भज गोविन्दम् –
श्लोक सं.3(कल से आगे-4)-
स्त्री की रचना प्रकृति ने की ही इस
प्रकार है कि प्रत्येक स्त्री सुन्दर दिखाई दे | स्त्री के अंगों का आकार ही
स्त्री को सुन्दरता प्रदान करता है, केवल उसका गौर वर्ण होना ही उसे सुन्दर कहलाने
के लिए पर्याप्त नहीं है | शरीर विज्ञान के अनुसार जब बालिका युवावस्था की दहलीज
पर कदम रखती है, तब उसके शरीर में पैदा होने वाले हार्मोंस के प्रभाव से शरीर के विशेष
भागों में वसा का अधिक संचय प्रारम्भ हो जाता है | यह वसा का संचय उसके शरीर को
सुडौल और आकर्षक बनाता है | इसी प्रकार एक बालक के युवावस्था में प्रवेश करने पर
उसके भीतर पैदा होने वाले हार्मोंस के प्रभाव से उसका शरीर मांसपेशियों के कारण
बलिष्ठ प्रतीत होने लगता है | इस प्रकार युवावस्था में एक स्त्री का आकर्षण पुरुष के
प्रति और एक पुरुष का स्त्री के प्रति होना प्राकृतिक तौर पर स्वाभाविक है | इसी
आकर्षण के पैदा होने का प्रारम्भ आँखों के माध्यम से शरीर में उत्पन्न होता है, जो
स्पर्श दर स्पर्श जीवन पर्यंत चलता रहता है | तृप्ति फिर भी नहीं मिलती | जब हार्मोन्स
का स्राव कम होने लगता है, तब तक मन में यह काम-भाव स्थाई रूप से अपना स्थान बना
लेता है | युवावस्था के बीत जाने पर मनुष्य में स्पर्श-भोग शारीरिक स्तर पर होना
लगभग असंभव हो जाता है परन्तु आँखों के माध्यम से स्त्री का आकर्षण उसे प्रभावित किये
बिना नहीं रहता | इस कारण से उसके मन में ऐसे ही आकर्षण के प्रभाव से स्त्री के स्पर्श
का चिंतन जीवन भर चलता रहता है | इसलिए आवश्यक है कि इस विपरीत लिंग के प्रति होने
वाले आकर्षण के पीछे छुपे वसा और मांस आदि के आधार का बारम्बार ध्यान करें, जिससे
शरीर के प्रति आकर्षण समाप्त हो सके और मन में स्पर्श-भोग की कामना तक न उठ पाए,
चिंतन करना तो बहुत दूर की बात होगी | कोई बिरला ही इस अवस्था को छू सकता है |
बहुत मुश्किल है, इस काम चिंतन की वृति को त्यागना | ब्रह्मलीन स्वामी श्री
रामसुखदास जी महाराज कहा करते थे कि यह शरीर मल-मूत्र बनाने का एक कारखाना मात्र
है | उनकी इस बात को स्त्री/पुरुष के प्रति आकर्षण होने के समय अगर ध्यान में
रखें, तो काम-भाव से मुक्त हुआ जा सकता है |
इसीलिए
शंकराचार्य जी कह रहे हैं कि प्रकृति के गुणों के कारण स्त्री के स्तन, नाभि आदि अंगों
के कारण उसमें आकर्षण होना स्वाभाविक है | परन्तु स्त्री/पुरुष के उस रूप के पीछे छिपे
हुए हाड़-मांस, वसा आदि का बारम्बार चिंतन करते रहें | ऐसे चिंतन से धीरे-धीरे स्त्री/पुरुष
में स्वाभाविक आकर्षण समाप्त हो जायेगा | इस आकर्षण से मुक्त होने के लिए गोविन्द
को सदैव भजते रहें |
कल श्लोक 3 का समापन
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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