Saturday, August 13, 2016

ज्ञान-विज्ञान-11

ज्ञान-विज्ञान-11
            प्रत्येक व्यक्ति जो कि ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है, वह योगी है | इस प्रकार इस संसार में हजारों में कोई एक योगी बन पाता है | योगी ज्ञान प्राप्त कर सकने की योग्यता अवश्य रखता है और आगे भविष्य में वह ज्ञान प्राप्त कर ज्ञानी भी हो सकता है परन्तु प्रत्येक योगी परमात्मा को यथार्थ रूप से जानता ही हो, यह आवश्यक नहीं है | ज्ञान प्राप्त करने के लिए योगी ज्ञान-मार्ग पर चलता अवश्य ही है परन्तु परमात्मा के वास्तविक स्वरूप से वह अभी भी अनभिज्ञ ही रहता है | इसी लिए गीता के इस ज्ञान-विज्ञान योग नामक अध्याय के तीसरे श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि उन योगियों में भी कोई एक योगी ही मेरे परायण होकर मुझको यथार्थ रूप से जानता है | योगी को कथित ज्ञान पाकर वहीँ पर ही अटककर नहीं रह जाना चाहिए अन्यथा वह ज्ञानी होते हुए भी परमात्मा को नहीं जान पायेगा |
                  योगी को परमात्मा के परायण होने पर ही परमात्मा को जानने का अवसर मिलेगा और यह अवसर परमात्मा स्वयं ही उपलब्ध करवाते है | रामचरित मानस में गोस्वामीजी लिखते हैं-
‘सोइ जानइ जेहि देहु जनाई | जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ||’(अयोध्याकाण्ड-127/3)
अर्थात प्रभु ! आपको वही जानता है, जिसे आप जना देते हैं और आपको जानते ही वह आपका स्वरूप ही बन जाता है |
       भगवान को वास्तविक रूप से जानने के लिए उनके परायण होना आवश्यक है | उनके परायण होते ही परमात्मा उस पर कृपा कर उसे अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित करा देते हैं | बिना परमात्मा के  परायण हुए ज्ञान योगी की सबसे बड़ी कमजोरी उसका स्वयं का अहंकारित हो जाना है | उसमें ज्ञान का अहंकार पैदा हो जाता है और वह इस संसार में ज्ञान मार्ग को ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग मानने लगता है | यही अहंकार उसको परमात्मा के वास्तविक स्वरूप को जानने से वंचित कर देता है | उसको परमात्मा के प्रति परायण होना ही होगा तभी वह अपने ज्ञान से परमात्मा को जान पायेगा अन्यथा नहीं |
क्रमशः  

|| हरिः शरणम् ||

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