Wednesday, January 29, 2014

अमृत-धारा |कबीर-५

                               कबीर एक ऐसा नाम है जिसको लेते ही व्यक्ति का मन प्रफुल्लित हो जाता है |कबीर की हर वाणी एक नए आयाम लिए हुए होती है |प्रेम की भाषा संसार को कबीर ने समझाई|कबीर ने प्रेम और परमात्मा के मध्य सीधा सम्बन्ध होना सिद्ध किया |प्रेम के बारे में कबीर ने जितनी खोज की,शायद ही अब तक किसी ने की होगी |प्रेम से इतर संसार में कोई वस्तु न तो थी और न ही कभी होगी |प्रेम से संसार में सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है,परमात्मा भी |प्रेम की अगर सबसे बड़ी विरोधी कोई है तो वह है व्यक्ति के मन की अनगिनत,कभी भी समाप्त न होने वाली इच्छाएं और कामनाएं|जहाँ किसी से भी हम कोई उम्मीद रखते हैं तो वहाँ प्रेम का स्वतः ही अभाव हो जाता है |व्यक्ति की वह इच्छा या चाह पूरी न होने तक उसका मन उद्विग्न रहता है |दिन रात उसे चिंता घेरे रहती है  |और यह चिंता उसे प्रेम और परमात्मा की तरफ जाने से रोकती है |कबीर कहते हैं-
                                              चाह मिटी चिंता मिटी ,मनवा बेपरवाह |
                                               जिसको कछु न चाहिए,वह है शंहंशाह ||
                जब व्यक्ति के मन की सभी चाह मिट जाती है तो उसकी समस्त चिंताएं स्वतः ही मिट जाती है |समस्त चिंताएं मिटते ही मन को किसी भी बात की परवाह नहीं रहती |ऐसे में मनुष्य अपने आपको दीन-हीन और असहाय समझना बंद कर देता है | यह एक राजा या शहंशाह की स्थिति है |
                 एक बार एक साधू  को एक रूपये का सिक्का कहीं पर पड़ा मिल गया |उस दिन के लिए उसकी दैनिक आवश्यकता की पूर्ति का इंतजाम हो चूका था | साधू पूरा अपरिग्रही था,एकत्रित करने में विश्वास नहीं रखता था | उसने सोचा कि यह सिक्का किसी जरूरतमंद को दे देना चाहिए |उसने एक भिखारी को देने की सोची |भिखारी ने यह कह कर लेने से इंकार कर दिया कि उसका भी आज की आवश्यकता पूरी हो चुकी है |साधू ने सोचा-यह सिक्का उस व्यक्ति को देना चाहिए जिसे उसकी अत्यधिक आवश्यकता हो |वह ऐसे ही किसी जरूरतमंद की तलाश करने लगा |वह एक बाज़ार से गुजर रहा था |उसने देखा कि राज्य के अफसर व्यापारियों से जबरन कर वसूल रहे है |साधू के दिमाग में एक विचार कौंधा और तुरंत राज दरबार में चला गया |उसने राजा को वह सिक्का भेंट करते हुए कहा कि मैं आपके राज्य में घूमता रहा ,यह सिक्का देने के लिए |परन्तु मुझे आपके सिवाय कोई अन्य व्यक्ति जरूरतमंद  नहीं मिला जिसे मैं यह सिक्का दे सकूँ |आपके पास अकूत दौलत होते हुए भी आप करों की वसूली कर रहे है |आप से अधिक गरीब इस राज्य में मिलना मुश्किल है |राजा ने यह सुनकर क्या किया और कहा होगा ,मैं नहीं जानता |परन्तु यह कहानी हमें बताती है कि दौलत पाकर ही कोई व्यक्ति बादशाह नहीं हो जाता |अगर बादशाहत ही चाहिए तो धन-दौलत और सभी चाह-इच्छाओं से ऊपर उठना होगा |
                                कबीर भी यही कहता है |चाह के मिटते ही मन की समस्त चिंताएं मिट जाती है ,मन निर्मल हो जाता है ,साफ हो जाता हो |निर्मल ह्रदय से ही प्रेम की खुशबू निकल सकती है |और प्रेम जहाँ है,परमात्मा वहाँ स्वतः ही है |
                               मन ऐसा निर्मल भया,जैसे गंगा नीर |
                               पाछे पाछे हरि फिरे,कहत कबीर कबीर ||  
     एक बार पुनः कबीर और प्रेम को नमन |
                                 || हरिः शरणम् ||  

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