Monday, August 8, 2016

ज्ञान-विज्ञान-6

ज्ञान-विज्ञान-6
       भौतिकता व्यक्त है और परमात्मा अव्यक्त है | प्रत्येक व्यक्त के पीछे अव्यक्त अवश्य है अन्यथा वह व्यक्त हो ही नहीं सकता | अगर आप घड़ा देख रहें हैं तो घड़ा व्यक्त है और उस घड़े के निर्माण में लगी मिट्टी एक घड़े के रूप में व्यक्त होते हुए भी हमारी भौतिक दृष्टि में अव्यक्त है | इसी प्रकार जब श्याम पट्ट पर चाक से  कुछ वाक्य लिख दिए जाये तो वे वाक्य तो व्यक्त  हो जाते हैं परन्तु जिस पर ये वाक्य लिखे गए हैं, वह श्याम पट्ट हमारी भौतिक दृष्टि में दिखाई नहीं पड़ता है | इसी प्रकार इस व्यक्त सृष्टि के पीछे  परमात्मा ही है और वह स्वयं अव्यक्त है | जिस दिन इस बात का हमें ज्ञान हो जाता है, उस दिन सत - असत्, व्यक्त - अव्यक्त का भेद भी समाप्त हो जाता है | यह भेद समाप्त हो जाना ही वास्तविक ज्ञान को प्राप्त कर लेना है | इसीलिए गीता में विभिन्न स्थानों पर भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि सत भी मैं हूँ और असत् भी मैं हूँ, फिर कहते हैं मैं सत भी नहीं हूँ और असत् भी नहीं हूँ और अंत में कहते हैं कि मैं सत और असत् दोनों से परे हूँ | सत और असत् से परे हो जाना ही वास्तविक ज्ञान है, परमात्मा को जान लेना है | यह ज्ञान स्थूल इन्द्रियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता | इसी कारण से परमात्मा को अविज्ञेय कहा जाता है |
            अभी हरिः शरणम् आश्रम में आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा ने मुझे ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदास जी से संबंधित एक प्रसंग सुनाया | जब स्वामीजी गुवाहाटी में सत्संग कर रहे थे, तब किसी एक सज्जन ने उनसे पूछा कि क्या आपने कभी परमात्मा के दर्शन किये हैं ? तब स्वामीजी ने उसको कहा कि आपने अपने पास कितनी सम्पति इकट्ठी कर रखी है, क्या यह आप सब को बताते हैं ? नहीं न, तो फिर मैं आपको क्यों बताऊँ ? सही उत्तर दिया स्वामीजी क्योंकि परमात्मा के दर्शन को शब्दों के माध्यम से बताया ही नहीं जा सकता | परमात्मा  का ज्ञान हो जाना, उसके दर्शन कर लेना कोई भौतिक वस्तु को प्राप्त लेना नहीं है, जो कि उसको प्रत्येक स्थान पर कहते हुए घूमा जाये | यह ज्ञान तो ‘गूंगा केरि शर्करा, खाय और मुसकाय’ जैसी है | जैसे एक गूंगा शक्कर खाकर, उसकी मिठास को केवल एक मुस्कुराहट देकर व्यक्त कर देता है वैसे ही परमात्मा के दर्शन पाकर आनंदित ही हुआ जा सकता है, उसे शब्दों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता | विज्ञान को शब्दों के माध्यम से प्रकट किया जा सकता है जबकि ज्ञान आत्मानुभूति है, उसे शब्दों की आवश्यकता नहीं है | यही विज्ञान और ज्ञान में मूलभूत अंतर है |
क्रमशः

|| हरिः शरणम् ||

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