कबीर ,भक्ति-काल के एक मात्र ऐसे संत है जो पूर्णतया किसी धर्म या सम्प्रदाय से सम्बंधित नहीं रहे |वे किस के घर पैदा हुए,किस व्यक्ति ने उनका पालन-पोषण किया ,कुछ भी स्पष्ट नहीं,केवल अनुमान है |जब उन्होंने होश सम्भाला तो अपने आप को एक जुलाहे के घर पाया,जो न तो सम्प्रदाय के बारे में कुछ जानता था और न ही किसी धर्म के बारे में |यही कारण है कि कबीर ने इतने उन्मुक्त भाव से प्रत्येक धर्म की कुरीतियों और अंधविश्वासों पर अपनी काव्य विधा के माध्यम से जमकर प्रहार किये |वे किसी देवी-देवता या पैगम्बर को मानने के स्थान पर सब लोगों से प्रेम करने की बात को ज्यादा महत्त्व देते हैं | वे पूजा-पाठ को आडम्बर की उपमा देते हैं |स्वयं के भीतर झांकने पर ही परमात्म-दर्शन होने का पक्का वादा करते हैं |कबीर ने ही प्रेम को परमात्मा के साथ जोड़ा और अंत तक इसी बात पर अडिग भी रहे |
कबीर कहते हैं कि-
सुन्न मरे,अजपा मरे,अनहद ही मर जाय |
राम स्नेही ना मरे,कहत कबीर बुझाय ||
सुन्न मरे-अर्थात जिसने परमात्म तत्व को अदृश्य माना है,निराकार माना है ,शून्य माना है ,वह भी एक दिन मरता है |जो परमात्मा को "अजपा"मानता है ,वह भी एक दिन मरेगा और इसी प्रकार जो परमात्मा को "अनंत "कहता है ,परमात्मा को असीम मानता है ,उसका भी एक दिन मरना निश्चित है |लेकिन जो परमात्मा से प्रेम करता है वह कभी भी नहीं मरता है ,ऐसा कबीर का मानना है |आप चाहे परमात्मा को "शून्य"मानो,"अनहद" कहो और चाहे उसे "अजपा "कहो,प्रत्येक परिस्थिति में आप "द्वैत" को मानते हो |अर्थात आप और परमात्मा दो अलग अलग हैं |केवल परमात्मा ही एक ऐसी शक्ति है जो अजर और अमर है |शेष सभी मरण धर्मा है |अगर आप स्वयं को परमात्मा से अलग समझते हो तो फिर आपका ही मरना निश्चित है क्योंकि परमात्मा तो कभी भी मरते नहीं है |लेकिन जो परमात्मा को प्रेम करता है ,वह स्वयं को परमात्मा से अलग समझ ही नहीं सकता |जिससे आप प्रेम करते है ,फिर आप सवयं ही वही हो जाते हो |परमात्मा से प्रेम करने पर आप खुद को परमात्मा में विलीन कर देते हो |परमात्मा अजर-अमर है |परमात्मा कभी भी मरते नहीं है |ऐसे में परमात्मा को प्रेम करने वाला कैसे मर सकता है ?वह और परमात्मा तो एक हो गए है |इसीलिए कबीर सबको यही बात समझाते हैं कि "राम स्नेही ना मरे "|
कबीर का इतना कहना ही सभी धर्मों में फैलते जा रहे आडम्बरों पर करारी चोट करता है |प्रेम को सभी धर्म और सम्प्रदाय उच्च स्थान देते हैं ,परन्तु जब प्रेम का स्थान आडम्बर ले लेते है तब उन आडम्बरों के बारे में आमजन को आगाह करने के लिए कबीर का जन्म होता है |
|| हरिः शरणम् ||
कबीर कहते हैं कि-
सुन्न मरे,अजपा मरे,अनहद ही मर जाय |
राम स्नेही ना मरे,कहत कबीर बुझाय ||
सुन्न मरे-अर्थात जिसने परमात्म तत्व को अदृश्य माना है,निराकार माना है ,शून्य माना है ,वह भी एक दिन मरता है |जो परमात्मा को "अजपा"मानता है ,वह भी एक दिन मरेगा और इसी प्रकार जो परमात्मा को "अनंत "कहता है ,परमात्मा को असीम मानता है ,उसका भी एक दिन मरना निश्चित है |लेकिन जो परमात्मा से प्रेम करता है वह कभी भी नहीं मरता है ,ऐसा कबीर का मानना है |आप चाहे परमात्मा को "शून्य"मानो,"अनहद" कहो और चाहे उसे "अजपा "कहो,प्रत्येक परिस्थिति में आप "द्वैत" को मानते हो |अर्थात आप और परमात्मा दो अलग अलग हैं |केवल परमात्मा ही एक ऐसी शक्ति है जो अजर और अमर है |शेष सभी मरण धर्मा है |अगर आप स्वयं को परमात्मा से अलग समझते हो तो फिर आपका ही मरना निश्चित है क्योंकि परमात्मा तो कभी भी मरते नहीं है |लेकिन जो परमात्मा को प्रेम करता है ,वह स्वयं को परमात्मा से अलग समझ ही नहीं सकता |जिससे आप प्रेम करते है ,फिर आप सवयं ही वही हो जाते हो |परमात्मा से प्रेम करने पर आप खुद को परमात्मा में विलीन कर देते हो |परमात्मा अजर-अमर है |परमात्मा कभी भी मरते नहीं है |ऐसे में परमात्मा को प्रेम करने वाला कैसे मर सकता है ?वह और परमात्मा तो एक हो गए है |इसीलिए कबीर सबको यही बात समझाते हैं कि "राम स्नेही ना मरे "|
कबीर का इतना कहना ही सभी धर्मों में फैलते जा रहे आडम्बरों पर करारी चोट करता है |प्रेम को सभी धर्म और सम्प्रदाय उच्च स्थान देते हैं ,परन्तु जब प्रेम का स्थान आडम्बर ले लेते है तब उन आडम्बरों के बारे में आमजन को आगाह करने के लिए कबीर का जन्म होता है |
|| हरिः शरणम् ||
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