Wednesday, September 6, 2017

आचार्यजी सत्संग @ सुजानगढ़ - 4

आचार्यजी सत्संग @ सुजानगढ़ – 4
पूँछेहु मोहि कि रहौं कहँ मैं पूँछत सकुचाउँ |
जहँ न होहु तहँ देहु कहि तुम्हहि देखावौं ठाउँ || रामचरितमानस-2/127 ||
वाल्मीकि जी कह रहे हैं कि हे राम ! आपने मुझसे पूछा कि मैं कहाँ रहूँ ? परन्तु मैं यह पूछते हुए सकुचा रहा हूँ कि जहाँ आप न हों, पहले मुझे वह स्थान बता दीजिये | उसके बाद मैं आपको आपके रहने योग्य स्थान दिखा पाऊँगा |
भगवान श्री राम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पहुंचे हैं और उन्हें पूछ रहे हैं कि मैं कहाँ रहूँ ? परमात्मा, जो कि सर्वत्र व्याप्त है, उनके द्वारा ऐसा पूछना मन में एक भ्रम उत्पन्न करता है | आपका यह भ्रम परमात्मा की कृपा से ही दूर हो सकता है | तभी तो महर्षि वाल्मीकि कह रहे हैं –‘प्रभु ! आपको वही व्यक्ति जान सकता है, जिसे आप जना देना चाहते हैं अन्यथा आपको जानना किसी के भी वश में नहीं है |
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई | जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ||रामचरितमानस- 2/127/3||
            एक बार जिसने उसको जान लिया, फिर किसी अन्य को जानने की आवश्यकता नहीं है | इसी को आत्म-बोध होना कहते हैं | एक बार आत्म-बोध हो गया, फिर संसार असत्य हो जाता है | वाल्मीकि जी को आत्म-बोध था, फिर भी उन्होंने भगवान श्री राम के पूछने पर वे सभी स्थान विस्तार से बताये हैं, जहाँ परमात्मा निवास करते हैं |
           इस मार्मिक प्रसंग को और अधिक गहराई से समझने के लिए हम नित्य-स्तुति, गीता और भागवत-पाठ के बाद रामचरितमानस के इस प्रसंग का अर्थ सहित पठन करेंगे |
स्थान –
दिनांक- 7 व 8 सितम्बर 2017      श्री परशुराम भवन, सुजानगढ़
दिनांक- 9 से 15 सितम्बर 2017     श्री माहेश्वरी सेवा सदन, डॉ.छाबड़ा जी
                                के निवास स्थान के पास , सुजानगढ़ |
सानिध्य – आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा, हरिः शरणम् आश्रम, बेलडा, हरिद्वार
सानुरोध -----
डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||  

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