ज्ञान-विज्ञान-8
तत्वज्ञान को प्राप्त करना मुश्किल अवश्य
हो सकता है, असंभव कदापि नहीं | परमात्मा
स्वयं गीता में कह रहे हैं कि ‘हाँ, यह सत्य है कि अत्यल्प संख्या में व्यक्ति
तत्वज्ञान के प्रति उत्सुक होते हैं और उनमें भी कोई एक इसे प्राप्त करने का प्रयास
करता है | ऐसे कई प्रयास करने वालों में से कोई एक व्यक्ति ही मुझको अर्थात ज्ञान
को प्राप्त कर पाता है |’ भगवान ने इस श्लोक में दो महत्वपूर्ण बातें कही है | प्रथम
बात- तत्वज्ञान को प्राप्त करने के मार्ग पर चलने वाला प्रत्येक मनुष्य योगी होता
है | दूसरी बात-परमात्मा को यथार्थ रूप से जानने के लिए उनके प्रति परायण होना
आवश्यक है | प्रथम बात के अनुसार इस भौतिक संसार में साधारण मनुष्यों की तुलना में
योगियों की संख्या बहुत ही कम है | दूसरी बात के अनुसार इन योगियों में भी
परमात्मा के परायण बहुत ही कम योगी हो पाते हैं तभी इतने योगियों में से कोई एक योगी
ही परमात्मा को यथार्थ रूप से जान पाता है |
इसी लिए गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन
को सर्वप्रथम तो योगी हो जाने को कहते हैं (गीता-6/46) और बाद में परायण होने को (गीता-9/34)
कहते हैं | परमात्मा को यथार्थ रूप से जानने का सुगम मार्ग यही है | संसार से
विमुख होकर परमात्मा के सम्मुख होना आपको विज्ञान से ज्ञान की और ले जाने का मार्ग
प्रशस्त करता है | संसार से विमुख होने का अर्थ पलायन से नहीं है बल्कि भौतिकता से
परे चले जाना है | भौतिकता आपको बांधती है और ऐसे किसी भी बंधन को तोड़ पाना आसान कार्य
नहीं है | बंधन को छोडना आपके हाथ में है, क्योंकि सभी बंधन आपके ही पैदा किये हुए
हैं | बंधे हुए आप स्वयं हैं और इन बंधनों से मुक्त होना भी आपके हाथ में है | एक
बार इन बंधनों से मुक्त होते ही आप योगी बन जाते है क्योंकि बंधन मुक्त व्यक्ति ही
ज्ञान प्राप्ति के लिए एक उपयुक्त व्यक्ति होता है | बंधन आपको ज्ञान से सदैव दूर
ही रखता है क्योंकि बंधन आपको एक सीमा तक सीमित कर देता है जबकि ज्ञान व परमात्मा
असीम है |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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