भक्ति और प्रेम कोई अलग अलग नहीं है |जितने भी भक्ति-रस के काव्य हैं ,उनमे प्रेम को प्रमुखता सदैव ही मिली है |आप मीरा का काव्य देख लें चाहे कबीर का ,रसखान का देख लें या सूरदास का |सभी ने प्रेम को परमात्मा के समकक्ष माना है |इससे रहीम भी अछूते नहीं रहे |रहीम का जिक्र हो और उनके प्रेम से सम्बंधित काव्य की चर्चा नहीं हो तो यह उनके साथ अन्याय होगा |प्रेम से सम्बंधित उनके कुछ दोहों ने मुझे प्रभावित किया है |वे ऐसी रचनाएँ है जो प्रेम करने वालों को अपने ह्रदय तक पहुंचती महसूस होती है |यही रहीम की विशेषता है |
कहाँ करों बैंकुठ ले,कल्पवृक्ष की छाँह |
रहिमन ढाक सुहावनो,जो गल प्रीतम बाँह ||
रहीम कहते हैं कि अगर परमात्मा मेरी भक्ति से प्रसन्न हो जाता है और मुझे बैंकुठ में आने के लिए कहता है,तो मैं उसे कदापि स्वीकार नहीं करूँगा |बैंकुठ वह स्थान है जहाँ परमात्मा स्वयं निवास करते हैं |यह एक स्थान है जहाँ कोई दुःख नहीं है,किसी प्रकार की कुंठा नहीं है ,चारों ओर आनंद ही आनंद बरसता है |रहीम परमात्मा के इस सर्वोत्तम प्रस्ताव को ठुकरा देते हैं |कहा जाता है कि बैकुंठ में कल्पवृक्ष है |उसकी छांह में बैठकर व्यक्ति जिस किसी की भी कल्पना करता है,वह वस्तु उसे तुरंत बिना किसी परिश्रम के उपलब्ध हो जाती है |रहीम कहते हैं कि मैं बैंकुठ और कल्पवृक्ष की छांह लेकर भी क्या करूँगा ?मेरे को तो किसी भी वस्तु की चाह है ही नहीं |मैं तो सिर्फ प्रेम चाहता हूँ |मेरे गले में अगर मेरे प्रीतम की बांह हो तो छोटा सा पौधा ढाक यानि बेर का पौधा भी मुझे सुहावना प्रतीत होगा |बेर की झाड़ी होती है ,देखने में बिलकुल भी सुन्दर नहीं होती है और काँटों से भरी भी होती है |नीचे बैठने की जगह भी नहीं होती क्योंकि उसकी डालियाँ जमीन तक झुकी होती है |एक कहावत है न कि "ढाक के तीन पात" |इतना छोटा सा ,काँटों युक्त बेर का पौधा भी रहीम को सुन्दर लगेगा अगर उसके गले में अपने प्रीतम की बांह होगी |
यह न रहीम सराहिये,लन -देन की प्रीति |
प्रानन बाजी राखिये,हार होय के जीति ||
यह जो प्रेम के नाम पर लेना-देना चल रहा है,उसकी कभी भी सराहना मत करो |रहीम प्रेम में ऐसे लेन-देन को महत्वहीन करार देते हैं |वे कहते हैं कि अगर कुछ लेना देना करना ही है तो अपने प्राण को दांव पर लगाइए |यह बिलकुल भी नहीं सोचना कि आपके इस दांव में आपकी जीत होगी या हार |प्रेम करने वाले हार-जीत की परवाह बिलकुल भी नहीं करते हैं |प्राण की बाज़ी लगाकर ही प्रेम प्राप्त कर सकते हो |बिना प्रेम के परमात्मा कहाँ ?प्रेम में तो स्वयं को ही मिटना होता है |
रहिमन मैन तुरंग चढ़ी,चलिबो पावक मांही |
प्रेम-पंथ ऐसो कठिन , सब कोऊ निबहत नांही ||
बड़ा ही सुन्दर दोहा कहा है ,रहीम ने |प्रेम के रास्ते पर चलना आसन कहीं से भी नहीं है |इस पर हर कोई नहीं चल सकता |और अगर कोई चलना शुरू भी करता है तो गंतव्य तक पहुँचना मुश्किल है |"रहिमन मैन तुरंग चढ़ी "-मैन कहते हैं मोम को और तुरंग कहते हैं घोड़े को |अगर कोई व्यक्ति मोम के घोड़े पर चढ कर आग लगे रास्ते पर चलना चाहे तो क्या वह उस रास्ते से पार जा सकेगा ? बहुत ही मुश्किल है,ऐसे अग्नियुक्त रास्ते पर मोम के घोड़े पर बैठकर चलना |मोम स्वयं ज्वलनशील है,वह आग को और अधिक तेज कर देता है |जिस कारण से व्यक्ति का भभकती आग से बाहर निकलना ही दुष्कर हो जाता है,पार होना तो अति कठिन है | प्रेम के रास्ते पर भी चलना इसी प्रकार से चलने के समान है |प्रेम करके उसे निबाहना ,उसको ऊंचाई तक ले जाना बहुत ही मुश्किल है |इसी लिए रहीम ने प्रेम-पथ को सबसे कठिन पथ बताया है |
रहिमन प्रीती सराहिये,मिले होत रंग दून |
ज्यों जरदी हरदी तजै,तजै सफेदी चून ||
अंत में रहीम कहते है कि प्रेम वही सराहा जाता है,उसी प्रेम की प्रशंसा की जाती है जिसमे दोनों प्रेमी मिलकर एक हो जाते हैं |दोनों के ही रंग मिलकर एक दूसरे में समाकर दुगुने हो जाते हैं |"मिले होत रंग दून "-दोनों एकाकार होकर भी अपने अपने अनुसार दुगुने महसूस करते हैं |दोनों ही अपना स्वभाव छोड़ देते हैं |फिर जो स्वभाव पैदा होता है ,वह पहले से ही कही ज्यादा बेहतर होता है |रहीम ने इसको बड़ी ही शानदार उपमा दी है |
"ज्यों जरदी हरदी तजै,तजै सफेदी चून"|जो लोग अंडे का सेवन करते हैं वो जानते हैं कि अंडे को फोड़ने पर अंदर सफ़ेद हिस्से का एक आवरण होता है जो पीले रंग के yolk sac को घेरे रहता है |अंडे के इस भीतरी पीले भाग को रंग के कारण जरदी कहा जाता है |जरदी का अर्थ होता है-पीला रंग |हल्दी को पानी में घोला जाये तो उसका रंग पीला होता है और चूने का घोल सफ़ेद रंग का होता है |अगर दोनों के घोल को मिलाया जाये तो जो मिश्रण बनता है वह लाल रंग का होता है |कभी सब्जी खाते समय कपड़ों पर गिर जाती है तो पीला सा एक दाग कपड़ों पर लग जाता है ,यह रंग सब्जी में डाली हुई हल्दी के कारण होता है |जब उस दाग को साबुन से धोने का प्रयास करते हैं तो पहले वह सुर्ख लाल रंग में परिवर्तित होता है |ऐसा साबुन में उपस्थित चूने के कारण होता है |रहीम कहते है कि दो प्रेमी जब एकाकार होते हैं तब भी ऐसा ही होता है |जैसे हल्दी और चूने के घोल के मिलाने से होता है |मिलाते ही हल्दी अपना पीला रंग और चूना अपना सफ़ेद रंग त्याग देते है और अधिक सुहावना रंग लाल में परिवर्तित हो जाते है |इसी प्रकार प्रेम में जब दोनों प्रेमी मिलते हैं तो दोनों को असीम आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है |प्रेमी भक्त जब प्रेमवश परमात्मा का आलिंगन करता है तब भी ऐसा ही उसे अनुभव होता है |आखिर प्रेम ,परमात्मा का ही तो एक नाम है |
|| हरिः शरणम् ||
कहाँ करों बैंकुठ ले,कल्पवृक्ष की छाँह |
रहिमन ढाक सुहावनो,जो गल प्रीतम बाँह ||
रहीम कहते हैं कि अगर परमात्मा मेरी भक्ति से प्रसन्न हो जाता है और मुझे बैंकुठ में आने के लिए कहता है,तो मैं उसे कदापि स्वीकार नहीं करूँगा |बैंकुठ वह स्थान है जहाँ परमात्मा स्वयं निवास करते हैं |यह एक स्थान है जहाँ कोई दुःख नहीं है,किसी प्रकार की कुंठा नहीं है ,चारों ओर आनंद ही आनंद बरसता है |रहीम परमात्मा के इस सर्वोत्तम प्रस्ताव को ठुकरा देते हैं |कहा जाता है कि बैकुंठ में कल्पवृक्ष है |उसकी छांह में बैठकर व्यक्ति जिस किसी की भी कल्पना करता है,वह वस्तु उसे तुरंत बिना किसी परिश्रम के उपलब्ध हो जाती है |रहीम कहते हैं कि मैं बैंकुठ और कल्पवृक्ष की छांह लेकर भी क्या करूँगा ?मेरे को तो किसी भी वस्तु की चाह है ही नहीं |मैं तो सिर्फ प्रेम चाहता हूँ |मेरे गले में अगर मेरे प्रीतम की बांह हो तो छोटा सा पौधा ढाक यानि बेर का पौधा भी मुझे सुहावना प्रतीत होगा |बेर की झाड़ी होती है ,देखने में बिलकुल भी सुन्दर नहीं होती है और काँटों से भरी भी होती है |नीचे बैठने की जगह भी नहीं होती क्योंकि उसकी डालियाँ जमीन तक झुकी होती है |एक कहावत है न कि "ढाक के तीन पात" |इतना छोटा सा ,काँटों युक्त बेर का पौधा भी रहीम को सुन्दर लगेगा अगर उसके गले में अपने प्रीतम की बांह होगी |
यह न रहीम सराहिये,लन -देन की प्रीति |
प्रानन बाजी राखिये,हार होय के जीति ||
यह जो प्रेम के नाम पर लेना-देना चल रहा है,उसकी कभी भी सराहना मत करो |रहीम प्रेम में ऐसे लेन-देन को महत्वहीन करार देते हैं |वे कहते हैं कि अगर कुछ लेना देना करना ही है तो अपने प्राण को दांव पर लगाइए |यह बिलकुल भी नहीं सोचना कि आपके इस दांव में आपकी जीत होगी या हार |प्रेम करने वाले हार-जीत की परवाह बिलकुल भी नहीं करते हैं |प्राण की बाज़ी लगाकर ही प्रेम प्राप्त कर सकते हो |बिना प्रेम के परमात्मा कहाँ ?प्रेम में तो स्वयं को ही मिटना होता है |
रहिमन मैन तुरंग चढ़ी,चलिबो पावक मांही |
प्रेम-पंथ ऐसो कठिन , सब कोऊ निबहत नांही ||
बड़ा ही सुन्दर दोहा कहा है ,रहीम ने |प्रेम के रास्ते पर चलना आसन कहीं से भी नहीं है |इस पर हर कोई नहीं चल सकता |और अगर कोई चलना शुरू भी करता है तो गंतव्य तक पहुँचना मुश्किल है |"रहिमन मैन तुरंग चढ़ी "-मैन कहते हैं मोम को और तुरंग कहते हैं घोड़े को |अगर कोई व्यक्ति मोम के घोड़े पर चढ कर आग लगे रास्ते पर चलना चाहे तो क्या वह उस रास्ते से पार जा सकेगा ? बहुत ही मुश्किल है,ऐसे अग्नियुक्त रास्ते पर मोम के घोड़े पर बैठकर चलना |मोम स्वयं ज्वलनशील है,वह आग को और अधिक तेज कर देता है |जिस कारण से व्यक्ति का भभकती आग से बाहर निकलना ही दुष्कर हो जाता है,पार होना तो अति कठिन है | प्रेम के रास्ते पर भी चलना इसी प्रकार से चलने के समान है |प्रेम करके उसे निबाहना ,उसको ऊंचाई तक ले जाना बहुत ही मुश्किल है |इसी लिए रहीम ने प्रेम-पथ को सबसे कठिन पथ बताया है |
रहिमन प्रीती सराहिये,मिले होत रंग दून |
ज्यों जरदी हरदी तजै,तजै सफेदी चून ||
अंत में रहीम कहते है कि प्रेम वही सराहा जाता है,उसी प्रेम की प्रशंसा की जाती है जिसमे दोनों प्रेमी मिलकर एक हो जाते हैं |दोनों के ही रंग मिलकर एक दूसरे में समाकर दुगुने हो जाते हैं |"मिले होत रंग दून "-दोनों एकाकार होकर भी अपने अपने अनुसार दुगुने महसूस करते हैं |दोनों ही अपना स्वभाव छोड़ देते हैं |फिर जो स्वभाव पैदा होता है ,वह पहले से ही कही ज्यादा बेहतर होता है |रहीम ने इसको बड़ी ही शानदार उपमा दी है |
"ज्यों जरदी हरदी तजै,तजै सफेदी चून"|जो लोग अंडे का सेवन करते हैं वो जानते हैं कि अंडे को फोड़ने पर अंदर सफ़ेद हिस्से का एक आवरण होता है जो पीले रंग के yolk sac को घेरे रहता है |अंडे के इस भीतरी पीले भाग को रंग के कारण जरदी कहा जाता है |जरदी का अर्थ होता है-पीला रंग |हल्दी को पानी में घोला जाये तो उसका रंग पीला होता है और चूने का घोल सफ़ेद रंग का होता है |अगर दोनों के घोल को मिलाया जाये तो जो मिश्रण बनता है वह लाल रंग का होता है |कभी सब्जी खाते समय कपड़ों पर गिर जाती है तो पीला सा एक दाग कपड़ों पर लग जाता है ,यह रंग सब्जी में डाली हुई हल्दी के कारण होता है |जब उस दाग को साबुन से धोने का प्रयास करते हैं तो पहले वह सुर्ख लाल रंग में परिवर्तित होता है |ऐसा साबुन में उपस्थित चूने के कारण होता है |रहीम कहते है कि दो प्रेमी जब एकाकार होते हैं तब भी ऐसा ही होता है |जैसे हल्दी और चूने के घोल के मिलाने से होता है |मिलाते ही हल्दी अपना पीला रंग और चूना अपना सफ़ेद रंग त्याग देते है और अधिक सुहावना रंग लाल में परिवर्तित हो जाते है |इसी प्रकार प्रेम में जब दोनों प्रेमी मिलते हैं तो दोनों को असीम आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है |प्रेमी भक्त जब प्रेमवश परमात्मा का आलिंगन करता है तब भी ऐसा ही उसे अनुभव होता है |आखिर प्रेम ,परमात्मा का ही तो एक नाम है |
|| हरिः शरणम् ||