Sunday, January 26, 2014

अमृत-धारा |रहीम-१

                        रहीम ,जन्म से मुस्लिम ,परन्तु मन से सभी धर्मों को बराबर समझने वाले |कबीर की ही भांति आत्म निरीक्षण के समर्थक |परमात्मा को स्वयं से अलग न समझने वाले एक आदर्श "अद्वैतवादी"|काव्य ऐसा कि पढने वाले और सुननेवाले सोचने को मजबूर हो जाये | अपने दोहों से सबको हैरान कर देते है |कट्टर आलोचक भी उनकी इस विधा की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं |रहीम कहते हैं-  
                            बिंदु भी सिंधु समान,को अचरज कासों कहे |
                              हेरनहार  हैरान,  रहिमन  अपने  आपने ||
               "बिंदु भी सिंधु समान " अर्थात् पानी की एक छोटी सी बूँद, एक महासागर के समान है |दोनों में किसी भी प्रकार का अंतर नहीं है |ऐसा होना अचरज की बात नहीं है तो क्या है ?और यह आश्चर्य भी ऐसा कि किसी से कैसे कहें?यह एक ऐसे अचरज की बात है कि अगर किसी को कहें भी तो वह विश्वास ही नहीं करेगा |वह यह सोचता ही रहेगा कि ऐसा होना कैसे संभव है ?और जब वह इस अचरज पर गहराई से विचार करेगा तो वास्तविकता जानकर वह भी हैरान रह जायेगा ,क्योंकि वह जान जायेगा कि यह सब सत्य है |
                 यहाँ पर बिंदु अर्थात् पानी की एक बूंद तो स्वयं है और परमात्मा समुद्र है |परमात्मा और मनुष्य में किसी भी प्रकार का भेद नहीं है |परमात्मा अव्यक्त है और परमात्मा का व्यक्त स्वरूप ही व्यक्ति है |और ऐसा होना ही वास्तविकता में सत्य है |इसीलिए ऐसा जानकर ही मनुष्य आश्चर्य करता है कि परमात्मा उसके स्वयं के भीतर आत्मा के रूप में उपस्थित है |अचरज इस बात का होता है कि वह इतने दिनों तक यह सत्य क्यों कर समझ नहीं पाया ?"हेरनहार"अर्थात् इस सत्य को खोजने वाला भी इस सत्य को जानकर हैरान रह जाता है कि जिसको वह खोजने गया था ,वह तो उसके भीतर ही है |उसमे और परमात्मा में कोई भिन्नता है ही नहीं |इस को जानकर वह ऐसे अचरज की बात को किससे कहे?यही उसकी एक मात्र दुविधा है |
                    कबीर भी इसी बात को अलग अंदाज़ में कहते हैं-
                                                   हेरत हेरत हे सखी,रहा कबीर हेराय |
                                              बूँद समाई समुद्र में,अब कित हेरत जाय ||
                          कबीर कितनी मासूमियत के साथ कहते हैं कि हे मित्र,मैं भी ढूँढते ढूँढते अंत में  उसे खोज  कर और उसे जानकर हैरान रह गया कि यह बूंद (आत्मा)जब समुद्र (परमात्मा)में समा जाती है तब उसे ढूँढना बड़ा ही मुश्किल है |जब आत्मा का परमात्मा के साथ मिलन हो जाता है तब दोनों में अंतर करना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है कि कौन परमात्मा है और कौन आत्मा है?कहा जाता है कि जब कबीर ने यह जान लिया कि परमात्मा ही आत्मा के रूप में इस शरीर में विद्यमान है तब उसने दोहे में थोडा सा परिवर्तन करके कहा है-
                                                  हेरत हेरत हे सखी,रहा कबीर हेराय |
                                                 समुद्र समाया बूँद में ,अब कित हेरत जाय ||
                    यहाँ आकर कबीर और रहीम में कितनी समानता है,इसका पता चलता है |यही आध्यात्मिक व्यक्तित्व की पहचान है |
                                    || हरिः शरणम् ||
  

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