Friday, August 19, 2016

ज्ञान-विज्ञान-17

ज्ञान-विज्ञान-17 
                                   प्राणियों के भौतिक शरीर के निर्माण में इस अपरा प्रकृति की महत्वपूर्ण भूमिका तो है ही, साथ ही साथ इसकी भूमिका प्राणियों के भरण-पोषण से लेकर समस्त सुख सुविधाएँ उपलब्ध करवाने में भी है | स्थूल प्रकृति के प्रारम्भ के पाँच तत्व तो इस संसार में प्रत्येक स्थान पर उपलब्ध हैं और ये सभी ऊर्जा के भण्डार हैं | शेष तीन तत्व यथा मन, बुद्धि और अहंकार का उपयोग करके मानव इन ऊर्जा स्रोतों से अपने जीवन को सुखमय बनाने में लगा है | इन ऊर्जा भंडारों को आधार बनाकर वह अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए नित्य नवीन प्रयोग करता रहता है | इन्हीं से कई नए आविष्कार हुए हैं और उनका उपयोग मनुष्य कर भी रहा है | परन्तु जहाँ सुख है, वहां दुःख का होना अवश्यम्भावी है | यही कारण है कि इन ऊर्जा आधारित संयंत्र और साधन मनुष्य के लिये दुःख के कारण भी बने हुए हैं | ऐसे सभी साधन और उनके आविष्कार, विज्ञान के अंतर्गत ही है |
                                 इस अष्टधा प्रकृति का ज्ञान प्राप्त कर व्यक्ति यही समझता है कि उसने समस्त ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा को जान लिया है | वह इस जड़ प्रकृति का ज्ञान प्राप्त कर अपने जीवन को सुखी बनाने का दम्भ अवश्य भर सकता है परन्तु क्या उसको यहीं तक पहुंचकर समझ लेना चाहिए कि उसने सब कुछ जान लिया है ? जड़ प्रकृति के ज्ञान को विज्ञान कहते हैं और विज्ञान से मनुष्य चाँद और ग्रहों पर पहुँच सकता है, यंत्र और मशीनें आदि बना सकता है, अपने जीवनोपयोगी सामग्री का निर्माण कर सकता है परन्तु वह किसी मृत शरीर में चेतनता नहीं ला सकता, वह पत्थर की बनी मूर्ति को सजीव नहीं कर सकता | भविष्य में वह अगर ऐसा करना संभव कर सकता है तो यही माना जायेगा कि वह परमात्मा को जानने और समझने के और करीब पहुँच रहा है अन्यथा विज्ञान पर आकर अटक जाना ज्ञान-पथ से विचलन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है |
क्रमशः 
|| हरिःशरणम् ||

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