Tuesday, August 16, 2016

ज्ञान-विज्ञान-14

ज्ञान-विज्ञान-14
             ज्ञान-मार्ग अवश्य ही श्रेष्ठ मार्ग है, इससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता, परन्तु इस मार्ग की सबसे बड़ी कमी इस मार्ग से विचलित हो जाने की ही है | परमात्मा के प्रति परायण होना इस मार्ग से विचलन को रोक सकता है | रामचरितमानस में गोस्वामीजी लिखते हैं-
‘ग्यान पंथ कृपान के धारा | परत खगेस होइ नहिं बारा ||
जो निर्विघ्न पंथ निर्बहई | सो कैवल्य परम पद लहई ||’ (उत्तरकाण्ड-119/1-2)
अर्थात ज्ञान का मार्ग दुधारी तलवार की धार के समान है | हे पक्षिराज ! इस मार्ग से गिरते देर नहीं लगती | जो इस मार्ग को निर्विघ्न निबाह ले जाता है, वही कैवल्य (मोक्ष) परमपद को प्राप्त करता है |
        गोस्वामीजी की यह एक विशेषता है कि वे भीतर तक पहुंचकर असर कर जाये, ऐसी मर्म की बात को बड़ी ही सादगी से कह देते हैं | गरुड़, जो कि भगवान का वाहन है, उसे भी स्वयं को बड़ा होने का अभिमान हो गया था | एक बार उसे भ्रम हो गया था कि संसार के लोगों को बंधनमुक्त करने वाले परमात्मा को एक बार बंधन से मैंने ही मुक्त किया था | त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम नागपाश में बंध गए थे तब मैंने ही उन्हें मुक्त किया था | इस प्रकार मैं श्री राम से भी बड़ा हूँ | यह उसका अहंकार था | उसे इस अहंकार से मुक्त करने के लिए काकभुसुंडि जी के पास भेजा गया | कौआ पक्षियों में निम्नतम स्तर का पक्षी माना जाता है और गरुड़ तो स्वयं पक्षियों का राजा है ही | व्यक्ति का अहंकार भी तभी टूटता है, जब उससे निम्न श्रेणी का व्यक्ति कोई ऐसी बात कह दे जो उसको भीतर तक छू जाये | ऐसी स्थिति में उसका अहंकार गिर जाता है और वह वास्तविकता से परिचित हो जाता है |
          परमात्मा की मर्जी है कि वे इस संसार में किससे कौन सा कार्य करवाए ? हमें यह भ्रम अपने मन में कभी भी नहीं पालना चाहिए कि मेरे अतिरिक्त यह कार्य कोई और व्यक्ति नहीं कर सकता | ज्ञान हमें अहंकार ग्रस्त कर सकता है, इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए | हमें तो प्रत्येक सत्कर्म को अपना सौभाग्य समझना चाहिए कि परमात्मा ने यह कार्य करवाने के लिए लाखों व्यक्तियों में से केवल मुझे ही योग्य समझा है | ‘यह सब केवल उस प्रभु की ही मुझ पर असीम कृपा है’, सदैव ऐसा मानना ही आपकी परमात्मा के प्रति परायणता है | अतः ज्ञान के साथ परमात्मा के प्रति परायणता रखने से ही उसके परम स्वरूप को यथार्थ रूप से जाना जा सकता है |
क्रमशः

|| हरिः शरणम् ||     

No comments:

Post a Comment