Tuesday, January 14, 2014

मकर-सक्रांति |

                                   जब मानव सभ्यता का विकास हुआ तब उसे समय के बारे में कुछ ऐसी पद्धति विकसित करने की सूझी जिससे संसार में सभी कार्य एक निश्चित अवधि में संपन्न हो सकें |पहले उसने चंद्रमा के आधार पर समय बनाया |चन्द्रमा ,पृथ्वी की परिक्रमा लगभग एक मास में सम्पूर्ण करता है |इस प्रकार एक चन्द्र मास लगभग३० दिनों की अवधि का होता है |ऐसे १२ चन्द्र -मास मिलकर एक चन्द्र-वर्ष बनाते हैं|इस प्रकार एक चन्द्र वर्ष में लगभग ३६० दिवस होते हैं | परन्तु चंद्रमा को पृथ्वी की एक परिक्रमा को पूरा करने में ३० दिन से कुछ कम समय लगता है ,इस कारण से हिंदी-पंचाग में एक चन्द्र-वर्ष लगभग ३५५ दिवस का ही होता है |
                          चंद्रमा ,पृथ्वी की परिक्रमा करने के साथ साथ सूर्य की भी परिक्रमा करता  है |चूंकि पृथ्वी का उपग्रह चंद्रमा है और पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है ,इस प्रकार चंद्रमा भी उसके साथ साथ सूर्य की परिक्रमा करता रहता है |सूर्य की एक परिक्रमा करने में पृथ्वी को ३६५ दिवस से कुछ अधिक का समय लगता है | इस कारण से लगभग चार वर्षों  में एक वर्ष में ३६६ दिवस करने पड़ते हैं ,जिसे हम लीप वर्ष कहते हैं |इस समय को एक सौर-वर्ष कहा गया है |इस सौर-वर्ष को बारह राशियों के अनुसार १२ महीनों में बाँटा गया है |इनके नाम जनवरी से दिसंबर तक हैं | रशिया हैं-मेष,वृषभ,मिथुन ,कर्क सिन्ह,कन्या ,तुला ,वृश्चिक ,धन,मकर, कुम्भ और मीन|जब सूर्य प्रत्येक एक माह बाद एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है उस समय को संक्रमण काल अर्थात सक्रांति कहते हैं |१४ जनवरी को यह संक्रमण काल है-सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने का |अतः इस संक्रमण काल यानि संक्रांति को मकर संक्रांति कहा जाता है |
                             प्रश्न यह उठता है कि जब ऐसा संक्रमण-काल हर माह आता है तो फिर इस मकर सक्रांति का ही विशेष महत्त्व क्यों है ?२१ जून से पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव का झुकाव सूर्य की ओर होने लगता है जो १३ जनवरी को अपने चरम पर होता है |इसे सूर्य का दक्षिणायन होना कहते है|१४ जनवरी के दिन से पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव का झुकाव सूर्य की ओर होना शुरू होजाता है और दक्षिणी ध्रुव सूर्य से धीरे धीरे दूर होता चला जाता है |इसको सूर्य का उत्तरायण होना कहते हैं |सनातन धर्म में मान्यता है कि उत्तरायण में देह त्यागनेवाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है |भीष्म पितामह को ईच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था |महाभारत युद्ध ग्रीष्म-काल में हुआ था |अर्जुन के बाणों से घायल होकर भीष्म शर-शैया पर सूर्य के उत्तरायण होने तक इंतज़ार करते रहे और उसके बाद ही उन्होंने अपनी देह छोड़ी |इस काल में दान-पुण्य का विशेष महत्त्व है |इस कारण से सभी धर्म-प्रेमी इस दिन दान कर पुण्य कमाने का प्रयास भी करते है |इस दिन अर्थात मकर-सक्रांति को एक उत्सव का वातावरण होता है-सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में.तेज सर्दी के लौट जाने की आहट से,पुण्य कमाने की सोच से,रबी की अच्छी फसल होने की सम्भावना से |आइये हम सभी इस उत्सव की खुशी में खो जाएँ ,आनंद मनाएं |आप सभी को मकर-सक्रांति की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं|
                                    || हरिः शरणम् ||

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