क्रमश:
अहंकार का विकास गर्भावस्था के दौरान ही होता है|कुल २४ तत्व इस जीवन के लिए आवश्यक होते हैं|उनमे से बीस तत्वों से इस भौतिक शरीर का निर्माण गर्भवस्था के प्रथम तीन माह में ही सम्पूर्ण हो जाता है|तीन माह के पश्चात केवल शरीर का आकार और वजन बढ़ने का क्रम चलता है|जो २० तत्व इस दौरान शरीर निर्माण में में योगदान देते हैं ,वे सभी स्थूल प्रकृति के माने जाते है|ये २० तत्व है-पांच भौतिक तत्व या आधार तत्व यथा-पृथ्वी,आकाश,जल,अग्नि और वायु,पांच ज्ञानेन्द्रियाँ,पांच कर्मेन्द्रियाँ और पांच ज्ञानेन्द्रियों के विषय|तीन माह के पश्चात स्थूल प्रकृति में भी सूक्ष्मता का प्रादुर्भाव प्रारंभ होता है|यहाँ पर सबसे पहले मन और बुद्धि के विकास की शुरुआत होती है|जिससे शिशु को धीरे धीरे कुछ ज्ञान होना शुरू होता है|हालाँकि मन का विकास साथ में शुरू हो चूका होता है ,परन्तु जन्म तक यह सुषुप्त अवस्था में बना रहता है|मान और बुद्धि के विकास की शुरुआत होने के बाद अहम् अपना आकार(अहंकार) प्राप्त करना शुरू कर देता है| यहाँ ध्यान देने योग्य बात यही है कि बिना मन और बुद्धि के विकास की शुरुआत के अहंकार का विकास असंभव है|मन,बुद्धि और अहंकार तीनो ही ऐसे स्थूल प्रकृति में वे सूक्ष्म तत्व है जिनका विकास गर्भावस्था के तीन माह पश्चात शुरू होता है और जन्म के बाद भी लगातार यह विकास का क्रम जारी रहता है|
भ्रूण विज्ञानं (Embryology)के अनुसार केवल स्थूल भौतिक शरीर की निर्माण प्रकिया जानी और समझी जा सकती है,मन ,बुद्धि और अहंकार जैसे सूक्ष्म तत्वों की नहीं|जब अहंकार के विकास की शुरुआत होती है ,इसकी उपस्थिति का पहला संकेत माँ को १६-१८ सप्ताह के आस पास मिलने लगता है,जब बच्चे द्वारा की गयी पहली हरकत का आभास (Quickening)होता है|अगर इसमे देरी होती है तो मानसिक और शरीरिक विकास के कमजोर रहने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|इस सबकी एक निश्चित प्रक्रिया होती है|ज्योंही अहंकार के विकास का पहला चरण पूरा होता है,सुषुप्त पड़े मन पर उसका अंकन हो जाता है|जिसके फलस्वरूप बुद्धि का सक्रिय होना भी शुरू हो जाता है|मन,बुद्धि और अहंकार के तालमेल से गर्भस्थ शिशु में शरीरिक हलचल शुरू हो जाती है|धीरे धीरे वह हलकी मुस्कराहट के साथ दर्द आदि का अनुभव करने लगता है|उसके शरीर का जैविक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र(Bio electro magnetic field) माँ के क्षेत्र से तालमेल बैठा लेता है|ऐसी स्थिति में अब दोनों में से किसी के भी इस क्षेत्र में आये परिवर्तन को दोनों महसूस कर सकते है|उसी के अनुरूप गर्भस्थ शिशु व्यवहार करता है|
यहविकासशील अहंकार स्थूल प्रकृति का होते हुये भी शुरुआत में उदासीन होता है |पूर्ण अपरा प्रकृति का अहंकार गर्भावस्था में पैदा नहीं हो सकता है|अपरा प्रकृति का अहंकार जन्म लेने के बाद जब बालक सांसारिक गतिविधियों में रमने लगता है ,तब पैदा होना शुरू होता है और र्धीरे धीरे यह उदासीन अहंकार अदृश्य होने लगता है|गर्भावस्था में शरीर में अहम् भाव पैदा हुये बिना आगे जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती |अतः अहंकार शारीरिक विकास के लिए एक महत्व पूर्ण तत्व है|
जन्म के समय इस अहंकार का विकास अपने चरम पर होता है| बच्चे के जन्म लेते ही रोना इस अहंकार का प्रथम जीवित प्रदर्शन है|सामान्य प्रसव में बच्चे को परेशनियों का सामना करना पड़ता है,जिससे उसके अहंकार को चोट पहुंचती है,जिसकी परिणिति रोने के रूप में सामने आती है|मैं जनता हूँ कि आप इससे सहमत नहीं है और न ही हो सकते है|परन्तु वास्तविकता यही है|विज्ञानं इस प्रथम रूदन के कई कारण गिनाता है,जिसमे एक अति महत्वपूर्ण कारण बाहर के वातावरण की वायु के स्पर्श से उत्पन्न शारीरिक प्रतिक्रिया (Reflex)माना जाता है|परन्तु आंकड़े गवाह है कि सिजेरियन प्रसव जिसमे कोई बेहोशी की दवा माँ को सुंघाई नहीं गयी हो और ना ही सीधे खून में कोई दवा दी गयी हो,फिर भी शिशु सामान्य प्रसव की तुलना में औसत १/२ से १ मिनट देरी से रोता है,और इसके लिए भी शिशु रोग विशेषज्ञ को कुछ प्रक्रिया अपनानी पड़ती है|जबकि सामान्य प्रसव में किसी प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ती|यह मैं उन शिशुओं की बात कर रहा हूँ जो गर्भ में किसी भी तरह की Foetal distress से पीड़ित नहीं होते ,और न ही किसी जन्मजात विकृति से पीड़ित होते है|बिलकुल सामान्य शिशु और सामान्य प्रसव और सिजेरियन प्रसव(बिना किसी दवा के उपयोग के जो बच्चे की श्वास प्रक्रिया पर असर डालती हो) ही इसके लिए आधार लिया गया है|यह अंतर स्पष्ट करता है कि कोई अन्य कारण भी हो सकता है जिससे प्रथम रूदन प्रभावित होता हो|और भारतीय मनीषियों ने इसका एक मात्र कारण अहंकार को ही बताया है|यह अहंकार आगे जन्म के बाद कैसे कैसे रूप परिवर्तित करता है,यह देखना और जानना महत्वपूर्ण होगा|कल.......
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
अहंकार का विकास गर्भावस्था के दौरान ही होता है|कुल २४ तत्व इस जीवन के लिए आवश्यक होते हैं|उनमे से बीस तत्वों से इस भौतिक शरीर का निर्माण गर्भवस्था के प्रथम तीन माह में ही सम्पूर्ण हो जाता है|तीन माह के पश्चात केवल शरीर का आकार और वजन बढ़ने का क्रम चलता है|जो २० तत्व इस दौरान शरीर निर्माण में में योगदान देते हैं ,वे सभी स्थूल प्रकृति के माने जाते है|ये २० तत्व है-पांच भौतिक तत्व या आधार तत्व यथा-पृथ्वी,आकाश,जल,अग्नि और वायु,पांच ज्ञानेन्द्रियाँ,पांच कर्मेन्द्रियाँ और पांच ज्ञानेन्द्रियों के विषय|तीन माह के पश्चात स्थूल प्रकृति में भी सूक्ष्मता का प्रादुर्भाव प्रारंभ होता है|यहाँ पर सबसे पहले मन और बुद्धि के विकास की शुरुआत होती है|जिससे शिशु को धीरे धीरे कुछ ज्ञान होना शुरू होता है|हालाँकि मन का विकास साथ में शुरू हो चूका होता है ,परन्तु जन्म तक यह सुषुप्त अवस्था में बना रहता है|मान और बुद्धि के विकास की शुरुआत होने के बाद अहम् अपना आकार(अहंकार) प्राप्त करना शुरू कर देता है| यहाँ ध्यान देने योग्य बात यही है कि बिना मन और बुद्धि के विकास की शुरुआत के अहंकार का विकास असंभव है|मन,बुद्धि और अहंकार तीनो ही ऐसे स्थूल प्रकृति में वे सूक्ष्म तत्व है जिनका विकास गर्भावस्था के तीन माह पश्चात शुरू होता है और जन्म के बाद भी लगातार यह विकास का क्रम जारी रहता है|
भ्रूण विज्ञानं (Embryology)के अनुसार केवल स्थूल भौतिक शरीर की निर्माण प्रकिया जानी और समझी जा सकती है,मन ,बुद्धि और अहंकार जैसे सूक्ष्म तत्वों की नहीं|जब अहंकार के विकास की शुरुआत होती है ,इसकी उपस्थिति का पहला संकेत माँ को १६-१८ सप्ताह के आस पास मिलने लगता है,जब बच्चे द्वारा की गयी पहली हरकत का आभास (Quickening)होता है|अगर इसमे देरी होती है तो मानसिक और शरीरिक विकास के कमजोर रहने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|इस सबकी एक निश्चित प्रक्रिया होती है|ज्योंही अहंकार के विकास का पहला चरण पूरा होता है,सुषुप्त पड़े मन पर उसका अंकन हो जाता है|जिसके फलस्वरूप बुद्धि का सक्रिय होना भी शुरू हो जाता है|मन,बुद्धि और अहंकार के तालमेल से गर्भस्थ शिशु में शरीरिक हलचल शुरू हो जाती है|धीरे धीरे वह हलकी मुस्कराहट के साथ दर्द आदि का अनुभव करने लगता है|उसके शरीर का जैविक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र(Bio electro magnetic field) माँ के क्षेत्र से तालमेल बैठा लेता है|ऐसी स्थिति में अब दोनों में से किसी के भी इस क्षेत्र में आये परिवर्तन को दोनों महसूस कर सकते है|उसी के अनुरूप गर्भस्थ शिशु व्यवहार करता है|
यहविकासशील अहंकार स्थूल प्रकृति का होते हुये भी शुरुआत में उदासीन होता है |पूर्ण अपरा प्रकृति का अहंकार गर्भावस्था में पैदा नहीं हो सकता है|अपरा प्रकृति का अहंकार जन्म लेने के बाद जब बालक सांसारिक गतिविधियों में रमने लगता है ,तब पैदा होना शुरू होता है और र्धीरे धीरे यह उदासीन अहंकार अदृश्य होने लगता है|गर्भावस्था में शरीर में अहम् भाव पैदा हुये बिना आगे जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती |अतः अहंकार शारीरिक विकास के लिए एक महत्व पूर्ण तत्व है|
जन्म के समय इस अहंकार का विकास अपने चरम पर होता है| बच्चे के जन्म लेते ही रोना इस अहंकार का प्रथम जीवित प्रदर्शन है|सामान्य प्रसव में बच्चे को परेशनियों का सामना करना पड़ता है,जिससे उसके अहंकार को चोट पहुंचती है,जिसकी परिणिति रोने के रूप में सामने आती है|मैं जनता हूँ कि आप इससे सहमत नहीं है और न ही हो सकते है|परन्तु वास्तविकता यही है|विज्ञानं इस प्रथम रूदन के कई कारण गिनाता है,जिसमे एक अति महत्वपूर्ण कारण बाहर के वातावरण की वायु के स्पर्श से उत्पन्न शारीरिक प्रतिक्रिया (Reflex)माना जाता है|परन्तु आंकड़े गवाह है कि सिजेरियन प्रसव जिसमे कोई बेहोशी की दवा माँ को सुंघाई नहीं गयी हो और ना ही सीधे खून में कोई दवा दी गयी हो,फिर भी शिशु सामान्य प्रसव की तुलना में औसत १/२ से १ मिनट देरी से रोता है,और इसके लिए भी शिशु रोग विशेषज्ञ को कुछ प्रक्रिया अपनानी पड़ती है|जबकि सामान्य प्रसव में किसी प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ती|यह मैं उन शिशुओं की बात कर रहा हूँ जो गर्भ में किसी भी तरह की Foetal distress से पीड़ित नहीं होते ,और न ही किसी जन्मजात विकृति से पीड़ित होते है|बिलकुल सामान्य शिशु और सामान्य प्रसव और सिजेरियन प्रसव(बिना किसी दवा के उपयोग के जो बच्चे की श्वास प्रक्रिया पर असर डालती हो) ही इसके लिए आधार लिया गया है|यह अंतर स्पष्ट करता है कि कोई अन्य कारण भी हो सकता है जिससे प्रथम रूदन प्रभावित होता हो|और भारतीय मनीषियों ने इसका एक मात्र कारण अहंकार को ही बताया है|यह अहंकार आगे जन्म के बाद कैसे कैसे रूप परिवर्तित करता है,यह देखना और जानना महत्वपूर्ण होगा|कल.......
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
Good evening Tauji. I would like to know about man. According to me man jaise koi cheez nhi hoti ye sab hamare thinking or mind ki banai hui cheeze hai. As u know I dont believe in God. Becoz I think Their is superpower and that is our brain. Man ka bahana banake hum apne kaam taal dete hai. hamare body mai man naam ka koi organ nhi hota. Toh fir man kaise develop hota hai? God jo hai wo hamara imagination hai toh btai God jaise superpower ko hamare brain ne imagine karke logo God fearing bana diya fir Kaise mane ki God bada hai? I think if we are saying dont You have fear of God then we should answer no we dont becoz we should have fear of human and ourself as well.
ReplyDeleteI do agree with you that Ego develops from childhood becoz there is one thought: Jaha mai (EGO) hu waha hari nahi aur jaha hari hai waha mai (EGO) Nahi. And I think if we are saying we want to meet the Honesty then we should leave Ego, Anger, Greed and bad thinkng. But we cant live without these things.
Do you have any solution of this? And please define MAN.