Monday, August 26, 2013

पुनर्जन्म-क्यों?कारण-५|

क्रमश:
       गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
                              यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् |
                              तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः || गीता ८/६ ||
अर्थात्,हे कुन्तीपुत्र अर्जुन!यह मनुष्य अंतकाल में जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है ,वह उस उसको ही प्राप्त होता है;क्योंकि वह सदा उस भाव से भावित रहा है|
                      इस श्लोक पर पहले भी चर्चा की जा चुकी है,आज इससे जुडा प्रसंग आज यहाँ हरि शरणम् आश्रम में प्रवचन में सुनने को मिला|  जिसे आप के साथ बांटने से अपने आप को रोक नहीं पाया|यह प्रसंग श्री राम कृष्ण परमहंस के अंतिम समय का है|जब स्वामी रामकृष्ण परमहंस इस भौतिक संसार से विदा होने लगे ,तब शिष्यों ने पूछा कि जब आप स्वर्ग पहुंचेंगे तो इसका पता हमें कैसे चलेगा?परम हंस ने कहा-'स्वर्ग के द्वार पर एक बड़ा सा घंटा लगा है|मै उसमे प्रवेश से पहले उसे बजाऊंगा|जब वह बजेगा तभी यहाँ के इस मंदिर का घंटा अपने आप बज उठेगा,तब समझ लेना कि मुझे स्वर्ग में प्रवेश मिल चूका है |' थोड़ी देर बाद ही स्वामीजी ने अपने प्राण त्याग दिए|३-४ घंटे बीत गए|मंदिर का घंटा नहीं बजा |शिष्यों में व्याकुलता बढ़ने लगी|उन्होंने सोचा-हो सकता है उन्हें प्रवेश मिला न हो,या यह स्वर्ग की केवल कल्पना ही हो|जब शिष्यों में व्याकुलता ज्यादा ही बढ़ गयी तब सभी स्वामी विवेकानंद के पास पहुंचे और उन्हें अपनी व्याकुलता बताई|विवेकानंद ने थोड़ी देर के लिए आँखें मूंदी|फिर एक शिष्य को पास ही खड़े आम के पेड़ पर पीले पके हुये आम की तरफ इशारा कर उसे तोड़ कर लाने को कहा|आम के आते ही उसका छिलका उतरा गया|अंदर एक कीडा(लट) आम का रसास्वादन कर रही थी|विवेकानंद ने कहा-ये रहे अपने गुरूजी|स्वामी रामकृष्ण परमहंस को आम खाने का बड़ा शौक था|मरते वक्त उनकी निगाहें पके आम पर टिकी थी|उसी समय उनका शरीर छूट गया|चूंकि अंतकाल में वे आम का स्मरण कर रहे थे,अतः उन्होंने पुनर्जन्म पाकर एक कीड़े  के रूप में आकर आम का रसास्वादन किया| कहते हैं कि जब उस लट को आम से निकाल दिया गया  तब  वो मर गयी|उसके मरते ही मंदिर का घंटा अपने आप बज उठा यानि स्वामी रामकृष्ण परमहंस की आत्मा को स्वर्ग में प्रवेश मिल गया|
                                    यह घटना कहाँ तक सत्य है, मैं कह नहीं सकता|परन्तु इससे यही सन्देश मिलता है कि अंतकाल में व्यक्ति जिस भाव का स्मरण करते हुये यह देह त्यागता है,वह उसी को प्राप्त हो जाता है|अगर इसी प्रकार अन्त काल में भगवान का स्मरण किया जाये तो फिर उसे प्राप्त होंना भी संभव है|गीता में भगवान ने कहा भी है-
              अन्तकाले च मामेव स्मर्न्मुक्त्वा कलेवरम् |
              यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ||गीता ८/५||
अर्थात्, जो पुरुष अंतकाल में मुझको स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है,वह मेरे साक्षात् स्वरुप को प्राप्त होता है-इसमे कुछ भी संशय नहीं है|
                             ||   हरि शरणम् || 

No comments:

Post a Comment