Thursday, January 23, 2014

अमृत-धारा |-गोरख-४

                               गोरख की वाणी,क्या कहूँ?वास्तव में गूंगे की शक्कर ही है |आम आदमी की समझ में कितना आएगी,कह न सकूंगा |ऐसी गंभीरता से गोरख ने कहा है कि सतही तौर से पढने पर छाछ ही छाछ नज़र आती है |परन्तु मथने पर ही मक्खन निथर आता है |तभी आपको आश्चर्य होता है कि कितना गूढ़ रहस्य छुपा है-इस गोरख -वाणी में |मुझे अब जाकर पता चला है कि गोरख धंधा किसे कहते हैं |लोग इस "गोरख धंधा "शब्द को क्यों इस्तेमाल करते हैं ?वह कार्य जो करते हुए देखने पर समझ में कुछ  आये और करने का मंतव्य  कुछ और ही हो,उसे गोरख-धंधा कहते हैं|यही बात "गोरख-वाणी" में है |कहते साधारण तौर से है परन्तु मंतव्य बड़ा ही गूढ़ होता है |आज एक अन्य वाणी पर मंथन करते हैं-
                           "जल बिच कमल,कमल बिच कलियाँ भंवर वास न लेता है |
                             पांचू  चेला  फिरे  अकेला ,अलख  अलख  जोगी  करता है ||
                             सुन्न  हर शहर,शहर  घर बस्ती ,कुण  सोवै  कुण जागे है |
                             साध  हमारे , हम   साधन  के , तन   सोवै , ब्रह्म  जागे  है ||"
                  " जल बिच कमल,कमल बिच कलियाँ भंवर वास न लेता है" |आपने कमल का पुष्प देखा होगा,वह गंदे जल में यानि कीचड में पैदा होता है |कमल के पुष्प में कलियाँ होती है और इन कलियों पर भँवरा घूमता रहता है ,उनकी तरफ आकर्षित होकर |वह उनका रसपान करता है ,परन्तु उस पुष्प में वह कभी भी वास नहीं करता है,उस फूल को कभी भी अपना निवास स्थान नहीं बनाता है |यह वास्तविकता है |आप अगर गौर से देखेंगे तो ऐसा ही पाएंगे |गोरख यहाँ कहता है कि यह संसार एक गंदे जल के समान है जहाँ पर आपका यह भौतिक शरीर उस जल में कमल-पुष्प के समान है |इस पुष्प रूपी शरीर में पाँचों इन्द्रियां कलियाँ  है | इन कलियों यानि इन्द्रियों से रसपान भँवरा यानि आपकी आत्मा करती है |और इस भँवरे यानि आत्मा का स्थाई निवास यह पुष्प यानि भौतिक शरीर नहीं है |आत्मा बार बार नए नए शरीर में घूमती रहती है जैसे कि भँवरा नए नए फूलों पर घूमता रहता है |यह वास्तविकता है और सत्य भी |यह इन्द्रियां मन से नियंत्रित होती है |और मन ही आत्मा को रस प्रदान करता है |आत्मा इस रस के वशीभूत होकर मन के साथ योग कर शरीर दर शरीर भटकती है |परन्तु यह शरीर मूलतः उसका निवास स्थान नहीं है |
                        कई टीकाकार पांच चेले ,पांच तत्वों को बताते हैं ,जिनसे यह शरीर बना है |यथा-भूमि,जल,अग्नि,आकाश और वायु |शरीर में पांच इन्द्रियां भी इन पाँचों  तत्वों का ही प्रतिनिधित्व करती है |जैसे आकाश से श्रवनेंद्रिय ,वायु से त्वचा,अग्नि से नेत्र,जल से स्वादेंद्रिय तथा पृथ्वी से घ्रानेंद्रिय का विकास हुआ है |  अतः मेरे अनुसार ये पांच चेले अपनी पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ही है |    
                        "पांचू  चेला  फिरे  अकेला ,अलख  अलख  जोगी  करता है " ये पाँचों इन्द्रियां जिनका मन एक मात्र गुरु है ,वे सब अकेले घूमती है अर्थात कुछ भी नहीं कर पाती है |क्योंकि बिना आत्मा के ये पाँचों कुछ भी नहीं कर पाती है |अलख शब्द गोरख का बहुत ही प्रिय शब्द है |गोरख ने इस शब्द का अपनी रचनाओं में बड़ी उदारता के साथ प्रयोग किया है |अलख का अर्थ होता है अदृश्य यानि INVISIBLE अर्थात अव्यक्त |जो अपने आपमें व्यक्त नहीं है,अदृश्य है |"अलख अलख जोगी करता है "इसका भावार्थ यही है की सिद्ध पुरुष ने मक्खन निकाल कर जान लिया है कि वह जो है वह अदृश्य ही है ,अलख ही है |और जब आप ने उस अलख को जान लिया ,समझ लिया तो इस गुरु "मन"के ये पाँचों चेले यानि इन्द्रियाँ उस जोगी,उस सिद्ध पुरुष को भ्रमित नहीं कर पाएंगे और ऐसे पाँचों इन्द्रियां अलग थलग पड जायेगी और जोगी तो केवल अलख अलख ही करेगा क्योंकि वह सत्य जान चूका है |
                       "सुन्न हर शहर,शहर ,घर,बस्ती,कुण सोवै कुण जागे है"|इसका अर्थ यह है कि जब आप उस अदृश्य को जान लेते है,अपनी आत्मा को जान जाते है और परमात्मा को पहचान जाते हैं तब आपके लिए यह शहर,यह बस्ती और यह घर सब शून्य हो जाते है अर्थात उनका आपके जीवन में कोई महत्व नहीं रहता है |आप यह भी नहीं जानते कि यहाँ कौन सो रहा है और कौन जाग रहा है ?कौन परमात्मा के मार्ग पर चल रहा है और कौन संसार में खोया हुआ है ?जोगी तो केवल परमात्मा में ही खोया रहता है |उसको इन सब से कोई मतलब नहीं रहता है |
               और अंत में गोरख कहता है कि " साध  हमारे , हम   साधन  के , तन   सोवै , ब्रह्म  जागे  है"|गोरख के अनुसार जोगी को संसार में और संसार में रहने वालों से कोई मतलब नहीं रहता है |फिर भी गोरख चेतावनी देता है और  कहता है  कि साध्य हमारे है  और साध्य है-परमात्मा |साध्य यानि परमात्मा हमें अपना कहते है ,साध्य हमारे है जबकि हम अपने आपको साधन यानि शरीर के समझते हैं |शरीर एक साधन है-परमात्मा को पाने का |बिना मानव शरीर के परमात्मा को प्राप्त नहीं किया जा सकता |यहाँ पर यह शरीर ही सोता है और यह शरीर संसार का है |इस शरीर में जो ब्रह्म है वह है परमात्मा यानि हमारी आत्मा ,वह सदैव जागती रहती है |
      अब एक बार फिर पढ़िए ,गोरख की इस वाणी को|कितनी भाव-प्रधान है यह वाणी |
                             "जल बिच कमल,कमल बिच कलियाँ भंवर वास न लेता है |
                             पांचू  चेला  फिरे  अकेला ,अलख  अलख  जोगी  करता है ||
                             सुन्न  हर शहर,शहर  घर बस्ती ,कुण  सोवै  कुण जागे है |
                             साध  हमारे , हम   साधन  के , तन   सोवै , ब्रह्म  जागे  है ||"
                                                || हरिः शरणम् ||

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