Tuesday, August 20, 2013

पुनर्जन्म क्यों?-कारण|क्रमश:२|

क्रमश:
                     गीता में भगवान ने पुनर्जन्म के कारण बहुत ही अच्छी तरह से समझाएं है|मुख्य कारण तीनों गुणों से युक्त पदार्थों को भोगना नहीं है बल्कि उन गुणों का संग  करना ही है|पुनर्जन्म तो किसी भी गुण के पदार्थों को भोगने से हो सकता है,अगर उन गुणों के बारे में ही जीवन पर्यंत चिंतन चलता रहे|भोग के साथ बंध जाना ही गलत है|ऐसी स्थिति में पुनर्जन्म अवश्यम्भावी है|
                     गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते है-
                                     ज्ञानं   कर्म  च  कर्ता  च  त्रिधैव   गुणभेदतः |
                                     प्रोच्यते गुणसंख्याने यथावाच्छ्रिणु तान्यपि ||गीता १८/१९ ||
अर्थात्,गुणों की संख्या करने वाले शास्त्र में ज्ञान और कर्म तथा कर्ता गुणों के भेद से तीन तीन प्रकार के कहे गए है|उनको भी हे अर्जुन तू भली भांति सुन|
                       इस श्लोक के आधार पर ज्ञान,कर्म और कर्ता तीनो ही सात्विक,राजसिक और तामसिक तरह के ही होते हैं|जो व्यक्ति ज्ञान के द्वारा सब भूतों में एक ही परमात्मा को देखता है वह ज्ञान सत्विक ज्ञान कहलाता है|और जो ज्ञान सब भूतों में अलग अलग जानता है वह राजस ज्ञान कहलाता है,जबकि जो ज्ञान सम्पूर्ण रूप से इस कार्य स्वरुप शरीर में ही आसक्त है वह तामसिक ज्ञान कहलाता है|
               जो कर्म शास्त्रोक्त और बिना कर्ता भाव के किया हुआ होता है ,बिना राग द्वेष के किया हुआ हो तथा बिना फल की कामना के किया हुआ हो वह कर्म सात्विक कहलाता है |परन्तु जो कर्म बहुत ही परिश्रम से युक्त हो तथा भोगों की चाहना से किये हुये हों तथा अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा किया जाता है वह कर्म राजस कहलाता है| जो कर्म परिणाम,हानि,हिंसा और सामर्थ्य का विचार किये बिना केवल अज्ञान से शुरू किया जाता है,वह कर्म तामस प्रकृति का कहा जाता है|
                 जो कर्ता संग रहित,अहंकार के वचन न बोलने वाला,धैर्य और उत्साह से युक्त तथा कार्य सिद्ध होने या न होने पर हर्ष-शोकादि विकारों से रहित है ,वह सात्विक कहा जाता है|जब कर्ता आसक्ति से युक्त हो,कर्मों का फल चाहने वाला  और लोभी हो तथा दूसरों को कष्ट देने वाला ,अशुद्धाचारी और हर्ष-शोकादि से लिप्त हो , वैसे कर्ता को राजस कहा जाता है|जो कर्ता अयुक्त शिक्षा से रहित ,घमंडी,धूर्त और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करनेवाला,आलसी हो -उस कर्ता को तामसिक  कर्ता कहा जाता है|
                                   इस प्रकार गीता के १८ वे अध्याय में भगवान ने बुद्धि,धृति,सुख आदि को भी इन तीनो गुणों से युक्त बताया है|इन सभी गुणों का प्रभाव जब जीवात्मा के साथ हो जाता है ,तब पुनर्जन्म होना निश्चित है|अगर पुनर्जन्म से बचना है,इस भौतिक संसार में आने और जाने के इस चक्र से मुक्ति पानी है तो पहले इन गुणों का संग छोडना होगा |गुणों का उलंघन कर जाने से जीवात्मा पर इनका प्रभाव समाप्त हो जाता है|इसी अवस्था को प्राप्त करने का नाम ही गुणातीत हो जाना है| जब आत्मा गुणातीत अवस्था को प्राप्त कर लेती है तब उसका परमात्मा में विलीन होना कहा जा सकता है|परमात्मा भी तो गुणातीत है|
                                           गीता में कहीं भी नहीं कहा गया है कि पदार्थो का भोग जो कि इन्द्रियों के माध्यम से किया जाता है ,गलत है|परन्तु इन भोगों के विषयों का सदैव चिंतन करते रहना,इनको पाने का प्रयास करना आदि गलत है |ये सब व्यक्ति की बुद्धि का नाश करने वाले है जिनसे व्यक्ति के संस्कार परिवर्तित हो जाते है और जीवात्मा पुनर्जन्म के लिए बाध्य हो जाती है|
क्रमश:
                        || हरि शरणम् || 

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