Friday, September 29, 2017

भज गोविन्दम् - श्लोक सं.4

भज गोविन्दम् – श्लोक-4
नलिनीदलगतसलिलंतरलं, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम् |
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोकंशोकहतं च समस्तम् ||4||
अर्थात हमारा जीवन क्षण भंगुर है | यह उस पानी की बूँद की तरह है. जो कमल की पंखुड़ियों से गिरकर समुद्र के विशाल जल स्रोत में अपना अस्तित्व खो देती है| हमारे चारों और प्राणी तरह-तरह की कुंठाओं एवं कष्ट से पीड़ित हैं | ऐसे जीवन में कैसी सुन्दरता ?
            मनुष्य का जीवन क्षण भंगुर ही है | आप स्वयं ही देख लीजिये, कल हम जिस व्यक्ति को स्वस्थ और घूमता फिरता देख रहे थे, वह आज हमारे बीच नहीं है | एक क्षण बाद क्या होगा कोई नहीं बता सकता | हम यहाँ इस भौतिक जीवन में आसक्त होकर इस प्रकार जी रहे हैं, मानो युग युगों तक यहाँ रहने के लिए आये है | आदि शंकराचार्य जी कह रहे हैं कि जैसे कमल के फूल की एक पंखुड़ी पर पानी की एक बूँद ठहरी हुयी रहती है, उसका कभी भी नष्ट हो जाना संभव है, वैसे ही इस संसार में मनुष्य का जीवन है | कमल की पंखुड़ी पर ठहरी हुई पानी की वह एक बूँद गर्मी और धूप से वाष्पीकृत होकर कभी भी अपना अस्तित्व खो सकती है अथवा अपने स्थान से फिसलकर विशाल समुद्र के पानी में गिरकर खो सकती है | इसी एक बूँद के भविष्य की तरह ही एक मनुष्य का जीवन है, जो कभी भी समाप्त हो सकता है | कबीर कहते हैं-
पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात |
देखत ही छुप जायेगा, ज्यों तारा परभात ||
मनुष्य का जीवन उसी पानी की बूँद के सामान है, जो कभी भी नष्ट हो सकती है | भोर का तारा (बुध) कुछ समय के लिए ही उदय होता है परन्तु ज्योंही सूर्य के दर्शन होने वाले होते हैं वह तारा अदृश्य हो जाता है | इसी प्रकार मनुष्य का जीवन है, कुछ समय के लिए मिला है और वह भी शीघ्र ही नष्ट होने जा रहा है | शंकराचार्य जी महाराज कह रहे हैं कि इस जीवन का अधिक से अधिक सदुपयोग कर लिए जाये, यही सत्य है |
              जीवन की सुन्दरता इसके सही उपयोग कर लेने में ही है | नहीं तो इस दुःख के सागर रुपी संसार में एक व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार की सुन्दरता नहीं है | जन्म लेने के बाद युवावस्था तक जो शारीरिक सुन्दरता दृष्टिगोचर होती है, वह सुन्दरता भी स्थूल शरीर की ही है और वह भी अस्थाई | एक दिन यह शरीर भी जर्जर होकर समाप्त हो जायेगा | केवल प्रभु का भजन ही जीवन को सुन्दर बना सकता है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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