प्रेम की चर्चा अधूरी रहेगी अगर हम परमात्मा के अवतारों की चर्चा न करें|जितने भी ईश्वरीय अवतार इस संसार में आये है,वे सभी प्रेम से परिपूर्ण थे |उन्होंने इस धरा पर प्रेम के पदचिन्ह छोड़े हैं जिनका अनुगमन कर मनुष्य प्रेम को प्राप्त कर सकता है |
सबसे पहले मैं उदहारण देना चहुँगा ईसाई धर्म के प्रवर्तक प्रभु ईशु का |जिनका सम्पूर्ण जीवन प्रेम करने में ही व्यतीत हुआ |उनमे क्षमा भाव उनकी रग रग में समाया हुआ था |वे असहायों की सेवा करने में सदैव तत्पर रहा करते थे |कभी भी अपने से विरोधी व्यक्ति से उन्होंने ईर्ष्या नहीं की,वैमनस्य की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती |जब जीवन के अंतिम समय पर उन्हें सलीब पर लटकाया जा रहा था ,तब भी उन्होंने अपना क्षमाभाव नहीं त्यागा |उस वक्त उनके मुंह से निकले शब्द थे-"हे ईश्वर!इन्हें क्षमा करना,क्योंकि ये लोग यह नहीं जानते कि ये कर क्या रहे हैं?" अंत समय में भी ऐसा क्षमा भाव किसी फ़रिश्ते में ही हो सकता है |आज इस धर्म के अनुयाइयों में मदर टेरेसा को साक्षात् प्रेम की मूर्ति माना जा सकता है |
इस्लाम धर्म के संस्थापक मोहम्मद साहब इसी तरह ही प्रेम के एक सटीक उदहारण हैं|एक साधारण घर में पैदा हुए मोहम्मद साहब ने अपनी सम्पूर्ण जिन्दगी एक साधारण मनुष्य की तरह ही गुजारी|दीन-दुखियों की सेवा के लिए वे सदैव ही तत्पर रहते थे |उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी |उनके साथ कोई अगर दुर्व्यवहार करता था तो वे सहजभाव से उसे क्षमा कर दिया करते थे |इस बारे में एक घटना उनके जीवन से सम्बन्धित है जो बहुत प्रसिद्द है |मोहम्मद साहब जब घर से बाहर जाने के लिए वस्त्रादि पहन कर निकलते थे तो रास्ते में पड़ने वाले घर से एक महिला उनपर रोजाना कचरा फैक दिया करती थी |मोहम्मद साहब अपने कपड़ों से कचरा झाडकर मुस्कुराते हुए आगे निकल जाया करते थे |यह रोजाना का एक क्रम बन गया था |एक बार ३-४ दिनों तक लगातार महिला ने उनपर कचरा नहीं फैंका |मोहम्मद साहब को बड़ा अचरज हुआ |पांचवें दिन भी जब ऐसा हुआ तो मोहम्मद साहब उसके घर गए और देखा कि महिला बुखार में तप रही है |उन्होंने उसकी लगातार कई दिनों तक तीमारदारी की |वे उसके घर तब तक जाते रहे जब तक कि वह महिला पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो गयी|महिला अब अपने किये पर शर्मिंदा थी |उसने मोहम्मद साहब से माफ़ी मांगी |ऐसा था मोहम्मद साहब में क्षमाभाव |
सनातन धर्म में श्रीकृष्ण पूर्णावतार कहे जाते हैं |उनको पूर्णावतार कहा ही इसीलिए जाता है क्यंकि वे प्रेम से परिपूर्ण थे | उनके द्वारा की गयी रास-लीला ,प्रेम के प्रकटीकरण का सबसे उत्तम उदाहरण है |रास-लीला में वे गोपियों के साथ नृत्य किया करते थे |प्रत्येक गोपिका को ऐसा आभास होता था मानो श्रीकृष्ण उसी के साथ नृत्य कर रहे हों|इससे अच्छा सबके साथ एक जैसे प्रेम का उदाहरण संसार में अन्य मिलना मुश्किल है |जब श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में थे तब उन्होंने जो लीलाएं अपनी माँ यशोदा के साथ की ,गोपियों का माखन चुरा कर खाना,उनकी दूध से भरी मटकियां फोड देना,अपने बाल सखाओं के साथ क्रीडा करना आदि सब प्रेम के उदाहरण ही तो है|एक ईश्वरीय अवतार होते हुए अर्जुन के सारथी बन जाना क्या बिना प्रेम के संभव था ?बरसाने की रहने वाली राधा के साथ उनका प्रेम तो इतनी उच्च कोटि का था कि आज मंदिर में कृष्ण के साथ राधा की मूर्ति होती है,और मंदिर भी राधाकृष्ण मंदिर कहलाता है |कहते हैं कि राधा और कृष्ण में इतना प्रेम था कि दोनों दो न होकर एक ही हो गए थे |जब लोग राधा को उसका नाम पूछते थे तो वह अपना नाम कृष्ण बताया करती थी |इसी प्रकार जब कृष्ण को उनका नाम पूछा जाता था तो वे अपना नाम राधा बताया करते थे |आज भी सनातन धर्म में यह किवदंती है कि श्री कृष्ण को पाना हो तो राधे-राधे बोलना चाहिए |कृष्ण इस नाम को सुनकर खींचे चले आयेंगे|
ये अवतार थे इस कारण से उनका व्यवहार प्रेमपूर्ण था या ये प्रेम से परिपूर्ण थे इसलिए अवतार कहलाये | इस विषय में वाद-विवाद हो सकता है |परन्तु मैं दोनों बातों को ही सही ठहराता हूँ |मेरे मत में प्रेमपूर्ण व्यवहार किसी को भी अवतार होने की योग्यता दिला सकता है |और ऐसा समग्रता के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किसी अवतार का ही हो सकता है |आप चाहे इसे किसी भी प्रकार लें,दोनों ही परिस्थितियों में प्रेम का होना ही महत्वपूर्ण है |
|| हरिः शरणम् ||
सबसे पहले मैं उदहारण देना चहुँगा ईसाई धर्म के प्रवर्तक प्रभु ईशु का |जिनका सम्पूर्ण जीवन प्रेम करने में ही व्यतीत हुआ |उनमे क्षमा भाव उनकी रग रग में समाया हुआ था |वे असहायों की सेवा करने में सदैव तत्पर रहा करते थे |कभी भी अपने से विरोधी व्यक्ति से उन्होंने ईर्ष्या नहीं की,वैमनस्य की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती |जब जीवन के अंतिम समय पर उन्हें सलीब पर लटकाया जा रहा था ,तब भी उन्होंने अपना क्षमाभाव नहीं त्यागा |उस वक्त उनके मुंह से निकले शब्द थे-"हे ईश्वर!इन्हें क्षमा करना,क्योंकि ये लोग यह नहीं जानते कि ये कर क्या रहे हैं?" अंत समय में भी ऐसा क्षमा भाव किसी फ़रिश्ते में ही हो सकता है |आज इस धर्म के अनुयाइयों में मदर टेरेसा को साक्षात् प्रेम की मूर्ति माना जा सकता है |
इस्लाम धर्म के संस्थापक मोहम्मद साहब इसी तरह ही प्रेम के एक सटीक उदहारण हैं|एक साधारण घर में पैदा हुए मोहम्मद साहब ने अपनी सम्पूर्ण जिन्दगी एक साधारण मनुष्य की तरह ही गुजारी|दीन-दुखियों की सेवा के लिए वे सदैव ही तत्पर रहते थे |उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी |उनके साथ कोई अगर दुर्व्यवहार करता था तो वे सहजभाव से उसे क्षमा कर दिया करते थे |इस बारे में एक घटना उनके जीवन से सम्बन्धित है जो बहुत प्रसिद्द है |मोहम्मद साहब जब घर से बाहर जाने के लिए वस्त्रादि पहन कर निकलते थे तो रास्ते में पड़ने वाले घर से एक महिला उनपर रोजाना कचरा फैक दिया करती थी |मोहम्मद साहब अपने कपड़ों से कचरा झाडकर मुस्कुराते हुए आगे निकल जाया करते थे |यह रोजाना का एक क्रम बन गया था |एक बार ३-४ दिनों तक लगातार महिला ने उनपर कचरा नहीं फैंका |मोहम्मद साहब को बड़ा अचरज हुआ |पांचवें दिन भी जब ऐसा हुआ तो मोहम्मद साहब उसके घर गए और देखा कि महिला बुखार में तप रही है |उन्होंने उसकी लगातार कई दिनों तक तीमारदारी की |वे उसके घर तब तक जाते रहे जब तक कि वह महिला पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं हो गयी|महिला अब अपने किये पर शर्मिंदा थी |उसने मोहम्मद साहब से माफ़ी मांगी |ऐसा था मोहम्मद साहब में क्षमाभाव |
सनातन धर्म में श्रीकृष्ण पूर्णावतार कहे जाते हैं |उनको पूर्णावतार कहा ही इसीलिए जाता है क्यंकि वे प्रेम से परिपूर्ण थे | उनके द्वारा की गयी रास-लीला ,प्रेम के प्रकटीकरण का सबसे उत्तम उदाहरण है |रास-लीला में वे गोपियों के साथ नृत्य किया करते थे |प्रत्येक गोपिका को ऐसा आभास होता था मानो श्रीकृष्ण उसी के साथ नृत्य कर रहे हों|इससे अच्छा सबके साथ एक जैसे प्रेम का उदाहरण संसार में अन्य मिलना मुश्किल है |जब श्रीकृष्ण बाल्यावस्था में थे तब उन्होंने जो लीलाएं अपनी माँ यशोदा के साथ की ,गोपियों का माखन चुरा कर खाना,उनकी दूध से भरी मटकियां फोड देना,अपने बाल सखाओं के साथ क्रीडा करना आदि सब प्रेम के उदाहरण ही तो है|एक ईश्वरीय अवतार होते हुए अर्जुन के सारथी बन जाना क्या बिना प्रेम के संभव था ?बरसाने की रहने वाली राधा के साथ उनका प्रेम तो इतनी उच्च कोटि का था कि आज मंदिर में कृष्ण के साथ राधा की मूर्ति होती है,और मंदिर भी राधाकृष्ण मंदिर कहलाता है |कहते हैं कि राधा और कृष्ण में इतना प्रेम था कि दोनों दो न होकर एक ही हो गए थे |जब लोग राधा को उसका नाम पूछते थे तो वह अपना नाम कृष्ण बताया करती थी |इसी प्रकार जब कृष्ण को उनका नाम पूछा जाता था तो वे अपना नाम राधा बताया करते थे |आज भी सनातन धर्म में यह किवदंती है कि श्री कृष्ण को पाना हो तो राधे-राधे बोलना चाहिए |कृष्ण इस नाम को सुनकर खींचे चले आयेंगे|
ये अवतार थे इस कारण से उनका व्यवहार प्रेमपूर्ण था या ये प्रेम से परिपूर्ण थे इसलिए अवतार कहलाये | इस विषय में वाद-विवाद हो सकता है |परन्तु मैं दोनों बातों को ही सही ठहराता हूँ |मेरे मत में प्रेमपूर्ण व्यवहार किसी को भी अवतार होने की योग्यता दिला सकता है |और ऐसा समग्रता के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार किसी अवतार का ही हो सकता है |आप चाहे इसे किसी भी प्रकार लें,दोनों ही परिस्थितियों में प्रेम का होना ही महत्वपूर्ण है |
|| हरिः शरणम् ||
"प्रेमपूर्ण व्यवहार किसी को भी अवतार होने की योग्यता दिला सकता है" - जैसा की अभी तक के आपके लिखे ब्लॉग पढ़ के लगता है उसके अनुसार मनुष्य अपने को प्रेम के द्वारा इतना उपर उठा लेता है कि वो अवतार समझा जाने लगता है इस समाज में | वैसे भी अवतार किसी और ग्रह के प्राणी थे ऐसा तो आपने भी कहीं नहीं कहा और न ही मैंने ऐसा कुछ सना है, क्या आप थोडा और विस्तार से बता सकते है इस विषय पर ?
ReplyDelete