भज गोविन्दम – श्लोक-1-कल
से आगे-
शास्त्रों और व्याकरण को रटने से कभी
भी मुक्त नहीं हुआ जा सकता | पुस्तकों में संसार भर का ज्ञान लिखा हुआ पड़ा है
परन्तु क्या पुस्तकें कभी मुक्त हो सकती है ? देवालयों में बजने वाले टेप दिन-रात हरि
के गुणगान करते रहते हैं परन्तु क्या वह टेप जानती है कि वह क्या कर रही है ? क्या
पुस्तक जानती है कि उसमें क्या लिखा हुआ है ? नहीं, दोनों ही नहीं जानते | नहीं
जानते इसलिए कभी मुक्त नहीं हो सकते | इसी प्रकार मनुष्य भी केवल शास्त्रों को रट
कर, उन्हें प्रतिदिन पढ़कर मुक्त नहीं हो सकता | उस शास्त्र में लिखे ज्ञान का
अनुभव हो जाने से ही वह मोक्ष को प्राप्त हो सकता है | इसी को होश पूर्वक जीना
कहते हैं | अनुभव तभी हो सकता है, जब आप सदैव उस ज्ञान पर दृष्टि जमाये रखें |
हम शास्त्रों को केवल पढ़कर उसे
मात्र एक क्रिया बना देते हैं | क्रिया तो मंदिर में बजती टेप में भी होती है |
ऐसे शास्त्रों को पढ़ने में और उस टेप के बजने में, दोनों में ही किसी प्रकार का
अंतर नहीं है | आप शास्त्र पढ़ें, यह उचित है परन्तु पढ़ने को मात्र एक क्रिया बना
लें, उससे कोई लाभ नहीं होने वाला | क्रिया से आगे बढ़ें, शास्त्र-पठन स्वयं ही छूट
जायेंगे | शास्त्र मार्गदर्शक अवश्य है, मंजिल नहीं |एक व्यक्ति सालासर जा रहा था |
उसको एक स्थान पर milestone लगा दिखाई दिया, जिस पर लिखा था सालासर 20 km.| वह उसी
को पकड़ कर बैठ गया और कहने लगा, मैं सालासर पहुँच गया हूँ | वास्तविकता में
milestone मार्गदर्शक है, वह बताता है कि आप अपने लक्ष्य से कितने दूर हैं ? उस मार्गदर्शक
को पकड़कर बैठ जाने से आप लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकते | इसी प्रकार शास्त्र केवल मार्गदर्शक
की भूमिका ही निभाते हैं | उनको पकड़ कर बैठ जाने से परमात्मा नहीं मिलेंगे |
परमात्मा को पाना है तो शास्त्रों पर ही अटक कर नहीं रह जाना है, बल्कि हरि को जपते
हुए निरंतर आगे बढ़ते रहना होगा | इसीलिए इस श्लोक में शंकराचार्य महाराज कहते हैं-
भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते | सदैव गोविन्द को भजते रहना ही परमात्मा
की ओर चलने की यात्रा है |
कल श्लोक सं. 2
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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