Wednesday, August 14, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:२९|आत्मा-५|

क्रमश:
                पराचुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र इस ब्लैक हॉल के चारों और असीमित(Unlimited) विस्तार लिए हुये उपस्थित होता है|इसे हम वैज्ञानिक भाषा में तो MICRO MAGNETIC FIELD कहते है और आध्यात्मिकता के अनुसार इसे परमब्रह्म परमात्मा(Supreme Brain / Cosmic Consciousness)  कहते है|चूँकि हम अपने शास्त्रों में उल्लेखित  को विज्ञानं के आधार पर सत्य साबित कर रहे है ,अतः ज्यादा शब्दावली विज्ञानं की भाषा की काम में लेंगे|इस ब्रह्माण्ड या सृष्टि के निर्माण में निम्न तीन का महत्वपूर्ण योगदान रहता है|उनका उत्पादन सृष्टि के प्रारंभ में किस प्रकार हुआ,यह जानना आवश्यक है|
पदार्थ का निर्माण ----(MATERIAL)
                    इस क्षेत्र के कारण जब अंतरिक्ष(SPACE) में स्पंदन (VIBRATIONS) पैदा होंना शुरू हुये तब उर्जा (ENERGY) पैदा हुई|यह उर्जा उत्पादित और संग्रहित(Production and collection) होती रही|यह उर्जा अम्बा या शक्ति(POWER) नाम से शास्त्रों में वर्णित है,जो इस GOD की माँ है|इसी उर्जा से ईश्वर पैदा हुआ जिसे लेटिन भाषा में ईथर कहा जाता है|यह ईश्वर परम पुरुष है| इस परम पुरुष ने प्रकृति के प्रभाव से तीन गुण धारण किये ,जो इलेक्ट्रौन,प्रोटोन और न्यूट्रोन कहलाते है|इन तीनो के मिलने से परमाणु पैदा हुये|इन्ही से फिर अणु,तत्व यौगिक की यात्रा करते हुये पदार्थ का निर्माण हुआ|जब पदार्थ पैदा हुआ ,तो स्वाभाविक है उसमे भार या मात्रा (Mass)भी होगी|उसके कारण उसमे गुरुत्व (Gravity)पैदा होना ही था|तब इनमे कर्षण (कृष्ण) बल पैदा हुआ|कर्षण का अर्थ होता है बांधना |आकर्षण और विकर्षण बालों के कारण ये पदार्थ पिंडों(Planets) के रूप में परिवर्तित हो गए|और एक दूसरे से दूर होते गए|तब स्थायित्व के लिए अप और अभि केंद्रित(Centripetal and Centrifugal force) बलों का प्रादुर्भाव हुआ और ये पिण्ड एक बड़े पिण्ड(Sun) के चारों और चक्कर लगाने लगे|इस प्रकार पदार्थ से सौर मंडल(Solar system),सौर मंडलों से निहारिकाये(Milky ways) और निहारिकाओं से समस्त ब्रह्माण्ड(Universe) यानि सृष्टि का निर्माण हुआ|
प्रकृति से शरीर निर्माण ----(NATURE & BODY)
                      इसके बाद ईश्वर का रूप बदलता है|अब वह रासायनिक ईथर बनकर कार्बनिक पदार्थों(Organic compounds) की रचना करता है|रासायनिक ईथर को महेश्वर कहते है और कार्बनिक पदार्थ को महतत्व|महेश्वर,महतत्व के माध्यम से इस भौतिक शरीर का निर्माण करते है|ये शरीर फिर दो तरह से विभक्त (Divide)किये जा सकते है-१.कर्म निष्ठ (Faith in Act)२. सांख्य निष्ठ(Faith in principles)|कर्म निष्ठ पशु(Animal) शरीर है और सांख्य निष्ठ मानव(Human) शरीर|फिर मानव भी ऐसे ही दो भागों में बांटे जा सकते है-एक कर्म निष्ठ मादा(फेमाले) रूप है और नर(मेल) रूप सांख्य निष्ठ|कर्म निष्ठ का अर्थ है कर्म में आस्था और सांख्य निष्ठ का अर्थ है सिद्धांतवादी|
आत्मा या चेतना का प्रादुर्भाव ----(SOUL)
                           अब इस स्तर पर आकर यह ईश्वर एक चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र पैदा करता है|यह परा चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव के कारण होता है|जैसे एक चुम्बक से दूर स्थित किसी लोहे की वस्तु में चुम्बकीय गुण पैदा हो जाते है,लगभग वैसा ही यहाँ मान सकते है|इसी को चेतना या आत्मा कहा जाता है|यह आत्मा की उपस्थिति का वर्णन तब का है जब सृष्टि का प्रादुर्भाव हो रहा होता है|बाद में इसकी गुणात्मकता (Characteristics) जन्मों (Births)और कर्मो(Acts) के अनुसार बदलती रहती है|इस आत्मा और शरीर के चुम्बकीय बलों के कारण एक तीसरा चक्र पैदा होता है ,जो एक तीसरी शक्ति की तरह कार्य करता है|इसे मन (Mind)कह सकते है|यही मन आत्मा के साथ भाव चक्र का निर्माण करता है जिसमे जीवन की अवधि में किये गए सभी क्रिया कलाप अंकित होते रहते है|इसको आप अपने जीवन में किये जा रहे सभी कार्यों के विवरण की सी.डी. कह सकते है|
                                इस तरह संक्षेप में हमने जाना कि कैसे ब्लैक हॉल के चारों और असीमित क्षेत्र में व्याप्त परा चुम्बकीय क्षेत्र से सृष्टि का निर्माण होता है|आत्मा उसकी एक ईकाई है,जिससे ही जीवन संभव होता है|इस आत्मा रुपी उर्जा के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है |श्वेताश्वतर उपनिषद् में (५.९)में कहा गया है--
                                          बालाग्रशतभागस्य शतधा कल्पित्स्य च |
                                         भागो जीवः स विज्ञेयः स चानन्त्याय कल्पते ||
अर्थात्,यदि बाल के अग्र भाग को एक सौ भागों में विभाजित किया जाये और फिर उनमे से प्रत्येक भाग को फिर एक सौ भागों में विभाजित किया जाये तो इसमे प्रत्येक भाग का माप ही आत्मा का परिमाप है|
                               इसी तरह निम्न श्लोक भी उपरोक्त श्लोक की बात की पुष्टि करता  है--
                                           केशाग्रशतभागस्य शतान्शः सादृशात्मक: |
                                          जीवः सूक्ष्मस्वरूपोंSयं संख्यातीतो हि चित्कण: ||
   अर्थात्,आत्मा के परमाणुओं के अनंत कण है जो माप में बाल की नोक के दस हजारवें भाग के बराबर है|
                    भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं-
                                           अजोSपि सन्नव्ययात्मा भूतानामिश्वरोSपि सन् |
                                           प्रकृतिं      स्वामधिष्ठाय   सम्भवाम्यात्ममायया || गीत४/६ ||
अर्थात्,मैं अजन्मा और अविनाशी स्वरुप होते हुये भी तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुये भी  अपनी प्रकृति को अधीन करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ|
      इस श्लोक के आधार पर सृष्टि के निर्माण का विवरण प्रस्तुत किया गया है|पूरा विवरण श्रीमद्भागवत महापुराण में उपलब्ध है|श्रीमद्भागवत गीता तो समस्त ग्रंथों का सर ( EXTRACT) है|गंभीरता से चिंतन करने पर ही इसमे उल्लेखित बातों की गहराई को समझा जा सकता है|अन्यथा यही सुनने को मिलता है कि बड़ा ही कठिन और न समझने में आने वाला ग्रन्थ है यह|
क्रमश:
                         || हरि शरणम् ||

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