Thursday, August 15, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:३०|आत्मा-६|

क्रमश:
                        गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते है -
                                अच्छेद्योSयमदाह्योSयमक्लेद्योSशोष्य एव च |
                                 नित्यः  सर्वगतः  स्थानुरचलोSयं सनातनः ||
                                 अव्यक्तोSयमचिन्त्योSयमविकार्योSयमुच्यते |
                                 तस्मादेवं  विदित्वैनं   नानुशोचितुमर्हसि ||गीता २/२४-२५ ||
अर्थात्,यह आत्मा अछेद्य है,अदाह्य है,अक्लेद्य है और अशोष्य है|यह आत्मा नित्य ,सर्वव्यापी,अचल,स्थिर रहने वाला और सनातन है|यह आत्मा अव्यक्त है,अचिन्त्य है और विकार रहित है|इसलिए हे अर्जुन!इस आत्मा को इस प्रकार जान लेने के बाद  इसके लिए किसी भी प्रकार का शोक करना उचित नहीं है|
          भगवान श्रीकृष्ण ने यह सब आत्मा के गुणधर्म (Characteristics ) बताये हैं|
आत्मा के गुणधर्म ---
(१)यह सनातन है|--- Forever.
(२)यह सर्व व्यापी है|--At every place.
(३)यह अव्यक्त है|-- Invisible.
(४)यह विकार रहित है|--No differentiation/knit and clean.
(५)यह अचिन्त्य है|--Not a subject for discussion.
(६) यह अछेद्य है | Unbreakable.
(७) यह अदाह्य है | Heat resistant.
(८) यह अशोष्य है | Not to dry.
                        उपरोक्त सभी गुणधर्म परम ब्रह्म परमात्मा के भी है जिसे वैज्ञानिक भाषा में परा चुम्बकीय क्षेत्र कहा जाता है|इस संसार में सभी जगह समानता नज़र आती है-अणु से लेकर विराट तक|चाहे आप इसे स्थूल में देख ले या सूक्ष्म में|एक छोटे से परमाणु से लेकर पूरी सृष्टि में एक समान|आत्मा से लेकर परम ब्रह्म परमात्मा में भी समानता|
                          जो भी गुण परमात्मा के हैं ,वे ही सभी गुण एक आत्मा में भी होते हैं|कही कोई विषमता नहीं है|गीता में श्रीकृष्ण आत्मा के गुनातीत होने के सम्बन्ध में कहते है-
                                     यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्येते |
                                     सर्वत्रावस्थितो देहे तथात्मा नोपलिप्येते || गीता १३/३२ ||
अर्थात्,जिस प्रकार सर्वत्र व्याप्त आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता,वैसे ही देह में सर्वत्र स्थित आत्मा निर्गुण होने के कारण देह के गुणों में लिप्त नहीं होता|
                                         आत्मा इस नश्वर शरीर में रहते हुये भी इस शरीर के गुणों को आत्मसात नहीं करती है|इसी तरह गुणातीत परमब्रह्म परमात्मा भी है,जिसके बारे में कहते है-
                                    अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्ययः   |
                                     शरीरोस्थो  पि  कौन्तेय न् करोति न लिप्येते || गीता १३/३१ ||
 अर्थात्, हे अर्जुन!अनादि और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता  है और न ही लिप्त होता है|
                            उपरोक्त दोनों श्लोकों का गंभीरता से चिंतन करने से दो बातें एक दम स्पष्ट हो जाती है|पहली तो यह कि आत्मा और परमात्मा के गुणधर्म समान है|और दूसरी अत्यंत ही महत्वपूर्ण बात कि शरीर में स्थित आत्मा ही वास्तव में परमात्मा ही है|बहुत ही कम लोग इसको मानते हैं ,जबकि जानते सभी है| अगर मानते तो फिर परमात्मा को ढूंढने के लिए कहीं भी भटकने की आवश्यकता नहीं है|कबीर  ने कहा भी है-
                                ज्यों तिल मांही तेल है,ज्यूँ चकमक में आग |
                                तेरा  सांई   तुझी  में  है,  जाग सके तो जाग ||
                                  कस्तूरी कुन्डली बसे,मृग ढूंढें बन माहीं |
                                   ऐसे घटि घटि राम है,दुनियां देखे नाहीं ||
                          इसी को विज्ञानं के तहत देखें तो पराचुम्बकीय क्षेत्र ही परमब्रह्म परमात्मा है ,और उसी के द्वारा बनाया गया चुम्बकीय क्षेत्र ही आत्मा है|दोनों के भी गुणधर्म समान है |
                           भूमिरापोSनलो     वायु: खं  मनो बुद्धिरेव च |
                           अहंकार  इतीयं  में   भिन्ना     प्रकृतिरष्टधा ||
                           अपरेयमितस्त्वन्याँ मे प्रकृतिं विद्धि में पराम् |
                          जीवभूतां   महाबाहो    ययेदं    धार्यते     जगत् ||गीता ७/४-५||
अर्थात्,पृथ्वी,जल, अग्नि ,वायु, आकाश,मन बुद्धि और अहंकार ये आठ मेरी अपरा ,जड़ यानि स्थूल प्रकृति है और दूसरी प्रकृति जिससे यह सम्पूर्ण जगत धारण किया जाता है,मेरी जीवरूपा परा अर्थात सूक्ष्म प्रकृति चेतन  या आत्मा जान|
यह श्लोक स्पष्ट करता है कि जो भी इस संसार में है,सब उसके कारण ही है|उसके बिना कुछ भी संभव नहीं है|
क्रमश:
                              || हरि शरणम् ||
                                           

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