आचार्यजी सत्संग @
सुजानगढ़ – 3
आत्मानमेवात्मतयाविजानतां
तेनैव जातं निखिलं प्रपंचितम् |
ज्ञानेन भूयोऽपि च
तत् प्रलीयते
रज्ज्वामहेर्भोगभवाभवौ यथा ||भागवत-10/14/25||
अर्थात जो पुरुष
परमात्मा को आत्मा के रूप में नहीं जानते, उन्हें उस अज्ञान के कारण ही इस नाम रूपात्मक
निखिल प्रपंच की उत्पत्ति का भ्रम हो जाता है | किन्तु ज्ञान होते ही इसका
आत्यंतिक प्रलय हो जाता है | जैसे रस्सी में भ्रम के कारण ही सांप की प्रतीति होती
है और भ्रम के निवृत होते ही उसकी निवृति हो जाती है |
संसार के जनक प्रजा पिता ब्रह्माजी भगवान की स्तुति करते हुए कहा रहे हैं कि समस्त संसार एक
प्रपंच के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है | अँधेरे में जैसे हम एक रस्सी को सांप समझ
लेते हैं, उसी प्रकार संसार जो कि केवल एक नाम-रूप का स्वप्न मात्र ही है और हम उस
स्वप्न को ही यथार्थ मान बैठे हैं | ज्ञान ही इस स्वप्न को तोड़ सकता है | एक बार
ज्ञान हो जाने पर सारा संसार स्वप्न ही नज़र आने लगता है | इतने समय से हम असत को
सत समझ रहे हैं, यही हमारा अज्ञान है | अज्ञान का अन्धकार मिटते ही चारों और सत ही
सत नज़र आने लगता है |
भ्रम की निवृति बहुत ही आवश्यक है |
एक परमात्मा ही सत्य है | ब्रह्माजी द्वारा की जा रही इस स्तुति को आत्म-सात करने
के लिए प्रतिदिन भागवत-पाठ करना आवश्यक है | हम भी आपके साथ इसी प्रसंग का
प्रतिदिन भागवत के एक पृष्ठ का अर्थ सहित पाठ करेंगे और परमात्मा की स्तुति का
अर्थ समझने का प्रयास करेंगे |
स्थान –
दिनांक- 7 व 8
सितम्बर 2017 श्री परशुराम भवन,
सुजानगढ़
दिनांक- 9 से 15
सितम्बर 2017 श्री माहेश्वरी सेवा सदन,
डॉ.छाबड़ा जी
के
निवास स्थान के पास , सुजानगढ़ |
सानिध्य – आचार्य
श्री गोविन्द राम शर्मा, हरिः शरणम् आश्रम, बेलडा, हरिद्वार
सानुरोध -----
डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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