मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि प्रेम कोई छोटा सा शब्द नहीं है कि उसके बारे में तुरंत ही कोई अर्थ ,उसका कोई मतलब निकल जाये |यह शब्द अपने भीतर एक समग्रता लिए हुए है ,एक प्रकार की गहराई समेटे हुए है |प्रेम शब्द को और प्रेम को हलके में लेना बहुत ही अनुचित होगा |जिस प्रकार से आजकल इस शब्द का प्रयोग किया जा रहा है,लगता है थोड़े समय बाद ही यह शब्द ,यह प्रेम अपनी विश्वसनीयता ही खो देगा |प्रेम में धोखा,प्रेम में हत्या -क्या है यह सब?क्यों प्रेम का इतना उपहास किया जा रहा है ?ऐसा केवल वे ही लोग कर रहे हैं जिन्हें भाषा का केवल छिछला ज्ञान है |आजकल ऐसे कई व्यक्ति आपको मिल जायेंगे जो कहते फिरते हैं कि उसने फलां लड़की से प्रेम किया और उसने धोखा दे दिया |क्या प्रेम अब केवल विपरीत लिंग के व्यक्ति को करने तक ही सीमित रह गया है ?क्या प्रेम करते हुए भी कोई धोखा दे सकता है ?
कितनी बड़ी विडंबना है कि जब भी कोई हमें कहता है कि वह किसी के प्रेम में है तो हम तुरंत उससे उस लड़के या लड़की का नाम जानना चाहते हैं |क्या प्रेम केवल विपरीत लिंग के व्यक्ति से ही होता है ?नहीं|प्रेम अगर होता है तो सम्पूर्णता के साथ होता है ,इस ब्रह्माण्ड में स्थित प्रत्येक व्यक्ति,वस्तु और प्रकृति से | यहाँ उपस्थित कोई भी व्यक्ति ,वस्तु कुरूप नहीं है |सभी अपने भीतर एक तरह की सुंदरता समेटे हुए है | प्रत्येक में सुंदरता को देखने वाला ही प्रेम करने का अधिकारी होता है |सौंदर्य देखने के लिए भी विशेष प्रकार की दृष्टि चाहिए |उसके लिए केवल नेत्रों का होना ही प्रयाप्त नहीं है |
आप इतने वर्षों से महानगर में ,शहर में या गांव में रहते आये हैं |क्या आपको अपने वहाँ की सुंदरता नज़र आयी है ?आप दिनभर यहाँ ,इस संसार के क्रियाकलापों में इतने व्यस्त रहते हैं कि आपको कहीं भी कोई सुंदरता नज़र आती ही नहीं है |फिर भी आप कहते हैं कि आप किसी से प्रेम करते हैं |अगर आपको प्रकृति की सुंदरता ही नज़र नहीं आती तो कैसा प्रेम और किससे प्रेम ?प्रेम का प्रारम्भ बिना सुंदरता के हो ही नहीं सकता |सौंदर्य आपके चारों और बिखरा हुआ है और आप उसको देख नहीं पा रहे है ,यह आपकी विफलता है ,न कि सौंदर्य की |कभी प्रातः जल्दी उठकर बाहर मैदान में ,खेतों में घूमने निकले|सूर्योदय का नज़ारा देखें-कितना सुन्दर लगता है यह दृश्य|व्यक्ति एक बार तो स्वयं को ही भूल जाता है |समंदर के किनारे चले जाईये|देखिये किस तरह से लहरें एक दूसरे के ऊपर से उछलती हुई किनारे को छूकर लौट जाती है |कभी प्रारम्भिक स्कूल में जाईये और देखिये छोटे छोटे बच्चे बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे के साथ मस्ती करते है|आप यह सब देख सकते हैं अगर आप सिर्फ सवयं के बारे में ही नहीं सोच रहे हो तो|अन्यथा आपको केवल आपसे सम्बन्धित दृश्य ही नज़र आएगा |न सूर्योदय का मनोरम दृश्य,न ही समुद्र में उठती लहरें और न ही बच्चों की मासूमियत,कुछ भी नज़र नहीं आएगा |आप इस सौंदर्य से वंचित ही रहेंगे |फिर आपमें कैसा प्रेम,आपके लिए किसका प्रेम ?
दिनभर आप अपने कार्यों में,पैसे कमाने में,संसार की झूठी जिम्मेदारियां उठाने में इतने अधिक व्यस्त रहते हैं कि आपका भीतरी सौंदर्य तक निखर नहीं पाता,बाहर के सौंदर्य को देखने का तो प्रश्न ही नहीं|आपके पास ऐसी दृष्टि भी नहीं है कि स्वयं का सौदर्य भी देख सको |इसका एक ही अर्थ है कि आप अपने से भी प्रेम नहीं कर रहे हैं |फिर और किसी से प्रेम क्या कर पाएंगे?जब आप स्वयं को इतना समय देंगे कि खुद को जान सके,खुद को प्रेम कर सकें उस दिन यह प्रश्न ही समाप्त हो जायेगा कि प्रेम किससे करें ?आप सभी से प्रेम करने लगेंगे|इतना परिवर्तन आते ही चारों और प्रेम ही प्रेम होगा,आपका आंतरिक सौंदर्य ,बाहर नज़र आने लगेगा और आप सबसे प्रेम करने लगेंगे और सब आपसे |जब यह सब होगा,संसार भी सुन्दर लगने लगेगा |यही प्रेम का साध्य है कि संसार में सबसे प्रेम करें |
प्रेमी ढूंढें प्रेमी को,प्रेमी मिला ना कोय |
प्रेमी से प्रेमी मिले, सब विष,अमृत होय ||
|| हरिः शरणम् ||
कितनी बड़ी विडंबना है कि जब भी कोई हमें कहता है कि वह किसी के प्रेम में है तो हम तुरंत उससे उस लड़के या लड़की का नाम जानना चाहते हैं |क्या प्रेम केवल विपरीत लिंग के व्यक्ति से ही होता है ?नहीं|प्रेम अगर होता है तो सम्पूर्णता के साथ होता है ,इस ब्रह्माण्ड में स्थित प्रत्येक व्यक्ति,वस्तु और प्रकृति से | यहाँ उपस्थित कोई भी व्यक्ति ,वस्तु कुरूप नहीं है |सभी अपने भीतर एक तरह की सुंदरता समेटे हुए है | प्रत्येक में सुंदरता को देखने वाला ही प्रेम करने का अधिकारी होता है |सौंदर्य देखने के लिए भी विशेष प्रकार की दृष्टि चाहिए |उसके लिए केवल नेत्रों का होना ही प्रयाप्त नहीं है |
आप इतने वर्षों से महानगर में ,शहर में या गांव में रहते आये हैं |क्या आपको अपने वहाँ की सुंदरता नज़र आयी है ?आप दिनभर यहाँ ,इस संसार के क्रियाकलापों में इतने व्यस्त रहते हैं कि आपको कहीं भी कोई सुंदरता नज़र आती ही नहीं है |फिर भी आप कहते हैं कि आप किसी से प्रेम करते हैं |अगर आपको प्रकृति की सुंदरता ही नज़र नहीं आती तो कैसा प्रेम और किससे प्रेम ?प्रेम का प्रारम्भ बिना सुंदरता के हो ही नहीं सकता |सौंदर्य आपके चारों और बिखरा हुआ है और आप उसको देख नहीं पा रहे है ,यह आपकी विफलता है ,न कि सौंदर्य की |कभी प्रातः जल्दी उठकर बाहर मैदान में ,खेतों में घूमने निकले|सूर्योदय का नज़ारा देखें-कितना सुन्दर लगता है यह दृश्य|व्यक्ति एक बार तो स्वयं को ही भूल जाता है |समंदर के किनारे चले जाईये|देखिये किस तरह से लहरें एक दूसरे के ऊपर से उछलती हुई किनारे को छूकर लौट जाती है |कभी प्रारम्भिक स्कूल में जाईये और देखिये छोटे छोटे बच्चे बिना किसी भेदभाव के एक दूसरे के साथ मस्ती करते है|आप यह सब देख सकते हैं अगर आप सिर्फ सवयं के बारे में ही नहीं सोच रहे हो तो|अन्यथा आपको केवल आपसे सम्बन्धित दृश्य ही नज़र आएगा |न सूर्योदय का मनोरम दृश्य,न ही समुद्र में उठती लहरें और न ही बच्चों की मासूमियत,कुछ भी नज़र नहीं आएगा |आप इस सौंदर्य से वंचित ही रहेंगे |फिर आपमें कैसा प्रेम,आपके लिए किसका प्रेम ?
दिनभर आप अपने कार्यों में,पैसे कमाने में,संसार की झूठी जिम्मेदारियां उठाने में इतने अधिक व्यस्त रहते हैं कि आपका भीतरी सौंदर्य तक निखर नहीं पाता,बाहर के सौंदर्य को देखने का तो प्रश्न ही नहीं|आपके पास ऐसी दृष्टि भी नहीं है कि स्वयं का सौदर्य भी देख सको |इसका एक ही अर्थ है कि आप अपने से भी प्रेम नहीं कर रहे हैं |फिर और किसी से प्रेम क्या कर पाएंगे?जब आप स्वयं को इतना समय देंगे कि खुद को जान सके,खुद को प्रेम कर सकें उस दिन यह प्रश्न ही समाप्त हो जायेगा कि प्रेम किससे करें ?आप सभी से प्रेम करने लगेंगे|इतना परिवर्तन आते ही चारों और प्रेम ही प्रेम होगा,आपका आंतरिक सौंदर्य ,बाहर नज़र आने लगेगा और आप सबसे प्रेम करने लगेंगे और सब आपसे |जब यह सब होगा,संसार भी सुन्दर लगने लगेगा |यही प्रेम का साध्य है कि संसार में सबसे प्रेम करें |
प्रेमी ढूंढें प्रेमी को,प्रेमी मिला ना कोय |
प्रेमी से प्रेमी मिले, सब विष,अमृत होय ||
|| हरिः शरणम् ||