Sunday, August 7, 2016

ज्ञान-विज्ञान-5

               जैसा कि मैंने कहा है कि सभी विज्ञान ज्ञान से ही निकले हैं, इसका अर्थ है कि एक विषय से सम्बंधित ज्ञान को जान लेना ही उस विषय का विज्ञान है | जैसे कि वनस्पतियों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लेने का नाम वनस्पति-विज्ञान है और चिकित्सा का ज्ञान प्राप्त कर लेने  का नाम चिकित्सा-विज्ञान है आदि | परन्तु एक मात्र विषय का ज्ञान प्राप्त कर लेने मात्र से ही ज्ञानी हो जाना नहीं होता है बल्कि समस्त का समग्र ज्ञान प्राप्त कर लेने से ही ज्ञानी हुआ जा सकता है | जिसके अंतर्गत समस्त आ जाता है, उसका एक ही नाम है और वह नाम है ‘परमात्मा’ | अतः परमात्मा का ज्ञान हो जाना ही वास्तव में ज्ञान को उपलब्ध हो जाना है अन्यथा शेष सभी तो विज्ञान है, अविद्या ही है |
            विज्ञान हमें संसार में बनाये रखता है, संसार के साथ बांधता है जबकि ज्ञान हमें मुक्त करता है | तुच्छ के साथ बने रहना एक बंधन है और समस्त के साथ एक हो जाना मोक्ष को प्राप्त हो जाना है | विज्ञान सांसारिक और व्यक्त को समझने और समझाने का ज्ञान है और इस कारण से वह एक सीमा में बंधा हुआ है जबकि ज्ञान अपरिमेय है, असीम है | असीम को जानना लगभग असंभव है, इसीलिए परमात्मा को अविज्ञेय कहा गया है | इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि परमात्मा को जाना ही नहीं जा सकता | इन्द्रियां हमें केवल भौतिक वस्तुओं का ज्ञान ही करा सकती है, परमात्मा का नहीं क्योंकि समस्त भौतिक वस्तुएं असत् है, जबकि परमात्मा सत हैं | असत् का ज्ञान असत् से ही हो सकता है, सत का ज्ञान असत् से नहीं | भौतिकता असत् है और इन्द्रियां भी असत् है | हमारी सबसे बड़ी कमी यही है कि हम असत् से सत को जानने का प्रयास करते  हैं |
क्रमशः

|| हरिः शरणम् ||

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