आचार्यजी सत्संग @
सुजानगढ़ – 5
‘भज गोविन्दम’ स्तोत्र की रचना आदिगुरू शंकराचार्य
ने की थी। यह मूल रूप से बारह पदों में सरल संस्कृत में लिखा गया एक सुंदर स्तोत्र
है। इसलिए इसे ‘द्वादश मंजरिका’ भी कहते हैं। बाद में उनके शिष्यों ने इसमें कुछ
श्लोक और जोड़ दिए हैं | इस प्रकार इसमें आज तक कुल 31 श्लोक हो गए हैं | ‘भज
गोविन्दम’ में शंकराचार्य जी ने संसार के मोह में ना पड़ कर भगवान श्री कृष्ण की
भक्ति करने का उपदेश दिया है। उनके अनुसार, संसार असार है और केवल एक भगवान का नाम ही शाश्वत
है। उन्होंने मनुष्य को पुस्तकीय ज्ञान में समय ना गँवाकर और भौतिक वस्तुओं की
लालसा, तृष्णा
व मोह छोड़ कर भगवान का भजन करने की शिक्षा दी है। इसलिए ‘भज गोविन्दम’ को ‘मोह
मुगदर’ यानि मोह नाशक भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है- वह शक्ति जो आपको सांसारिक
बंधनों से मुक्त कर दे । शंकराचार्य जी का कहना है कि अन्तकाल में मनुष्य की सारी
अर्जित विद्याएँ और कलाएँ किसी काम नहीं आएंगी, काम आएगा तो केवल हरि का नाम। “भज गोविन्दम” श्री
शंकराचार्य की एक बहुत ही खूबसूरत रचना है।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते। सम्प्राप्ते सन्निहिते मरणे, नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे ॥1॥
हे भटके हुए प्राणी, सदैव परमात्मा का ध्यान कर क्योंकि तेरी अंतिम सांस के वक्त तेरा
यह सांसारिक ज्ञान तेरे काम नहीं आएगा, सब कुछ नष्ट हो जाएगा।
यह
“भज गोविन्दम” कृति का प्रथम श्लोक है | इस रचना में कुल 31 श्लोक हैं, जो एक से
बढकर एक हैं | ज्ञान और भक्ति का अनूठा संगम देखना हो तो “भज गोविन्दम” के भीतर तक
प्रवेश करके देखें | इस रचना की व्याख्या करना कोई सरल कार्य नहीं है | यह रचना
आपके अन्तःस्थल को परिवर्तित करने की क्षमता रखती है | इस महान कृति पर प्रवचन
करने आ रहे हैं, हरिः शरणम् आश्रम, बेलडा (हरिद्वार) के आचार्य श्री गोविन्द राम
शर्मा | हमें अपने सौभाग्य से ज्ञान और भक्ति के रस में आकंठ डूबने के लिए यह
दुर्लभ अवसर इस जीवन में मिल रहा है, इसे हाथ से न जाने दें और पहुँच जाएँ, श्री माहेश्वरी
सेवा सदन, डॉ. छाबडाजी के निवास स्थान के पास, सुजानगढ़, जहाँ पर दिनांक 9 सितम्बर
2017 से 15 सितम्बर 2017 तक प्रतिदिन सायं 4 से 6 बजे तक “भज गोविन्दम” पर प्रवचन
होंगे |
सानुरोध......
डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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