Friday, January 17, 2014

अमृत-धारा |-गोरख-१

               अगर कोई मुझे कहे कि आपको सबसे अधिक किस व्यक्ति का आध्यात्मिक काव्य पसंद है ,तो मैं उसमे किसी एक का नाम तो नहीं ले सकता |हाँ,इतना जरूर कहूँगा कि मेरे पसंद के चंद कवियों में एक नाम गोरख का भी है |गोरख की वाणी एक ग्रामीण परिवेश लिए हुए है और तत्कालीन आबादी के दिलों में उतरने के लिए कही गई है |उनका एक प्रसिद्ध दोहा है,जिसने मुझे काफी हद तक प्रभावित किया है ,आज उसी दोहे से एक नई शुरुआत करता हूँ |
                 गगन मंडल में गाय बियाई,कागद दही जमाया |
                  छाछ छाछ तो पंडिता पीवी,सिद्धां माखन खाया ||
         जब मनुष्य के ह्रदय में प्रेम का प्रादुर्भाव होता है ,तब आध्यात्मिकता का जन्म भी होता है |'स्व'को जानने का नाम ही आध्यात्मिकता है |इस संसार में कई महापुरुषों ने जन्म लिया और प्रेम व आध्यात्मिकता के बल पर परमात्मा को समझा व जाना |जो भी उन्हें इस बारे में अनुभव हुआ उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से उन्हें साहित्य के रूप में संजोया |यही साहित्य आज सहस्रों काव्यों के रूप में हमारे समक्ष है |इस साहित्य को पढकर हम कैसा व्यवहार करते हैं,उपरोक्त दोहा इसको स्पष्ट करता है |
                    परमात्मा के अवतरण की,परमात्मा को जानने और समझने की घटना आपके अंतर्मन में होती है |कहीं बाहर नहीं |इस अंतर्मन की कोई भी सीमा नहीं होती |यह अंतर्मन अनंत होता है |इसको किसी भी सीमा में नहीं बांधा जा सकता |जैसे आसमान अनंत होता है ,वैसे ही अंतर्मन भी अनंत विस्तारित होता है |इसी लिए यहाँ अंतर्मन को गगन कहा गया है |अंतर्मन में परमात्मा के अवतरण को गाय के बियाने अर्थात बछड़े को जन्म देना कहा गया है |यह घटना जब किसी के अंदर घटित होती है ,तब वह उसकी चर्चा सबसे करना चाहता है |लेकिन जो उसके भीतर घटित हुआ है उसको बताने के लिए ,उसे कहने के लिए ,उसे समझाने के लिए शब्द मुंह से निकल नहीं पाते |ऐसी स्थिति में वह अपने ज्ञान को ,अपने अनुभव को शब्दों के माध्यम से कागज पर लिखता है |इसी को कवि ने "कागद दही जमाया "कहा है |गाय के बछड़ा हो जाने के बाद दूध पीने का जो आनंद है उसको कवि ने दही के रूप में कागज पर लिखा है |यहाँ ध्यान देने की बात यही है कि आप दही को चखकर दूध का स्वाद कभी भी नहीं ले सकते |क्योंकि दही जमते ही दूध की अवस्था में परिवर्तन आ गया है|अब दूध और दही दोनों अलग अलग है |दही खाकर आप इतना ही कह सकते हैं कि दूध अच्छा था |लेकिन आपने दूध नहीं खाया बल्कि दही खाया है |अगर आपको दूध का आनंद लेना है तो आपको पहले गाय तक पहुंचना होगा |और गाय आपको गगन मंडल अर्थात अंतरिक्ष यानि शून्य में मिलेगी |इसका एक ही अर्थ है कि आपको अपने अंतर्मन को शून्य करना होगा,निर्मल करना होगा |मन में जो भी विकार है उन्हें बाहर निकाल फैकने होंगे |तभी मन शून्य होगा |मन के शून्य होते ही गाय बियाएगी और आपको दूध मिलेगा |यही परमात्म-प्राप्ति होगी |
                                   जब दूध का दही बन जाता है तब उसको चखने से काम नहीं बनेगा ,उसे मथना होगा |दही को मथने पर दो ही चीजें हमें प्राप्त होती है-छाछ और मक्खन |जो लोग अपने आप को ज्ञानी और पंडित समझते हैं ,वे छाछ से ही संतुष्ट हो जाते हैं और उस दही का सार छाछ को ही समझकर लोगों में छाछ ही बांटते फिरते हैं|लेकिन सिद्ध पुरुष छाछ को हाथ ही नहीं लगाते बल्कि केवल मक्खन का रसपान करते हैं |इसी प्रकार जब किसी भी शास्त्र को हम पढते है और उसका भाव जानने की कोशिश करते हैं ,कवि इसे दही का मथना कहते हैं | इसका शब्दार्थ तथाकथित पंडित छाछ के रूप में ग्रहण करते हैं जबकि शास्त्र में लिखे का भावार्थ सिद्ध पुरुष ही समझ सकते हैं |और यही भावार्थ मक्खन है |
                            उपरोक्त दोहे का भावार्थ यही है कि शून्य मन में ही परमात्मा का अवतरण होता है |शास्त्र तो मात्र उस अवतरण की अभिव्यक्ति मात्र है |शास्त्रों को पढकर सिद्ध पुरुष ही परमात्मा को जान,समझ और पा सकता है |केवल सतही स्तर पर शास्त्रों को पढकर आप अच्छा व्याख्यान दे सकते है ,परन्तु परमात्मा को जान तक नहीं पाएंगे,समझ पाना  और परमात्म -प्राप्ति तो बहुत दूर की बात है |
                          || हरिः शरणम् ||

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