Wednesday, January 22, 2014

अमृत-धारा |गोरख-३

                                गोरख ने अपने जीवन में जो जो अनुभव किया उसे बड़े ही शालीन तरीके से अपनी ही भाषा में प्रस्तुत किया है |मानव जीवन में व्यक्ति अपना स्वभाव छोड़ कर ऐसा जीवन जी रहा है कि कई बार इतनी मुश्किल हो जाती है कि वह स्वयं भी अपनी वास्तविकता को भूल बैठता है |गोरख ऐसे लोगों को अपनी आवाज से आगाह करता है ,कहता है -
                          हबकि न बोलिबा,ठबकि न चालिबा,धीरे धरिबा पांव |
                          गरब न करिबा,सहजै रहिबा,भणत गोरष रावं ||
                          नाथ कहै तुम आप राखो,हठ करि बाद न करणा |
                          यहु जग है कांटे की बाड़ी,देखि देखि पग धरणा ||
                  "हबकि न बोलना "-जब भी कुछ कहना हो ,किसी को भी प्रत्युतर देना हो तो आप अचानक ही बोल उठते हो |आपका यह प्रत्युतर एक सोये हुए व्यक्ति का उत्तर है |जब भी आप अचानक बोल उठते हो ,इसका अर्थ मात्र यही है कि आप पहले से ही ऐसे उत्तरों को मन में जमाए बैठे हो |तुरंत जवाब न दो,इसका अर्थ कभी भी यह नहीं है कि आप प्रश्न पर विचार  करके उत्तर दो |विचार तो व्यक्ति की मानसिकता की एक चाल है |विचार करके उत्तर देना ,तत्काल उत्तर देने से भी निम्न स्तर का है |हबकि न बोलिबा मतलब निर्विचार होकर बोलना |जब आप निर्विचार की अवस्था को प्राप्त हो जाते हो ,तब आप कुछ गलत बोल ही नहीं सकते | आपके मन में कोई उत्तर न तो पहले से होता है ,न आप विचार करके बोलते हो बल्कि जो भी निर्विचार अवस्था में रहकर बोलते हो वह सदैव ही प्रिय और सत्य  होता है |"धीरे धरिबा पांव"-चलना आपका ऐसा होना चाहिए कि किसी को भी पता न चले|एक दम साधारण तरीके से |कभी आपने अपनी चाल पर गौर किया है ?जब आप अपने कार्यालय जाते हो तो आपकी चाल अलग तरह की होती है और जब घर लौटते हो तो बिलकुल अलग |गोरख कहता है ,आपकी चाल सामान्य होनी चाहिए |जब आप गुस्से में होते हो तब आप अपने  पाँव गुस्से में जमीन पर पटकते हुए चलते हो |आपकी मानसिक स्थिति का अनुमान आपके चलने के तरीके से लगाया जा सकता है |आपका पाँव रखने का तरीका शालीन और नियंत्रित होना चाहिए |
                               " गरब न करिबा,सहजै रहिबा,भणत गोरख राव "-गोरख कहता है कि अभिमान कभी भी न करें,अहंकार से सदैव दूर रहे|सहज रहना ही आपकी सही पहचान है |आज के समय में हम अपना रहने का तरीका बार बार बदलते हैं |एक के सामने हम सामान्य व्यव्हार करते हैं और तत्काल बाद किसी अन्य के साथ हमारा व्यवहार एक दम विपरीत हो जाता है|यह सहज अवस्था नहीं है |
                          नाथ कहै तुम आप राखो,हठ करि बाद न करणा |
                          यहु जग है कांटे की बाड़ी,देखि देखि पग धरणा ||
             गोरख कहते हैं कि कभी भी आप आपा न खोना अर्थात स्वयं पर नियंत्रण रखना |एक बात पर अडिग रहते हुए जिद्द मत करना |यह संसार एक ऐसी बाड़ी है जिसमे चारों और कांटे ही कांटे बिखरे पड़े हैं |यहाँ स्वयं को बचाते हुए चलना चाहिए ,अन्यथा काँटों में उलझने का खतरा है | इसलिए अपनी आँखे खोलकर पाँव धरें अर्थात ज्ञान का समुचित उपयोग करते हुए अपना जीवन जीयें |
                                   || हरिः शरणम् ||

1 comment:

  1. विज्ञान के साथ साहित्य के इस कृति को पढ़कर उसका निचोड़ निकलना निश्चय ही श्रमसाध्य कार्य है। गोरख पर और लिखें

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