Wednesday, August 17, 2016

ज्ञान-विज्ञान-15

ज्ञान-विज्ञान-15
विज्ञान से ज्ञान की ओर प्रस्थान करते हुए, परमात्मा के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए हम उसके वास्तविक स्वरूप को जान सकते हैं | इस विवेचन से स्पष्ट होता है कि व्यक्ति को परमात्मा को जानने और समझने के लिए तीन स्तर से गुजरना होता है | किसी एक स्तर पर आकर अटक जाना ही परमात्म मार्ग से विचलन है | अतः व्यक्ति को धैर्य के साथ सभी तीन सीढ़ियों को पार करना होगा, तभी परमात्मा का यथार्थ ज्ञान संभव होगा, अन्यथा नहीं | प्रथम स्तर है विज्ञान का, दूसरा स्तर है ज्ञान का और तीसरा स्तर है परमात्मा के प्रति श्रद्धा भाव का | विज्ञान हमें उस परमपिता के व्यक्त भौतिक स्वरूप का ज्ञान कराता है, शास्त्रीय ज्ञान हमें उस भौतिक व्यक्त स्वरूप के आधार अर्थात अव्यक्त मूल का ज्ञान कराता है और इस ज्ञान और विज्ञान के साथ अगर परमात्मा के प्रति परायणता हो, श्रद्धा भाव हो तो फिर ऐसा ज्ञान इस व्यक्त-अव्यक्त के भेद को ही समाप्त कर देता है | व्यक्त-अव्यक्त के बीच का भेद समाप्त हो जाना ही परमात्मा को यथार्थ रूप से जान लेना है | गीता के इस ज्ञान-विज्ञान योग नामक सातवें अध्याय का यही सार है |
गीता की यह विशेषता है कि सारगर्भित बात को भगवान के द्वारा अध्याय के प्रारम्भ में ही कह दिया जाता है और फिर उस बात को धीरे धीरे स्पष्ट किया जाता है | अध्याय का अंत आते आते आदेशात्मक रूप से वास्तविक बात को एक दो श्लोक में स्पष्ट कर दिया जाता है | इस प्रकार जब हम इस अध्याय के तीसरे श्लोक को भली भांति समझ लेते हैं तब ज्ञान-विज्ञान का सारा अंतर भी मिट जाता है और परमात्मा को समझने की जिज्ञासा भी शांत हो जाती है | इससे आगे के श्लोक इन्हीं तीनों स्तर को विस्तार देते हुए विषय को और अधिक स्पष्ट करते हैं |
क्रमशः
|| हरिःशरणम् ||

No comments:

Post a Comment