गोरख,एक ऐसा नाम जिसका स्मरण करते ही शरीर में एक लहर सी दौड जाती है |उनकी रचनाओं को आप हलके-फुलके तरीके से ले ही नहीं सकते |सरसरी तौर पर निगाह डालने से बड़ी ही बेतुकी नज़र आएगी ,परन्तु जब एकांत में बैठकर गंभीरता से विचार करेंगे तो समझ में आएगा कि गोरख क्या कहना चाहता है |
एक बार गोरख के पास एक व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से परेशान होकर आया और बोला-"मैं इन सांसारिक परेशानियों को सहते सहते तंग आ गया हूँ,और परेशान होकर आत्महत्या करना चाहता हूँ,मरना चाहता हूँ |"गोरख ने तत्क्षण कहा-"हाँ,मरो,बिलकुल मर जाना चाहिए|" वह व्यक्ति सन्न रह गया और बोला -"यह क्या कह रहे है आप ?मैं इतने संतों के पास गया,सबको अपना मंतव्य बताया|सबने मुझे एक ही बात कही कि आत्महत्या करना पाप है |यह किसी भी समस्या का समाधान नहीं है |और एक आप हैं जो कह रहे हैं कि हाँ मर जाओ |"गोरख बोले-"मैंने सही कहा है ,सब समस्याओं का समाधान मरना ही है |परन्तु तुम को ऐसे ही मरना होगा ,जैसे गोरख ने मर कर दिखाया है |"
इस मरने के सम्बन्ध में गोरख ने कहा है-
मरौ वे जोगी मरौ ,मरौ मरन है मीठा |
तिस मरणी मरौ ,जिस मरणी गोरष मरि दीठा ||
गोरख कहते हैं कि हे योगी पुरुष!तुम मर जाओ |तुम्हारा मरना ही उचित है |मरना संसार में बड़ा ही मधुर है |गोरख शरीर के मरने की बात यहाँ बिलकुल भी नहीं कहते हैं |यहाँ वे व्यक्ति के "मैं"के मरने की कहते हैं ,अहंकार को मारने की बात कहते हैं |इस संसार में जितने भी दुःख और परेशानियां है ,वे सब इस "मैं"की पैदा की हुई है |जिस दिन आपका यह "मैं"मर जायेगा ,समझ लो सब परेशानियां स्वतः ही समाप्त हो जायेगी |गोरख यहाँ स्वयं का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जैसे मैं मरा हूँ वैसे ही तुम मरो |तभी आपका मरना सार्थक होगा |शारीरिक तौर पर तो एक दिन सबको ही मरना होता है |जिस दिन अहंकार मर जायेगा ,उस दिन ही आपका वास्तविक रूप से मरण होगा |ऐसे मर जाने पर ही आपका पुनर्जन्म नहीं होगा |आप अपने वास्तविक स्वरूप को उपलब्ध हो जाओगे,परमात्मा को पा लेंगे |
|| हरिः शरणम् ||
एक बार गोरख के पास एक व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से परेशान होकर आया और बोला-"मैं इन सांसारिक परेशानियों को सहते सहते तंग आ गया हूँ,और परेशान होकर आत्महत्या करना चाहता हूँ,मरना चाहता हूँ |"गोरख ने तत्क्षण कहा-"हाँ,मरो,बिलकुल मर जाना चाहिए|" वह व्यक्ति सन्न रह गया और बोला -"यह क्या कह रहे है आप ?मैं इतने संतों के पास गया,सबको अपना मंतव्य बताया|सबने मुझे एक ही बात कही कि आत्महत्या करना पाप है |यह किसी भी समस्या का समाधान नहीं है |और एक आप हैं जो कह रहे हैं कि हाँ मर जाओ |"गोरख बोले-"मैंने सही कहा है ,सब समस्याओं का समाधान मरना ही है |परन्तु तुम को ऐसे ही मरना होगा ,जैसे गोरख ने मर कर दिखाया है |"
इस मरने के सम्बन्ध में गोरख ने कहा है-
मरौ वे जोगी मरौ ,मरौ मरन है मीठा |
तिस मरणी मरौ ,जिस मरणी गोरष मरि दीठा ||
गोरख कहते हैं कि हे योगी पुरुष!तुम मर जाओ |तुम्हारा मरना ही उचित है |मरना संसार में बड़ा ही मधुर है |गोरख शरीर के मरने की बात यहाँ बिलकुल भी नहीं कहते हैं |यहाँ वे व्यक्ति के "मैं"के मरने की कहते हैं ,अहंकार को मारने की बात कहते हैं |इस संसार में जितने भी दुःख और परेशानियां है ,वे सब इस "मैं"की पैदा की हुई है |जिस दिन आपका यह "मैं"मर जायेगा ,समझ लो सब परेशानियां स्वतः ही समाप्त हो जायेगी |गोरख यहाँ स्वयं का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि जैसे मैं मरा हूँ वैसे ही तुम मरो |तभी आपका मरना सार्थक होगा |शारीरिक तौर पर तो एक दिन सबको ही मरना होता है |जिस दिन अहंकार मर जायेगा ,उस दिन ही आपका वास्तविक रूप से मरण होगा |ऐसे मर जाने पर ही आपका पुनर्जन्म नहीं होगा |आप अपने वास्तविक स्वरूप को उपलब्ध हो जाओगे,परमात्मा को पा लेंगे |
|| हरिः शरणम् ||
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