Tuesday, September 26, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.3(कल से आगे-3)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.3(कल से आगे-3)-
            इतने विवेचन के बाद यह प्रश्न उठता है कि अपने आपको स्त्री के आकर्षण के वशीभूत होने से कैसे बचाया जाये ? शंकराचार्यजी महाराज ने कह तो दिया कि स्त्री के नाभिप्रदेश और स्तन के आकर्षण के पीछे छुपे रहस्य हाड़, मांस, वसादि का बार-बार ध्यान करें | स्त्री का शरीर ही केवल हाड़, मांस और वसा आदि से नहीं बना है बल्कि सभी शरीर चाहे वह किसी पुरुष का हो अथवा स्त्री का, इन तीनों के मिलने से ही बना है | अतः यह आवश्यक है कि एक पुरुष भी अपने शरीर को भी एक स्त्री के शरीर की भांति ही देखे | जब तक हमें हमारे शरीर में भी हाड़, मांस तथा वसा दिखाई नहीं देगी, तब तक हम किसी दूसरे के शरीर में यह सब नहीं देख पाएंगे | हम सभी प्राणी इन्हीं हाड़, मांस और वसा से बने पुतले मात्र हैं | हमें तभी स्त्री के शरीर के आकर्षण के पीछे भी यही हाड़-मांस और वसा दिखलाई देंगे, अन्यथा नहीं |
         एक मनुष्य में स्त्री के प्रति पुरुष और एक पुरुष के शरीर के प्रति यह आकर्षण क्यों होता है ? मानव शरीर विज्ञान की जरा सी भी जानकारी रखने वाला जानता है कि यह शरीर मां और पिता दोनों के संयोग से बनता है | हमारे शास्त्रों में इसी कारण से ईश्वर को अर्धनारीश्वर (XY गुणसूत्र के कारण) के रूप में भी दिखाया गया है | प्रत्येक पुरुष में नारी का अंश (X गुणसूत्र) अवश्य ही रहता है, परन्तु नारी में पुरुष का अंश (Y गुणसूत्र) नहीं | यही X गुणसूत्र ही एक पुरुष का स्त्री में और Y गुणसूत्र एक स्त्री का पुरुष में आकर्षण का मुख्य कारण है | स्त्री के शरीर में XX गुणसूत्र होते हैं और पुरुष में XY गुणसूत्र | एक पुरुष का स्त्री के प्रति अधिक आकर्षण स्त्री में (2) XX गुणसूत्रों के उपस्थित होने के कारण अधिक होता है | एक पुरुष के प्रति स्त्री का आकर्षण उसमें उपस्थित एक Y गुणसूत्र के कारण होता है | इसी प्रकार एक पुत्र का अपनी मां के प्रति लगाव अधिक होता है और एक पुत्री का अपने पिता के प्रति | हमारी संस्कृति और संस्कार ऐसे हैं जहाँ पर रिश्तों को समझने और उसके अनुसार व्यवहार करने को अधिक महत्त्व दिया जाता है | यही कारण है कि हम इस आधुनिक युग में भी काम के बढ़ते प्रभाव से कुछ सीमा तक अभी भी मुक्त हैं | पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव भी इस युग में हमारे कई पवित्र रिश्तों को इस आकर्षण के कारण तार-तार करने लगा है | ऐसे समय में हमारे लिए शंकराचार्यजी कृत’ भज गोविन्दम्’ का यह तीसरा श्लोक मार्गदर्शक बना हुआ है |
क्रमशः
प्रस्तुति –डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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