आचार्यजी सत्संग @
सुजानगढ़ – 4
पूँछेहु मोहि कि रहौं
कहँ मैं पूँछत सकुचाउँ |
जहँ न होहु तहँ देहु
कहि तुम्हहि देखावौं ठाउँ || रामचरितमानस-2/127 ||
वाल्मीकि जी कह रहे
हैं कि हे राम ! आपने मुझसे पूछा कि मैं कहाँ रहूँ ? परन्तु मैं यह पूछते हुए
सकुचा रहा हूँ कि जहाँ आप न हों, पहले मुझे वह स्थान बता दीजिये | उसके बाद मैं आपको
आपके रहने योग्य स्थान दिखा पाऊँगा |
भगवान श्री राम
महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पहुंचे हैं और उन्हें पूछ रहे हैं कि मैं कहाँ रहूँ ?
परमात्मा, जो कि सर्वत्र व्याप्त है, उनके द्वारा ऐसा पूछना मन में एक भ्रम
उत्पन्न करता है | आपका यह भ्रम परमात्मा की कृपा से ही दूर हो सकता है | तभी तो
महर्षि वाल्मीकि कह रहे हैं –‘प्रभु ! आपको वही व्यक्ति जान सकता है, जिसे आप जना
देना चाहते हैं अन्यथा आपको जानना किसी के भी वश में नहीं है |
सोइ जानइ जेहि देहु
जनाई | जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ||रामचरितमानस- 2/127/3||
एक बार जिसने उसको जान लिया, फिर
किसी अन्य को जानने की आवश्यकता नहीं है | इसी को आत्म-बोध होना कहते हैं | एक बार
आत्म-बोध हो गया, फिर संसार असत्य हो जाता है | वाल्मीकि जी को आत्म-बोध था, फिर
भी उन्होंने भगवान श्री राम के पूछने पर वे सभी स्थान विस्तार से बताये हैं, जहाँ
परमात्मा निवास करते हैं |
इस मार्मिक प्रसंग को और अधिक गहराई
से समझने के लिए हम नित्य-स्तुति, गीता और भागवत-पाठ के बाद रामचरितमानस के इस
प्रसंग का अर्थ सहित पठन करेंगे |
स्थान –
दिनांक- 7 व 8
सितम्बर 2017 श्री परशुराम भवन,
सुजानगढ़
दिनांक- 9 से 15
सितम्बर 2017 श्री माहेश्वरी सेवा सदन,
डॉ.छाबड़ा जी
के
निवास स्थान के पास , सुजानगढ़ |
सानिध्य – आचार्य
श्री गोविन्द राम शर्मा, हरिः शरणम् आश्रम, बेलडा, हरिद्वार
सानुरोध -----
डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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