुत सारा धन इक्कट्ठा कर लिया था।
एक दिन इसी प्रकार सज धज कर वह अपने घर की ड्योढ़ी पर खड़ी होकर किसी पुरुष का इंतज़ार कर रही थी। लोग बाग आ जा रहे थे। सभी उस पर एक उड़ती हुई दृष्टि डालते और आगे बढ़ जाते।उसे पुरुष की कामना नहीं थी बल्कि उससे मिलने वाले धन की आशा थी। उसके मन मे धन की कामना इतनी अधिक दृढ़ हो गई थी कि आने जाने वाले पुरुष को देखकर वह यही सोचती कि वह कोई बहुत धनी व्यक्ति है। वह आधी रात तक घर के भीतर बाहर इसी आशा से जाती आती रही कि कभी न कभी कोई अधिक धनी व्यक्ति तो उसकी ओर आकर्षित होगा ही परंतु उस दिन कोई उसकी ओर आकर्षित नहीं हुआ।स्त्री के शरीर की भी एक क्षमता होती है, उसके शरीर के आकर्षण को भी एक न एक दिन ढलना होता है। इसी अवस्था को प्राप्त होने जा रहे पिङ्गला के शरीर को आज कोई ग्राहक नहीं मिला।पिङ्गला को तो शारीरिक सुख नहीं बल्कि धन पाने की अभिलाषा रहती थी परंतु आज....आज ही क्या, अब आगे भी इस शरीर के बदले किसी भी प्रकार के धन प्राप्त होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। पिङ्गला वेश्या व्यथित हो गई। उसको इतने वर्षों तक अपने किये हुए कर्मों पर बहुत पश्चाताप हो रहा था। वैसे तो आशा रखना ही अनुचित है और फिर धन की आशा रखना तो बहुत ही अनुचित बात है।किसी धनी से धन पाने की आशा में इंतज़ार करते करते उसका मुख सुख गया।अब उसे अपनी वृति के प्रति ग्लानि हो रही थी। ग्लानि के कारण उस वेश्या पिङ्गला को वैराग्य उत्पन्न हो गया।
क्रमश:
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
बहुत प्राचीन समय की बात है।मिथिला नगर में एक वेश्या रहती थी। उसका नाम था पिङ्गला। उसका प्रतिदिन एक ही कार्य था। शाम होते ही सज धज कर अपने निवास की ड्योढ़ी पर आकर खड़ी हो जाती और अपनी अदाओं से रास्ते से गुजरने वाले पुरुषों को आकर्षित करती। उन्हें पैसे के बदले शारीरिक सुख लेने के लिए आमंत्रित करती। वास्तव में उसे शारीरिक सुख प्राप्त करने की कोई कामना नहीं थी बल्कि उसके मन में पुरुषों को शारीरिक सुख देने के बदले उनसे मिलने वाले धन की कामना रहती थी । इस प्रकार विदेह नगरी में रहते हुए उसे कई वर्ष बीत गए। उसने अपने शरीर का उपयोग कर बहुत सारा धन इक्कट्ठा कर लिया था।
एक दिन इसी प्रकार सज धज कर वह अपने घर की ड्योढ़ी पर खड़ी होकर किसी पुरुष का इंतज़ार कर रही थी। लोग बाग आ जा रहे थे। सभी उस पर एक उड़ती हुई दृष्टि डालते और आगे बढ़ जाते।उसे पुरुष की कामना नहीं थी बल्कि उससे मिलने वाले धन की आशा थी। उसके मन मे धन की कामना इतनी अधिक दृढ़ हो गई थी कि आने जाने वाले पुरुष को देखकर वह यही सोचती कि वह कोई बहुत धनी व्यक्ति है। वह आधी रात तक घर के भीतर बाहर इसी आशा से जाती आती रही कि कभी न कभी कोई अधिक धनी व्यक्ति तो उसकी ओर आकर्षित होगा ही परंतु उस दिन कोई उसकी ओर आकर्षित नहीं हुआ।स्त्री के शरीर की भी एक क्षमता होती है, उसके शरीर के आकर्षण को भी एक न एक दिन ढलना होता है। इसी अवस्था को प्राप्त होने जा रहे पिङ्गला के शरीर को आज कोई ग्राहक नहीं मिला।पिङ्गला को तो शारीरिक सुख नहीं बल्कि धन पाने की अभिलाषा रहती थी परंतु आज....आज ही क्या, अब आगे भी इस शरीर के बदले किसी भी प्रकार के धन प्राप्त होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। पिङ्गला वेश्या व्यथित हो गई। उसको इतने वर्षों तक अपने किये हुए कर्मों पर बहुत पश्चाताप हो रहा था। वैसे तो आशा रखना ही अनुचित है और फिर धन की आशा रखना तो बहुत ही अनुचित बात है।किसी धनी से धन पाने की आशा में इंतज़ार करते करते उसका मुख सुख गया।अब उसे अपनी वृति के प्रति ग्लानि हो रही थी। ग्लानि के कारण उस वेश्या पिङ्गला को वैराग्य उत्पन्न हो गया।
क्रमश:
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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