भज गोविन्दम-1 श्लोक
-1
भज गोविन्दं भज
गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते |
सम्प्रातेसन्निहितेमरणे,
नहि नहिरक्षतिडुकृञ् करणे ||1||
अर्थात हे भटके हुए
प्राणी, सदैव परमात्मा का ध्यान कर क्योंकि तेरी अंतिम साँस के वक्त तेरा यह
सांसारिक ज्ञान तेरे काम नहीं आएगा | सब नष्ट हो जायेगा |
शंकराचार्य जी इस
श्लोक में कह रहे हैं कि हे वृद्ध व्यक्ति तूं मृत्यु के द्वार पर आ खड़ा है और अभी
भी नहीं समझ पा रहा है कि तुम्हें क्या करना चाहिए ? तूं भटका हुआ है क्योंकि
तुम्हें यह ज्ञान नहीं है कि जिस अवस्था को तूं प्राप्त हो चूका है, वह ऐसी अवस्था
है जब तेरे पास इस जीवन में अधिक समय नहीं है | ऐसी अवस्था में सब कुछ छोड़कर जहाँ
पर तुझे हरि भजन करना चाहिए, वहां तू शास्त्रों को रट रहा है, उसकी व्याकरण को रट रहा
है | इस वृद्धावस्था में केवल हरि का भजन ही तेरे लिए सर्वोत्तम साधन है, जो
तुम्हें मुक्ति की और ले जायेगा |
शास्त्र और व्याकरण रटते हुए तुम्हें भले
ही भाषा का ज्ञान हो जाये, परन्तु यह केवल मात्र सांसारिक ज्ञान ही होगा, परमात्मा
का ज्ञान नहीं | परमात्मा के ज्ञान के अतिरिक्त समस्त ज्ञान अज्ञान है | कबीर कहते
हैं-
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ,
पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का,
पढ़े सो पंडित होय ||
अतः शास्त्रों को
रटने में कुछ भी नहीं रखा है | ऐसा कुछ भी करना व्यर्थ है | इसलिए सब कुछ छोड़कर
गोविन्द को भजो, गोविन्द को भजो |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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