Monday, August 19, 2013

पुनर्जन्म - क्यों?-कारण-१

                अभी तक हमने "पुनर्जन्म एक वास्तविकता है या अवधारणा" ,इस विषय पर चर्चा की, जिसका निष्कर्ष यह सामने आया  कि पुनर्जन्म एक वास्तविकता है ,मात्र अवधारणा नहीं|तत्पश्चात" पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार"में हमने जाना कि मन,बुद्धि ,अहंकार और आत्मा मात्र कोरी कल्पना नहीं है|विज्ञानं के आधार पर शरीर तो लगभग सम्पूर्ण रूप से समझा जा चूका है|परन्तु मन,बुद्धि के बारे में विज्ञान  की शोध अभी शुरूआती दौर में ही है|आत्मा के बारे में विज्ञानं को अभी कुछ भी हासिल नहीं हुआ है|कुछ पुनर्जन्म के मामले जरूर विज्ञानं के सामने हैं परन्तु विज्ञानं अभी भी उसे मानसिक समस्या ज्यादा मान रहा है,और मनोचिकित्सा विभाग इस पर कार्यरत है|अमेरिका के मनोचिकित्सक डॉ.ब्रायन विज ने पुनर्जन्म पर काफी शोध किया है और वे मानते भी हैं कि पुनर्जन्म एक वास्तविकता है|
                  पुनर्जन्म जब एक वास्तविकता है तो हमें अब यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि इसके क्या  कारण है और यह होता किस प्रकार से है|इसे जानने के पूर्व शरीर,मन,बुद्धि ,अहंकार और आत्मा को जानना जरुरी है|इसी कारण से अल्प रूप से इनके बारे में हम पूर्व में चर्चा कर चुके हैं तथा जान और समझ चुके है|
    गीता में भगवान क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग नामक १३ वें  अध्याय में अर्जुन को पुनर्जन्म का कारण बताते हैं-
                                        पुरुषः प्रकृतिस्थो भुक्त्ते प्रकृतिजान्गुणान्  |
                                        कारणं  गुणसंगोSस्य   सदसद्योनिजन्मसु || गीता १३/२१ ||
अर्थात् ,प्रकृति में स्थित ही पुरूष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है और इन गुणों का संग ही इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण है|
                            इस भौतिक संसार में जितने भी पदार्थ है वे तीन गुणों से युक्त है-सत,राजस और तामस|गीता के गुणत्रय विभाग योग नामक १४ वें अध्याय में इन पदार्थों का विस्तृत विवरण दिया गया है|श्री कृष्ण कहते है कि यहाँ प्रत्येक व्यक्ति यानि जीवात्मा  इन त्रिगुणों से युक्त पदार्थों को भोगता है,क्योंकि यहाँ पर यही पदार्थ उपलब्ध है|भोगना कोई गलत नहीं है,बल्कि इन पदार्थों के गुणों को आत्मसात कर लेना ही गलत है | इसी के कारण व्यक्ति की आसक्ति इन गुणों में हो जाती है,और वह इन पदार्थों को पाने को सदैव लालायित रहता है|इन पदार्थों को भोगते रहने से जो आसक्ति उत्पन्न होती है,उसके कारण से जीवात्मा हमेशा उनको पाने के प्रयास में रहती है और भोग से कभी भी तृप्त नहीं होती है|यह अतृप्ति ही शरीर के मरणोपरांत जीवात्मा को नए शरीर को पाने के लिए विवश कर देती है|
                                जब जीवात्मा इन गुणों को भोगते भोगते इनका संग कर लेती है,तब दिन रात उन्हीं का चिंतन करती रहती है|जिसके कारण न तो अपने मूल स्वरूप को समझ पाती है और न ही सही और गलत का निर्णय कर पाती है|इन त्रिगुणों से युक्त पदार्थों को ही जीवन का वास्तविक सत्य समझने लगाती है और उनके भोग में ही आनंद का अनुभव करने लगती है |इस संसार में परमात्मा को सत्य जानने के स्थान पर भोगों को ही सत्य मानने लगती है|उसका यह मानना मृत्यु पर्यंत चलता रहता है|जिसके कारण ही जीवात्मा को इस भौतिक शरीर की मृत्यु उपरांत भी नए शरीर को पाने और उन्ही पदार्थों को फिर से भोगने की लालसा बनी रहती है|  गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
                                    यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् |
                                    तं  तमेवैति   कौन्तेय   सदा   तद्भावभावितः || गीता८/६ ||
अर्थात् , हे कुन्तीपुत्र अर्जुन,यह मनुष्य अन्त काल में जिस जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है,उस उस को ही वह प्राप्त होता है क्योंकि इसी भाव से भावित रहा है ,यानि इन्हीं की सोच में सदैव डूबा रहा है|
                              इस प्रकार हम समझ सकते है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति के अपने जीवन में विचारों और कार्यों की शुद्धता किस प्रकार की होनी चाहिए|एक बात तो निश्चित तौर पर समझ लेनी चाहिए कि पुनर्जन्म तो किसी भी परिस्थिति में होना ही  है ,उससे आप एक दो प्रयास में बच नहीं सकते|कई जन्म लग जाते हैं ,परमात्मा की स्थिति प्राप्त करने में|व्यक्ति के नियंत्रण में जन्म दर जन्म अपनी स्थिति में सुधार करना ही है|यह सुधार अपने भावों और भोगों पर नियंत्रण से ही संभव है|जिससे शारीरिक मृत्यु के समय किसी भी भोग की कामना मन में शेष न रहे|
क्रमश:
                                  || हरि शरणम् || 

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