आचार्यजी सत्संग @
सुजानगढ़ – 1
त्वमादिदेवः पुरुषः
पुराण-
स्त्वमस्य विश्वस्य
परं निधानम् |
वेत्तासि वेद्यं च
परं च धाम
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप
||गीता-11/38||
अर्थात आप ही देव और
पुराण पुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के आश्रय हैं | आप ही सबको जानने वाले, जानने
योग्य और परम धाम हैं | हे अनन्तरूप ! आपसे ही सम्पूर्ण संसार व्याप्त है |
ब्रह्मलीन स्वामी
रामसुखदासजी महाराज द्वारा संकलित नित्य-स्तुति का यह एक श्लोक है | ब्रह्म
मुहूर्त की पवित्र बेला में जब सामूहिक रूप से यह नित्य-स्तुति की जाती है, तब
परमात्मा के विराट स्वरूप में समाहित होकर आप अपने आपको खो देते हैं | आप, आप न
होकर उस विराट स्वरूप का एक हिस्सा हो जाते हैं | स्वयं को खो देना ही अध्यात्म की
यात्रा का एक मात्र लक्ष्य होता है | स्वयं को विराट के साथ एकाकार कर लेना ही
परमात्मा को पा लेना है |
हमारे साथ अगर आप भी अपने आप को
समाप्त करने की यात्रा पर अग्रसर होना चाहते हैं तो सामूहिक नित्य-स्तुति में सम्मिलित
होकर लाभ उठायें | नित्य-स्तुति प्रातः ठीक 5 बजे प्रारम्भ होती है | इससे पूर्व
4.30 बजे से गीता-पाठ होता है | कृपया समय से पूर्व पधारकर अपना स्थान ग्रहण कर
लें |
स्थान –
दिनांक- 7 व 8
सितम्बर 2017 श्री परशुराम भवन,
सुजानगढ़
दिनांक- 9 से 15
सितम्बर 2017 श्री माहेश्वरी सेवा सदन,
डॉ.छाबड़ा जी
के
निवास स्थान के पास , सुजानगढ़ |
सानिध्य – आचार्य
श्री गोविन्द राम शर्मा, हरिः शरणम् आश्रम, बेलडा, हरिद्वार
सानुरोध -----
डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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