Tuesday, September 5, 2017

आचार्यजी सत्संग @ सुजानगढ़ - 3

आचार्यजी सत्संग @ सुजानगढ़ – 3
आत्मानमेवात्मतयाविजानतां
    तेनैव जातं निखिलं प्रपंचितम् |
ज्ञानेन भूयोऽपि च तत् प्रलीयते
     रज्ज्वामहेर्भोगभवाभवौ यथा ||भागवत-10/14/25||
अर्थात जो पुरुष परमात्मा को आत्मा के रूप में नहीं जानते, उन्हें उस अज्ञान के कारण ही इस नाम रूपात्मक निखिल प्रपंच की उत्पत्ति का भ्रम हो जाता है | किन्तु ज्ञान होते ही इसका आत्यंतिक प्रलय हो जाता है | जैसे रस्सी में भ्रम के कारण ही सांप की प्रतीति होती है और भ्रम के निवृत होते ही उसकी निवृति हो जाती है |
     संसार के जनक प्रजा पिता ब्रह्माजी भगवान की स्तुति करते हुए कहा रहे हैं कि समस्त संसार एक प्रपंच के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है | अँधेरे में जैसे हम एक रस्सी को सांप समझ लेते हैं, उसी प्रकार संसार जो कि केवल एक नाम-रूप का स्वप्न मात्र ही है और हम उस स्वप्न को ही यथार्थ मान बैठे हैं | ज्ञान ही इस स्वप्न को तोड़ सकता है | एक बार ज्ञान हो जाने पर सारा संसार स्वप्न ही नज़र आने लगता है | इतने समय से हम असत को सत समझ रहे हैं, यही हमारा अज्ञान है | अज्ञान का अन्धकार मिटते ही चारों और सत ही सत नज़र आने लगता है |
              भ्रम की निवृति बहुत ही आवश्यक है | एक परमात्मा ही सत्य है | ब्रह्माजी द्वारा की जा रही इस स्तुति को आत्म-सात करने के लिए प्रतिदिन भागवत-पाठ करना आवश्यक है | हम भी आपके साथ इसी प्रसंग का प्रतिदिन भागवत के एक पृष्ठ का अर्थ सहित पाठ करेंगे और परमात्मा की स्तुति का अर्थ समझने का प्रयास करेंगे |
स्थान –
दिनांक- 7 व 8 सितम्बर 2017      श्री परशुराम भवन, सुजानगढ़
दिनांक- 9 से 15 सितम्बर 2017     श्री माहेश्वरी सेवा सदन, डॉ.छाबड़ा जी
                                के निवास स्थान के पास , सुजानगढ़ |
सानिध्य – आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा, हरिः शरणम् आश्रम, बेलडा, हरिद्वार
सानुरोध -----
डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||  

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