भज गोविन्दम् – श्लोक-3(कल
से आगे)-
काम एक ऐसा विषय है, जिसे प्रत्येक
व्यक्ति अपने जीवन में सुख प्राप्त करने के लिए भोगना ही चाहता है | काम और स्त्री
का आपस में कितना गहरा सम्बन्ध है, उसका आप स्वयं अपने ह्रदय पर हाथ लगाकर देख
सकते हैं | सत्य कहूँ, यह काम ही वह विषय है जिसके बारे में मनुष्य जीवन में सर्वाधिक
सोचता है | क्यों सोचता है, यह विस्तृत विवेचन का विषय है | यह विषय उसके मन को
कभी छोड़ता ही नहीं है | काम का चिंतन मनुष्य के मन में सदैव चलता ही रहता है |
मनुष्य की मानसिक स्थिति को काम सर्वाधिक प्रभावित करता है | मनुष्य की पांचों
ज्ञानेन्द्रियाँ इसमें सहयोग करती है | सर्वाधिक सहयोग करने वाली दो ज्ञानेन्द्रियाँ
है - दर्शनेंद्रिय (नेत्र) और स्पर्शेन्द्रिय (त्वचा) | इसीलिए कहा जाता है कि काम
सदैव आँखों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है और उसकी पराकाष्ठा स्पर्श कर
लेने में होती है | परन्तु एक बार के स्पर्श से मनुष्य कभी भी संतुष्ट नहीं हो
सकता | स्त्री का स्पर्श ही मनुष्य की काम-तृष्णा को बढ़ा देता है तथा फिर और अधिक से
अधिक बार स्पर्श करने की कामना मन में उठने लगती है | यही कारण है कि मनुष्य अपने
जीवन में इस काम के बारे में सर्वाधिक सोचता है |
शंकराचार्य जी ने यहाँ स्त्री के
शरीर के अंगों, विशेष रूप से स्तन और नाभि की बात कही है | स्तन और नाभि का आकर्षण
सर्वाधिक होता है, जो कृष्ण वर्ण की नारी को भी सुन्दरता प्रदान कर देता है | यह
प्रकृति का नियम है जो कहता है कि विपरीत लिंग का आकर्षण स्वाभाविक है | परन्तु उस
आकर्षण से प्रभावित होकर पुरुष काम में लिप्त तो हो जाता है परन्तु यह काम-भोग उसे
जीवन भर तृप्ति नहीं दे सकता | इसीलिए विद्वानों ने कहा है कि काम अर्थात सेक्स ही
वह विषय है जिसके बारे में मनुष्य जीवन भर विचार करता रहता है | विपरीत लिंग के
आकर्षण के कारण एक स्त्री का भी एक पुरुष में आकर्षण होता ही है | स्त्री भी सतत
काम के बारे में विचार करती रहती है परन्तु स्त्री की काम भावना प्रायः अव्यक्त ही
रह जाती है, चाहे ऐसा हमारे संस्कारों के कारण ही होता हो | आज हमारे संस्कारों से
हम दूर होते जा रहे हैं और उसके कारण पड़ने वाले प्रभाव को हम स्पष्टतः देख ही रहे
हैं | आज स्त्री, नारी-स्वतंत्रता के नाम पर कामुक होकर काम-भोग को भी अपना एक
अधिकार समझने लगी है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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