कबीर का प्रेम यहाँ पर आकर प्रार्थना बन जाता है |साधारण लोग शारीरिक आकर्षण को प्रेम का नाम दे देते हैं ,लेकिन यह सत्य नहीं है |प्रेम तो सबके लिए एक उपासना है |प्रेम को न तो किसी तराजू में तोला जा सकता है न ही किसी अन्य माप से मापा जा सकता है |न तो प्रेम समय के बंधन को मानता है और न ही किसी विशेष स्थान पर ही किया जा सकता है |प्रेम तो सतत और सनातन है |प्रेम है ,इसका अर्थ एक ही है कि प्रेम है |कम या अधिक नहीं |कबीर स्वयं कहते हैं-
प्रेम प्रेम कोई सब कहे,प्रेम ना बुझे कोय |
आठ पहर भीगा रहे ,प्रेम कहाए सोय ||
चाह के मिटते ही मन का निर्मल हो जाना होता है |प्रेम का अर्थ एक ही है-मन में किसी भी प्रकार का मोह,ममता,इर्ष्या और कामनाओं का अभाव |ऐसे मन को साफ और स्वच्छ कहा जा सकता है |बिलकुल दूध की तरह पाक और साफ,बगुले की तरह बेदाग और सफ़ेद |कबीर का एक दोहा है ,जो इस बात का प्रमाण है कि निर्मल मन ही परमात्मा के साथ एकाकार हो सकता है |और निर्मल मन बिना प्रेम के उपलब्ध होना संभव नहीं है |कबीर कहते हैं-
उठा बगुला प्रेम का,तिनका चढा आकाश |
तिनका तिनके से मिला,तिन का तिन के पास ||
"उठा बगुला प्रेम का "-यह निर्मल मन एक बगुले के समान है जिसमें प्रेम के जागृत होते ही आत्मा एकदम से स्वतन्त्र हो जाती है | मन का निर्मल होना और आत्मा का स्वतन्त्र होजाना एक ही प्रक्रिया है |प्रेम के प्रादुर्भाव के साथ ही यह तिनके रुपी आत्मा एक दम हल्की होकर शून्य में उड़ चलती है |आत्मा के साथ जब मन का संयोग होता है तभी वह मन अपने भीतर छुपी कामनाओं की पूर्ति हेतु आत्मा को शरीर की मृत्यु होने के उपरांत नए शरीर में ले आता है |मन में प्रेम जागृत होते ही समस्त कामनाएं समाप्त हो जाती है,और ऐसी स्थिति में मन का आत्मा के साथ योग भी |यह तिनका (आत्मा)शून्य में जाकर तिनके (परमात्मा )से मिल जाती है -"तिनका तिनके से मिला "|आत्मा के परमात्मा से मिलन का अर्थ यही है कि जो जिसका अंश था वह उसके पास ही पहुँच गया |इस प्रकार कबीर अंत में कहते है कि यह आत्मा ,परमात्मा के पास पहुँच ही गयी |"तिन का तिन के पास "-अर्थात यह आत्मा जिसका अंश है उस परमात्मा के पास पहुँच ही गई |कबीर के अनुसार यह सब प्रेम के कारण ही संभव हुआ है |अतः सबसे प्रेम करते रहें यही कबीर का कहना है |कबीर के लिए सबसे प्रेम करना ही एक मात्र परमात्मा की प्रार्थना है |
|| हरिः शरणम् ||
प्रेम प्रेम कोई सब कहे,प्रेम ना बुझे कोय |
आठ पहर भीगा रहे ,प्रेम कहाए सोय ||
चाह के मिटते ही मन का निर्मल हो जाना होता है |प्रेम का अर्थ एक ही है-मन में किसी भी प्रकार का मोह,ममता,इर्ष्या और कामनाओं का अभाव |ऐसे मन को साफ और स्वच्छ कहा जा सकता है |बिलकुल दूध की तरह पाक और साफ,बगुले की तरह बेदाग और सफ़ेद |कबीर का एक दोहा है ,जो इस बात का प्रमाण है कि निर्मल मन ही परमात्मा के साथ एकाकार हो सकता है |और निर्मल मन बिना प्रेम के उपलब्ध होना संभव नहीं है |कबीर कहते हैं-
उठा बगुला प्रेम का,तिनका चढा आकाश |
तिनका तिनके से मिला,तिन का तिन के पास ||
"उठा बगुला प्रेम का "-यह निर्मल मन एक बगुले के समान है जिसमें प्रेम के जागृत होते ही आत्मा एकदम से स्वतन्त्र हो जाती है | मन का निर्मल होना और आत्मा का स्वतन्त्र होजाना एक ही प्रक्रिया है |प्रेम के प्रादुर्भाव के साथ ही यह तिनके रुपी आत्मा एक दम हल्की होकर शून्य में उड़ चलती है |आत्मा के साथ जब मन का संयोग होता है तभी वह मन अपने भीतर छुपी कामनाओं की पूर्ति हेतु आत्मा को शरीर की मृत्यु होने के उपरांत नए शरीर में ले आता है |मन में प्रेम जागृत होते ही समस्त कामनाएं समाप्त हो जाती है,और ऐसी स्थिति में मन का आत्मा के साथ योग भी |यह तिनका (आत्मा)शून्य में जाकर तिनके (परमात्मा )से मिल जाती है -"तिनका तिनके से मिला "|आत्मा के परमात्मा से मिलन का अर्थ यही है कि जो जिसका अंश था वह उसके पास ही पहुँच गया |इस प्रकार कबीर अंत में कहते है कि यह आत्मा ,परमात्मा के पास पहुँच ही गयी |"तिन का तिन के पास "-अर्थात यह आत्मा जिसका अंश है उस परमात्मा के पास पहुँच ही गई |कबीर के अनुसार यह सब प्रेम के कारण ही संभव हुआ है |अतः सबसे प्रेम करते रहें यही कबीर का कहना है |कबीर के लिए सबसे प्रेम करना ही एक मात्र परमात्मा की प्रार्थना है |
|| हरिः शरणम् ||
Wonderful 😊 bahut sundar 👌
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