Saturday, September 23, 2017

भज गोविन्दम - श्लोक सं.-3

भज गोविन्दम- श्लोक-3
नारीस्तनभरनाभीनिवेशं, दृष्ट्वा माया मोहावेशम् |
एतन्मासं-वसादि-विकारं, मनसिविचिन्तयबारम्बारम् ||3||
अर्थात हम स्त्री की सुन्दरता से मोहित होकर उसे पाने की निरंतर कोशिश करते हैं | परन्तु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सुन्दर शरीर केवल हाड़-मांस का टुकड़ा मात्र है |
          मनुष्य में एक मुख्य विशेषता है, जिसको बताने में सभी ज्ञानी व्यक्ति अधिक सतर्कता बरतते हैं | मैं कहता हूँ कि किसी विषय को जब सर्वाधिक स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है, उसे छिपाते हुए अर्थात उस विषय को स्पष्ट करने में अगर शालीनता की सीमा से अधिक नियंत्रण रखा जाता है तो इसे दुर्भाग्य पूर्ण ही कहा जायेगा | जिस देश की संस्कृति संसार में सर्वोत्तम रही है और जहाँ एक से बढ़कर एक ज्ञानी व्यक्ति पैदा हुए हैं, वहां पर किसी भी प्रकार के ज्ञान को स्पष्ट करने में कोई कमी नहीं रहने दी जानी चाहिए | इसी प्रकार का एक ज्ञान है, काम-विज्ञान | इस विषय को स्पष्ट करने में हम सभी थोड़े बहुत चूक ही जाते हैं जबकि यह विषय हमारे यहाँ कोणार्क, खजुराहो आदि देवालयों में पत्थरों तक पर स्पष्ट रूप से उकेरा गया है |
     शंकराचार्य जी महाराज भी इस विषय पर स्पष्टता के साथ कह रहे हैं कि मनुष्य नारी देह के अंगों को देखकर उसमें मोहित हो जाता है और स्त्री को किसी भी प्रकार से प्राप्त कर भोगना चाहता है | लेकिन अगर हम गंभीरता के साथ देखें तो पाएंगे कि उस स्त्री की सुन्दरता के पीछे केवल हाड़ और मांस के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है | क्या कोई मनुष्य हाड़ और मांस को ही जीवन भर प्राप्त करने का प्रयास करता रहेगा ? इस बात को मैं एक दृष्टान्त देते हुए स्पष्ट करने का प्रयास कर रहा हूँ | एक बार एक राज्य का राजा किसी गरीब घर की सुन्दर कन्या पर मोहित हो गया | उसने उस कन्या के पिता के समक्ष उस कन्या से विवाह का प्रस्ताव रखा | राजा आयु में बहुत बड़ा था और कन्या सुकुमार अवस्था की थी | कन्या नहीं चाहती थी कि उसका उस बूढ़े राजा के साथ विवाह हो | परन्तु राजा को स्पष्ट मना भी कैसे कर दे | उसने एक निर्णय लिया और कहा कि वह राजा से विवाह करने को तैयार है, परन्तु एक माह बाद राजा यहाँ आये, मुझे देखे और फिर उससे विवाह का निर्णय करे | राजा सहर्ष मान गया | एक माह बाद राजा वहां पहुंचा और कन्या को देखना चाहा | कन्या को उसके समक्ष प्रस्तुत किया गया | यह क्या, एक माह पहले वाली रूपवती कन्या तो अब बुढ़िया सी लगने लगी है | गाल पिचक गए हैं और शरीर में चमड़ी और हड्डियों के अतिरिक्त कुछ भी शेष नहीं रहा है | मांसल शरीर हड्डियों का ढांचा मात्र रह गया है | ऐसे अस्थिपंजर से विवाह कौन और किस लिए करे ? राजा यह देखकर हतप्रभ रह गया | राजा ने इसका कारण जानना चाहा कि उस सुन्दर कन्या का वह रूप-रंग कहाँ गया ? कन्या ने कोने में पड़े घड़ों की तरफ इशारा किया कि वह रूप-रंग इन घड़ों में बंद है |
            राजा ने एक घड़े को खुलवाया तो उससे आ रही मल की गंध को सहन नहीं कर सका | वास्तव में हुआ यह था कि राजा के विवाह प्रस्ताव के बाद से ही उस कन्या ने प्रतिदिन जुलाब लेना प्रारम्भ कर दिया जिससे उसे अतिसार हो गया और वह एक माह में ही सुन्दर से कुरूप होकर रह गयी | कहने का अर्थ यह है कि जब शरीर को रूपवान मांस ही बनाता है और बिना मांस के सुन्दरता भी केवल हड्डियों पर कैसे टिकती ? हमारे पूर्वजों ने पत्थरों पर विभिन्न काम मुद्राओं में रत स्त्री-पुरुष की मूर्तियाँ उकेरी ही इसलिए थी कि प्रत्येक मनुष्य को उस मुद्रा के पीछे छिपा पत्थर दिखाई पड़े जिससे उसकी एक स्त्री में आसक्ति दूर हो सके | स्त्री को केवल भोग्या समझकर उसे पाने की कामना न करें बल्कि उसकी सुन्दरता के पीछे छिपे आधार को देखें | उस आधार को समझते ही आपकी भी स्त्री के प्रति आसक्ति न रह पायेगी |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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