कई बार ऐसी विपरीत परिस्थितियों का हमें सामना करना पड़ता है जो हमारे जीवन को इतना दुखी बना देती है कि हम अपने आपको निराश और असहाय पाते हैं |ऐसी परिस्थिति में केवल दो ही बातें सोचनी चाहिए |एक -आज जो भी परिस्थितियां बनी है उसके लिए हम स्वयं ही उत्तरदाई हैं क्योंकि व्यक्ति खुद ही अपना भाग्य विधाता है |गीता स्पष्ट करती है कि आप स्वयं ही अपने मित्र हो और स्वयं ही शत्रु |ऐसी परिस्थिति में किसी को दोष देना उचित नहीं है |दो-परमपिता परमात्मा सदैव आपके साथ है |चाहे कितने ही आपके रिश्तेदार और संगी-साथी आपसे दूर हो गए हों,परमात्मा तो आपके साथ सदैव रहेंगे|वही आपके सच्चे साथी और मार्गदर्शक हैं |
परमात्मा हमारे अंतर्मन को सहस प्रदान करते है,जिसके कारण हम विपरीत परिस्थितियों का डटकर मुकाबला कर सकते हैं |परमात्मा हमें सच की राह पर चलना और झूठ का तिरस्कार करना सिखाता है |यह एक बड़ी विडंबना है कि हम गलत को गलत बताने से भी डरने लगे हैं |हम भीतर से जानते हैं कि गलत है फिर भी सब लोगों की हाँ में हाँ मिलाने की हमारी आदत बनती जा रही है |हम अपने मन को बार बार मारते है और स्वार्थ वश या किसी मजबूरी में गलत को स्वीकार करते हुए उस पर सहमत हो जाते हैं |
इस दुष्चक्र से बाहर निकलने ने के लिए हमें प्रार्थना की आवश्यकता होती है |प्रार्थना में शक्ति होती है ,वह हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है |असफलता से सफलता की ओर अग्रसर करती है |ज्यों ही हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं ,परमात्मा हमारी तरफ उन्मुख होते है |और उनकी सहायता का अदृश्य हाथ हमारी तरफ बढ़ता है |हमारे भीतर एक नए साहस का संचार होता है और निराशा का भाव जाने लगता है |हम प्रसन्न रहने लगते है और सुकार्य में हमारा मन लगने लगता है |हमारी सहायता के लिए परमात्मा किसी न किसी के ह्रदय में हमारे प्रति सद्भाव पैदा करता है |हमें उसकी सहायता भी उपलब्ध हो सकती है |अब हमारी विपरीत परिस्थितियों में परिवर्तन आने लगता है और हम सफलता की तरफ बढ़ने लगते है |हम हारी हुई बाजी जीतने लगते हैं |
प्रार्थना के लिए आवश्यक है कि आपका कार्य सुकार्य हो और समाज के हित में हो |आपका मन प्रार्थना में इधर उधर न भटके,आप एकाग्रचित्त होकर प्रार्थना करें |अपने आप को परमात्मा को समर्पित करदे |प्रार्थना में बड़ी शक्ति है,मन से प्रभु को यही कहे कि यह कार्य मेरा नहीं है,तुम्हारा है ,मेरे हित में जो हो वह करने की कृपा करे और हे प्रभु!मैं जानता हूँ कि आप मेरा कभी भी अहित नहीं होने देंगे |गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में स्पष्ट कहा है कि -
जेहि पर कृपा करिही जनु जानी |कबि उर अजिर नचावहिं बानी ||
मोरे हित हरि सम नहीं कोऊ |एहि अवसर सहाय सोही होऊ ||
मोरि सुधारिहीं सो सब भांती |जासु कृपा नहीं कृपा अघाती ||
सचमुच परमात्मा से प्रार्थना ऐसी ही होनी चाहिए |
|| हरिः शरणम् ||
परमात्मा हमारे अंतर्मन को सहस प्रदान करते है,जिसके कारण हम विपरीत परिस्थितियों का डटकर मुकाबला कर सकते हैं |परमात्मा हमें सच की राह पर चलना और झूठ का तिरस्कार करना सिखाता है |यह एक बड़ी विडंबना है कि हम गलत को गलत बताने से भी डरने लगे हैं |हम भीतर से जानते हैं कि गलत है फिर भी सब लोगों की हाँ में हाँ मिलाने की हमारी आदत बनती जा रही है |हम अपने मन को बार बार मारते है और स्वार्थ वश या किसी मजबूरी में गलत को स्वीकार करते हुए उस पर सहमत हो जाते हैं |
इस दुष्चक्र से बाहर निकलने ने के लिए हमें प्रार्थना की आवश्यकता होती है |प्रार्थना में शक्ति होती है ,वह हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है |असफलता से सफलता की ओर अग्रसर करती है |ज्यों ही हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं ,परमात्मा हमारी तरफ उन्मुख होते है |और उनकी सहायता का अदृश्य हाथ हमारी तरफ बढ़ता है |हमारे भीतर एक नए साहस का संचार होता है और निराशा का भाव जाने लगता है |हम प्रसन्न रहने लगते है और सुकार्य में हमारा मन लगने लगता है |हमारी सहायता के लिए परमात्मा किसी न किसी के ह्रदय में हमारे प्रति सद्भाव पैदा करता है |हमें उसकी सहायता भी उपलब्ध हो सकती है |अब हमारी विपरीत परिस्थितियों में परिवर्तन आने लगता है और हम सफलता की तरफ बढ़ने लगते है |हम हारी हुई बाजी जीतने लगते हैं |
प्रार्थना के लिए आवश्यक है कि आपका कार्य सुकार्य हो और समाज के हित में हो |आपका मन प्रार्थना में इधर उधर न भटके,आप एकाग्रचित्त होकर प्रार्थना करें |अपने आप को परमात्मा को समर्पित करदे |प्रार्थना में बड़ी शक्ति है,मन से प्रभु को यही कहे कि यह कार्य मेरा नहीं है,तुम्हारा है ,मेरे हित में जो हो वह करने की कृपा करे और हे प्रभु!मैं जानता हूँ कि आप मेरा कभी भी अहित नहीं होने देंगे |गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में स्पष्ट कहा है कि -
जेहि पर कृपा करिही जनु जानी |कबि उर अजिर नचावहिं बानी ||
मोरे हित हरि सम नहीं कोऊ |एहि अवसर सहाय सोही होऊ ||
मोरि सुधारिहीं सो सब भांती |जासु कृपा नहीं कृपा अघाती ||
सचमुच परमात्मा से प्रार्थना ऐसी ही होनी चाहिए |
|| हरिः शरणम् ||
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