कबीर,भक्ति-युग का एक ऐसा नाम जिसने अंधविश्वासों पर इतनी चोट की ,जितनी समकालीन महापुरुषों में कम ही देखने को मिलती है |काशी के बारे में प्रसिद्ध है कि यहाँ बनारस में आकर जो व्यक्ति देह छोड़ता है ,उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है |पास ही में एक जगह है जिसका नाम है मगहर |कहा जाता है कि वहाँ रहते हुए जो भी मृत्यु को प्राप्त होता है उसकी मुक्ति नहीं होती है |अतः उस समय में मगहर में जो भी मरणासन्न होता था उसे घरवाले काशी लेकर आ जाते थे और उसको मृत्युपर्यंत वहीँ रखते थे |यह एक उस समय का बहुत बड़ा अन्धविश्वास था | कबीर काशी में रहते थे |परन्तु जब उनका देह छोड़ने का समय आया तो उन्होंने अपने घरवालों को कहा कि वे उन्हें मगहर ले चले |ऐसे थे कबीर | मृत्युपर्यंत वे इसी प्रकार अंधविश्वासों पर करारे प्रहार करते रहे |
वे अंधविश्वासों के मुखर विरोधी जरूर थे,परन्तु कभी भी उन्होंने व्यक्ति विशेष का विरोध नहीं किया |किसी की भी आलोचना करने के विषय में उनका कहना है कि -
कबीरा तेरी झोंपड़ी ,गलकटीयन के पास |
जो करेगा वो भरेगा ,तूँ क्यों भया उदास ??
कनीर कहते हैं कि अगर तुम्हारा निवास स्थान कसाइयों के मोहल्ले में है ,तो तूँ उनके भविष्य की चिंता में उदास क्यूँ है?वे चाहे कितनी ही निर्दयता के साथ पशुवध कर रहे हो,तुम्हे उसकी आलोचना नहीं करनी चाहिए |इस संसार का यह नियम है कि सबको अपने किये का फल अवश्य मिलता है |इस प्रकार इनको भी अपनी करनी का फल अवश्य ही मिलेगा ,इसके बारे में आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है |आलोचना सबसे बुरी होती है |आलोचना करके आप भी अपना भविष्य बिगाड लेंगे |स्वामी रामसुखदासजी महाराज भी आलोचना के विषय में एक दोहा सुनाया करते थे-
तेरे भावे जो करे,भलो बुरो सरकार |
नारायण तूँ बैठकर ,अपनों भवन बुहार ||
एक बार खलीफा जल्द सुबह सहर की नमाज़ अता करने मस्जिद जा रहा था |साथ में उसका बेटा भी था |सर्दियों के दिन थे |सर्दियों में सहर की नमाज़ के लिए अजान अँधेरे अँधेरे हो जाती है |खलीफा और उसका बेटा मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे |बेटे ने देखा कि रास्ते में पड़ने वाले सभी घरों के लोग सो रहे हैं |बेटा अपने पिता से कहता है कि अब्बुजान ये लोग कितने आलसी है ,सुबह उठकर खुदा को याद भी नहीं करते है |इनको जन्नत कैसे नसीब होगी?इनको अवश्य ही दोज़ख जाना होगा |खलीफा अपने बेटे को कहता है कि बेटे,इन्हें जन्नत नसीब होगी या नहीं ,कह नहीं सकता,परन्तु तुम्हे तो अवश्य ही नहीं होगी |इनकी आलोचना करने से बेहतर था कि तुम भी नमाज़ अता करने नहीं आते |इस कहानी का अर्थ यही है कि सदैव किसी भी प्रकार की आलोचना करने से दूर रहे|कबीर भी यही कहते हैं |आलोचना करे नहीं,सिर्फ उन लोगों को अपने पास रखे जो आपके आलोचक हों |वो आपकी मानसिकता में निरंतर सुधार अवश्य करते रहेंगे |
निंदक नियरे राखिये,आँगन कुटी छुवाय |
बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल करे सुभाय ||
अपने निंदक को सदैव धन्यवाद ज्ञापित करें |वही एकमात्र वक्ति है जो आपको आत्मविश्लेषण के लिए विवश करता है,जिससे आपकी कमियां दूर हो जाती है |धन्य है कबीर |
|| हरिः शरणम् ||
वे अंधविश्वासों के मुखर विरोधी जरूर थे,परन्तु कभी भी उन्होंने व्यक्ति विशेष का विरोध नहीं किया |किसी की भी आलोचना करने के विषय में उनका कहना है कि -
कबीरा तेरी झोंपड़ी ,गलकटीयन के पास |
जो करेगा वो भरेगा ,तूँ क्यों भया उदास ??
कनीर कहते हैं कि अगर तुम्हारा निवास स्थान कसाइयों के मोहल्ले में है ,तो तूँ उनके भविष्य की चिंता में उदास क्यूँ है?वे चाहे कितनी ही निर्दयता के साथ पशुवध कर रहे हो,तुम्हे उसकी आलोचना नहीं करनी चाहिए |इस संसार का यह नियम है कि सबको अपने किये का फल अवश्य मिलता है |इस प्रकार इनको भी अपनी करनी का फल अवश्य ही मिलेगा ,इसके बारे में आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है |आलोचना सबसे बुरी होती है |आलोचना करके आप भी अपना भविष्य बिगाड लेंगे |स्वामी रामसुखदासजी महाराज भी आलोचना के विषय में एक दोहा सुनाया करते थे-
तेरे भावे जो करे,भलो बुरो सरकार |
नारायण तूँ बैठकर ,अपनों भवन बुहार ||
एक बार खलीफा जल्द सुबह सहर की नमाज़ अता करने मस्जिद जा रहा था |साथ में उसका बेटा भी था |सर्दियों के दिन थे |सर्दियों में सहर की नमाज़ के लिए अजान अँधेरे अँधेरे हो जाती है |खलीफा और उसका बेटा मस्जिद की तरफ बढ़ रहे थे |बेटे ने देखा कि रास्ते में पड़ने वाले सभी घरों के लोग सो रहे हैं |बेटा अपने पिता से कहता है कि अब्बुजान ये लोग कितने आलसी है ,सुबह उठकर खुदा को याद भी नहीं करते है |इनको जन्नत कैसे नसीब होगी?इनको अवश्य ही दोज़ख जाना होगा |खलीफा अपने बेटे को कहता है कि बेटे,इन्हें जन्नत नसीब होगी या नहीं ,कह नहीं सकता,परन्तु तुम्हे तो अवश्य ही नहीं होगी |इनकी आलोचना करने से बेहतर था कि तुम भी नमाज़ अता करने नहीं आते |इस कहानी का अर्थ यही है कि सदैव किसी भी प्रकार की आलोचना करने से दूर रहे|कबीर भी यही कहते हैं |आलोचना करे नहीं,सिर्फ उन लोगों को अपने पास रखे जो आपके आलोचक हों |वो आपकी मानसिकता में निरंतर सुधार अवश्य करते रहेंगे |
निंदक नियरे राखिये,आँगन कुटी छुवाय |
बिन पानी साबुन बिना ,निर्मल करे सुभाय ||
अपने निंदक को सदैव धन्यवाद ज्ञापित करें |वही एकमात्र वक्ति है जो आपको आत्मविश्लेषण के लिए विवश करता है,जिससे आपकी कमियां दूर हो जाती है |धन्य है कबीर |
|| हरिः शरणम् ||
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