Saturday, August 3, 2019

गुरु-18

गुरु-18
    वैराग्य के पैदा होते ही पिङ्गला ने वहीं ड्योढ़ी पर खड़े खड़े एक गीत गाया।परमात्मा को समर्पित वह गीत बड़ा ही अनुपम था।पिङ्गला जो गीत गा रही थी उसका सार है कि "हाय हाय, मैं भी इंद्रियों के वश में हो गई।मेरे मोह की असीमता को तो देखो, जो उन दुष्ट पुरुषों से विषय सुख पाने की कामना जीवन भर करती रही, जिनका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं था।मेरे स्वयं के भीतर परमात्मा निवास करते हैं, जो परम सुख और परम धन को देने वाले हैं। मैं उनको भी भुला बैठी।भला, मेरे जितना भी कोई मूर्ख होगा।जगत के पुरुष तो अनित्य हैं जबकि परम पुरुष नित्य हैं। जगत के पुरुष तो प्रेम देने का नाटक भर करते हैं जबकि वास्तविक प्रेम करने योग्य तो परमात्मा ही हैं।हाय हाय!मैंने जीवन भर क्या किया?उन पुरुषों के पीछे पड़ी रही, जो केवल भय, दुःख, आधि-व्याधि,शोक और मोह के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दे सकते थे। मैंने व्यर्थ ही वेश्या वृति के माध्यम से ऐसे पुरुषों का सेवन किया।मैंने व्यर्थ ही अपने शरीर और मन को क्लेश दिया। मेरा यह हाड़ मांस से बना शरीर बिक गया, केवल कुछ धन के लिए। धन से मैं संसार के सुख चाहती रही।कैसा दुर्भाग्य है मेरा।"
          पिङ्गला आगे कहती है-"वैसे तो यह मिथिला विदेहों की नगरी है, जीवन-मुक्त पुरुषों की नगरी है, केवल एक मूर्ख मैं ही हूँ जो यहां निवास करती हूँ।केवल मैं ही एक ऐसी स्त्री हूँ जो परमात्मा को छोड़कर अन्य पुरुषों की अभिलाषा करती हूँ। अब मैं भी अपने आपको देकर उस परमपिता प्रभु को खरीद लूंगी, उनसे लक्ष्मी की तरह व्यवहार रखूंगी और प्रेम करूंगी।
       आज परमात्मा मेरे पर प्रसन्न हुए हैं, जो मेरे में वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ है।अवश्य ही मेरे द्वारा पूर्व में किये गए किसी शुभ कर्म से विष्णु भगवान मुझ पर प्रसन्न हुए हैं।अब मैं प्रारब्ध स्वरूप जो मुझे मिल जाएगा, उसी में संतुष्ट रहूंगी।आज से मैं किसी अन्य पुरुष की ओर न ताककर केवल अपने प्रभु के साथ ही विहार करूंगी।" सत्य है, जिस समय मनुष्य विषयों से स्वयं को मुक्त कर लेता है, उसी समय से वह अपनी रक्षा करने में समर्थ हो जाता है।
        इस प्रकार पिङ्गला वेश्या ने ऐसा निश्चय कर धनी पुरुषों से मिलने वाले विषय सुख और धन मिलने की आशा का परित्याग कर दिया और शांत भाव से जाकर अपनी सेज पर सो गई। आशा ही सबसे बड़ा दुःख है और निराशा ही सबसे बड़ा सुख है।जब पिङ्गला वेश्या ने पुरुष की आशा त्याग दी तभी वह सुख से सो सकी।दत्तात्रेय भगवान कह रहे हैं कि इसी प्रकार हमें भी संसार के किसी भी प्राणी से कोई आशा नहीं रखनी चाहिए क्योंकि आशा ही सभी प्रकार के दुःखों की जननी है। पिङ्गला वेश्या के वृतांत से हमें यही शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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