क्रमश:
प्रकृति से उत्पन्न बुद्धि(Intelligence) का सूक्ष्म(Micro) रूप होते हुये भी अपरा (Macro) कही गयी है|बुद्धि से ही मन (Mind) का संचालन किया जा सकता है|बुद्धि के बिना शरीर मात्र एक मल मूत्र पैदा करने वाली मशीन बनकर ही रह जायेगा | शरीर विज्ञानं(Anatomy) के अनुसार भ्रूण विकास में ECTODERM से NEURAL TUBE बनती है,जिससे मस्तिष्क(Brain) और सुषुम्ना नाडी(Spinal cord) का विकास होता है|विज्ञानं के अनुसार शरीर में होने वाली सभी गतिविधियां यहीं से नियंत्रित होती है|इन्द्रियों(Senses) का विकास भी उसी पर्त (Layer) से होता है,जिससे मस्तिष्क का होता है|इसी कारण बुद्धि की प्रकृति भी अपरा यानि स्थूल कही गयी है|
शरीर के अन्य सब अंगों की तरह मस्तिष्क में भी विद्युत उर्जा प्रवाहित होती रहती है|जिससे एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण होता है|आप इसे ही बुद्धि कह सकते है|क्योंकि जब यह क्षेत्र पूर्णतया समाप्त हो जाता है,तब मस्तिष्क नाम का अंग जरूर होता है,परन्तु कार्य करने लायक नहीं|इसमे अब विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का अभाव है,यानि बुद्धि का अभाव है|
विद्युत और चुम्बकीय क्षेत्र ----
-विद्युतीय क्षेत्र(Electric Field) तो विद्युत प्रवाह बंद हो जाने के बाद भी कुछ समय के लिए बना रहता है,जब कि चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic field) समाप्त हो जाता है|विद्युतीय क्षेत्र की एक सीमा होती है,जबकि चुम्बकीय क्षेत्र अनंत होता है|विद्युतीय उर्जा से चुम्बकीय क्षेत्र बन सकता है और चुम्बकीय क्षेत्र से गतिज उर्जा को विद्युतीय उर्जा में बदला जा सकता है|जल विद्युत परियोजनाएं(Hydro power project) इसका उदहारण है|
चुम्बकीय क्षेत्र गोलाकार(Circle) आकृति लिए होता है|इसकी विशेषता है कि यह पलक झपकने के साथ ही अनंत(Infinity) तक विस्तार पाकर स्थिर हो जाता है|इसकी गति का अनुमान लगाना असंभव है|प्रत्येक कोशिका से लेकर पूरे शरीर तक ,सबका अपना अपना जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र (Bio- Electro magnetic field)होता है|जो एक दूसरे को प्रभावित करते है|ब्रह्माण्ड(Universe) में जितने भी पिण्ड है उन सबका अपना ऐसा ही एक क्षेत्र होता है|
मानव मस्तिष्क(Brain) में उपस्थित यही जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र ही बुद्धि (Intelligence) है|जब इसका विकास होता है तब वह कहीं पर भी तुरंत पहुँच सकती है|बुद्धि और मन का आपस में गहरा संबंध होता है,और इन्हें अलग अलग समझना असंभव है|मन का लगाव जब किसी विशेष के साथ होता है ,तब यह चुम्बकीय क्षेत्र अपना फैलाव कर विशेष के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित करने लगता है|आपको ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे जहाँ दूर बैठा कोई व्यक्ति अचानक अपने विशेष व्यक्ति से संपर्क हुआ पाता है|आप अगर गौर करेंगे तो इस बात को सत्य पाएंगे|खेतों में काम करने वाली महिलाएं,घर में सो रहे बच्चे के बारे में पता लगा लेती है कि वह घर पर रो रहा है,खेल रहा है या उसको कोई चोट लग गयी है|बच्चे के रोते ही वह तुरंत काम छोड़ जब घर पहुँचती है,तो उसे सब वही देखने को मिलता है ,जैसा उसने खेत में काम करते हुये महसूस किया|यहाँ पर,महिला ने अपने मस्तिष्क के चुम्बकीय क्षेत्र को फैला कर बच्चे के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ स्थिर कर लिया था|अब बच्चे के इस क्षेत्र में जो भी परिवर्तन आते है वे महिला यानि उसकी माँ के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित करते हुये महिला के मस्तिष्क तक पलक झपकते ही पहुँच जाते है,और माँ को बच्चे के बारे में तुरंत महसूस हो जाता है कि बच्चे के साथ क्या घटित हो रहा है?यह सब माँ की ममता के कारण होता है|जब कि माँ को यह आभास ही नहीं होता कि ऐसा वह सब कर रही है|
अब इसे भौतिक संसार के साथ जोड़ कर देखें|आप रास्ते से जा रहे है|आपके कानो ने कोई आवाज नहीं सुनी|अचानक आप को लगता है कि आपके पीछे पीछे कोई परिचित आ रहा है|आप पीछे मुड़कर देखते है,और उसी को आपके पीछे आता हुआ पाते है|यह सब दो क्षेत्रों के आपस में तालमेल के बिना असंभव है|किसी एक के क्षेत्र का फैलाव होकर दूसरे के क्षेत्र तक पहुँचना जरुरी है|यह सब आपके मन पर निर्भर करता है|गीता में भगवान कहते हैं---
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय|
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय :||गीता १२/८||
अर्थात्, मुझ में मन को लगा और मुझमे ही बुद्धि को लगा;इसके उपरांत तू मुझमें ही निवास करेगा,इसमें कुछ भी संशय नहीं है|
मन और बुद्धि को जब परमात्मा की तरफ लगा दें तो फिर वह व्यक्ति परमात्मा को प्राप्त हो जाता है अर्थात् उसे परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है|अगले श्लोक में भगवान मन के स्थान पर चित्त शब्द का उपयोग करते हुये कहते हैं-
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मई स्थिरम् |
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय||गीता१२/९||
अर्थात्,यदि तू चित्त को मुझ में लगाने में असमर्थ है तो हे अर्जुन!अभ्यास योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिए इच्छा कर|
यहाँ पर यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्यों ही मन,बुद्धि के साथ आकर परमात्मा की तरफ उन्मुख होता है,मन का रूपांतरण हो जाता है|इस रूपांतरित मन को ही चित्त कहते हैं|
यही क्षेत्र(बुद्धि) जब अपना फैलाव कर परमात्मा के क्षेत्र के साथ योग कर लेता है,फिर उनके बीच भी एक सम्बन्ध बन जाता है|फिर परमात्मा के सन्देश भी आपको प्राप्त होने लगते है,जिसे अन्तःकरण की आवाज कहते हैं|जब इस बुद्धि का जुडाव मन के साथ होकर शरीर की तरफ हो जाता है तो इन्द्रियां मन को प्रभावित करते हुये बुद्धि को भी अपने नियंत्रण में ले लेती है|ऐसी स्थिति में व्यक्ति काम,वासना ,छल,कपट,मोह,माया आदि के चक्कर में पड़ा रहता है और जन्म-मरण के चक्र-व्यूह को भेद नहीं पाता है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
प्रकृति से उत्पन्न बुद्धि(Intelligence) का सूक्ष्म(Micro) रूप होते हुये भी अपरा (Macro) कही गयी है|बुद्धि से ही मन (Mind) का संचालन किया जा सकता है|बुद्धि के बिना शरीर मात्र एक मल मूत्र पैदा करने वाली मशीन बनकर ही रह जायेगा | शरीर विज्ञानं(Anatomy) के अनुसार भ्रूण विकास में ECTODERM से NEURAL TUBE बनती है,जिससे मस्तिष्क(Brain) और सुषुम्ना नाडी(Spinal cord) का विकास होता है|विज्ञानं के अनुसार शरीर में होने वाली सभी गतिविधियां यहीं से नियंत्रित होती है|इन्द्रियों(Senses) का विकास भी उसी पर्त (Layer) से होता है,जिससे मस्तिष्क का होता है|इसी कारण बुद्धि की प्रकृति भी अपरा यानि स्थूल कही गयी है|
शरीर के अन्य सब अंगों की तरह मस्तिष्क में भी विद्युत उर्जा प्रवाहित होती रहती है|जिससे एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण होता है|आप इसे ही बुद्धि कह सकते है|क्योंकि जब यह क्षेत्र पूर्णतया समाप्त हो जाता है,तब मस्तिष्क नाम का अंग जरूर होता है,परन्तु कार्य करने लायक नहीं|इसमे अब विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का अभाव है,यानि बुद्धि का अभाव है|
विद्युत और चुम्बकीय क्षेत्र ----
-विद्युतीय क्षेत्र(Electric Field) तो विद्युत प्रवाह बंद हो जाने के बाद भी कुछ समय के लिए बना रहता है,जब कि चुम्बकीय क्षेत्र(Magnetic field) समाप्त हो जाता है|विद्युतीय क्षेत्र की एक सीमा होती है,जबकि चुम्बकीय क्षेत्र अनंत होता है|विद्युतीय उर्जा से चुम्बकीय क्षेत्र बन सकता है और चुम्बकीय क्षेत्र से गतिज उर्जा को विद्युतीय उर्जा में बदला जा सकता है|जल विद्युत परियोजनाएं(Hydro power project) इसका उदहारण है|
चुम्बकीय क्षेत्र गोलाकार(Circle) आकृति लिए होता है|इसकी विशेषता है कि यह पलक झपकने के साथ ही अनंत(Infinity) तक विस्तार पाकर स्थिर हो जाता है|इसकी गति का अनुमान लगाना असंभव है|प्रत्येक कोशिका से लेकर पूरे शरीर तक ,सबका अपना अपना जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र (Bio- Electro magnetic field)होता है|जो एक दूसरे को प्रभावित करते है|ब्रह्माण्ड(Universe) में जितने भी पिण्ड है उन सबका अपना ऐसा ही एक क्षेत्र होता है|
मानव मस्तिष्क(Brain) में उपस्थित यही जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र ही बुद्धि (Intelligence) है|जब इसका विकास होता है तब वह कहीं पर भी तुरंत पहुँच सकती है|बुद्धि और मन का आपस में गहरा संबंध होता है,और इन्हें अलग अलग समझना असंभव है|मन का लगाव जब किसी विशेष के साथ होता है ,तब यह चुम्बकीय क्षेत्र अपना फैलाव कर विशेष के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित करने लगता है|आपको ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे जहाँ दूर बैठा कोई व्यक्ति अचानक अपने विशेष व्यक्ति से संपर्क हुआ पाता है|आप अगर गौर करेंगे तो इस बात को सत्य पाएंगे|खेतों में काम करने वाली महिलाएं,घर में सो रहे बच्चे के बारे में पता लगा लेती है कि वह घर पर रो रहा है,खेल रहा है या उसको कोई चोट लग गयी है|बच्चे के रोते ही वह तुरंत काम छोड़ जब घर पहुँचती है,तो उसे सब वही देखने को मिलता है ,जैसा उसने खेत में काम करते हुये महसूस किया|यहाँ पर,महिला ने अपने मस्तिष्क के चुम्बकीय क्षेत्र को फैला कर बच्चे के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ स्थिर कर लिया था|अब बच्चे के इस क्षेत्र में जो भी परिवर्तन आते है वे महिला यानि उसकी माँ के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित करते हुये महिला के मस्तिष्क तक पलक झपकते ही पहुँच जाते है,और माँ को बच्चे के बारे में तुरंत महसूस हो जाता है कि बच्चे के साथ क्या घटित हो रहा है?यह सब माँ की ममता के कारण होता है|जब कि माँ को यह आभास ही नहीं होता कि ऐसा वह सब कर रही है|
अब इसे भौतिक संसार के साथ जोड़ कर देखें|आप रास्ते से जा रहे है|आपके कानो ने कोई आवाज नहीं सुनी|अचानक आप को लगता है कि आपके पीछे पीछे कोई परिचित आ रहा है|आप पीछे मुड़कर देखते है,और उसी को आपके पीछे आता हुआ पाते है|यह सब दो क्षेत्रों के आपस में तालमेल के बिना असंभव है|किसी एक के क्षेत्र का फैलाव होकर दूसरे के क्षेत्र तक पहुँचना जरुरी है|यह सब आपके मन पर निर्भर करता है|गीता में भगवान कहते हैं---
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय|
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय :||गीता १२/८||
अर्थात्, मुझ में मन को लगा और मुझमे ही बुद्धि को लगा;इसके उपरांत तू मुझमें ही निवास करेगा,इसमें कुछ भी संशय नहीं है|
मन और बुद्धि को जब परमात्मा की तरफ लगा दें तो फिर वह व्यक्ति परमात्मा को प्राप्त हो जाता है अर्थात् उसे परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है|अगले श्लोक में भगवान मन के स्थान पर चित्त शब्द का उपयोग करते हुये कहते हैं-
अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मई स्थिरम् |
अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय||गीता१२/९||
अर्थात्,यदि तू चित्त को मुझ में लगाने में असमर्थ है तो हे अर्जुन!अभ्यास योग के द्वारा मुझको प्राप्त होने के लिए इच्छा कर|
यहाँ पर यह स्पष्ट हो जाता है कि ज्यों ही मन,बुद्धि के साथ आकर परमात्मा की तरफ उन्मुख होता है,मन का रूपांतरण हो जाता है|इस रूपांतरित मन को ही चित्त कहते हैं|
यही क्षेत्र(बुद्धि) जब अपना फैलाव कर परमात्मा के क्षेत्र के साथ योग कर लेता है,फिर उनके बीच भी एक सम्बन्ध बन जाता है|फिर परमात्मा के सन्देश भी आपको प्राप्त होने लगते है,जिसे अन्तःकरण की आवाज कहते हैं|जब इस बुद्धि का जुडाव मन के साथ होकर शरीर की तरफ हो जाता है तो इन्द्रियां मन को प्रभावित करते हुये बुद्धि को भी अपने नियंत्रण में ले लेती है|ऐसी स्थिति में व्यक्ति काम,वासना ,छल,कपट,मोह,माया आदि के चक्कर में पड़ा रहता है और जन्म-मरण के चक्र-व्यूह को भेद नहीं पाता है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
No comments:
Post a Comment