Wednesday, January 8, 2014

अकथ कहानी प्रेम की.....

                                प्रेम की  गाथा भी अजब है |आप इसके बारे में चाहे जितना कह सकते हैं ,चाहे जितना लिख सकते हैं परन्तु कभी भी आप इसकी गाथा कहने से पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं हो सकते |प्रेम का आदि हो सकता है ,प्रेम की कहीं से शुरुआत जरूर हो सकती है परन्तु प्रेम का कहीं पर भी समापन नहीं होता है | जैसे गोस्वामीजी ने कहा है "हरि अनंत हरि कथा अनंता "वैसे हम भी कह सकते हैं "प्रेम अनंत प्रेम-कथा अनंता ",और इसमे कोई अतिश्योक्ति भी नहीं है |  प्रेम अनंत है |प्रेम किसी एक वस्तु या व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता |अगर कोई इसको एक व्यक्ति तक ही सीमित करना चाहता है तो इसका अर्थ मात्र लगाव ,केवल आकर्षण ही हो सकता है,प्रेम नहीं | प्रेम तो अपने आप में विशालता लिए होता है |इसे न तो समय के बंधन में बाँधा जा सकता है,न स्थान सेऔर न ही किसी वस्तु या  व्यक्ति विशेष से | क्या कभी कोई कह सकता है कि वह किसी व्यक्ति से ,किसी विशेष स्थान पर एक निश्चित समय तक के लिए ही प्रेम करेगा ?नहीं,बिलकुल नहीं |प्रेम को कभी भी किसी ऐसे बंधन में नहीं बांधा जा सकता |प्रेम तो सदैव मुक्त होता है |
                                 प्रेम के बारे में क्या कहा जाय ?शब्द ही कम पड जाते है,जबान तालू से जाकर चिपक जाती है |अगर प्रेम की अभिव्यक्ति हो सकती है तो सिर्फ आपकी आँखों से ,आपकी मुस्कान से |कोई और माध्यम ही नहीं है ,जिससे प्रेम को व्यक्त किया जा सके |आज लोगों ने पश्चिमी सभ्यता की देखा देखी प्रेम को व्यक्त करने का दिन (१४ फरवरी) और माध्यम (गुलाब का फूल) भी निश्चित कर लिया है |आश्चर्य होता है ,यह सब देखकर |प्रेम तो सदा के लिए होता है ,और उसे व्यक्त करने के लिए आपकी आँखे और आपकी मुस्कान ही पर्याप्त है |  आपका चेहरा ही आपके प्रेम को अभिव्यक्त कर देता है |
           कबीर ने कितना सत्य कहा है-
                                      अकथ कहानी प्रेम की,कछु कही न जाय |
                                      गूंगा   केरी  सरकरा , खाय बैठ  मुसकाय ||
          गूंगे व्यक्ति के पास अपनी कोई भाषा नहीं होती |परन्तु जब वह मीठे का स्वाद ले रहा होता है, तब उस स्वाद की अभिव्यक्ति उसकी मुस्कान से ही प्राप्त की जा सकती है |ठीक यही स्थिति प्रेम की होती है |प्रेम में आपकी जुबान मौन हो जाती है सिर्फ आपकी आँखे ही उस समय बोलती है |गुलाब का फूल आपकी प्रेम-अभिव्यक्ति का एक घिसा-पीटा माध्यम है |आप फूल की मुस्कान देखकर संतुष्ट हो सकते हैं परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि सामने वाले के ह्रदय में भी इस गुलाब के फूल की तरह ही मुस्कान है,प्रेम है |यह सब तो प्रेम का भ्रम ही पैदा कर सकते हैं,प्रेम नहीं| प्रेम का दिन,प्रेम का स्थान और प्रेम प्रकट करने के सभी भौतिक माध्यम मात्र औपचारिकता हो सकते है और प्रेम को किसी  औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती |प्रेम तो स्वयं अनौपचारिक है |
                              आप तो कबीर की प्रेम शर्करा का स्वाद लेते हुए गूंगे बन जाईये ,और मुझे आज्ञा दीजिए |मैं भी अपने आपको प्रेम अभिव्यक्त करने में असक्षम मानता हूँ,तभी तो इतने वर्षों  तक अपने प्रेम को व्यक्त करने में असफल रहा हूँ |मेरे पास न तो प्रेम व्यक्त करने के लिए गुलाब-पुष्प है और न ही किसी प्रकार की भावुकता |सिर्फ भीतर एक खुला ह्रदय है और बाहर होठों पर मुस्कान है |आप स्वयं ही समझ जाईये,मैं तो एक गूंगा मात्र हूँ क्योंकि अकथ कहानी प्रेम की..............|
                                  || हरिः शरणम् ||
फिर मिलेंगे,चार-पांच दिन के बाद |संभवतः १४ जनवरी को |नहीं तो १५ जनवरी को तो निश्चित ही-एक नए विषय के साथ |आप इतने दिनों तक प्रेम के साथ मेरे संग रहे-आभार |
                        

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