क्रमश:
आत्मा के बारे में दो बातें स्पष्ट हो चुकी है-पहली तो यह कि आत्मा ,परमात्मा का अंश है और दूसरी यह कि आत्मा सब में समान होती है|आत्मा परमात्मा का ही अंश है ,और यह शरीर में उपस्थित रहने वाली एक मात्र परा यानि सूक्ष्म(Micro) प्रकृति की है|शरीर में बाकी बचे २३ तत्व सब अपरा यानि स्थूल(Macro) प्रकृति के होते है|गीता में भगवान कहते हैं कि "अहमात्मा गुडाकेश ..."अर्थात् हे गुडाकेश (नींद को जीतनेवाला) ,हे अर्जुन ,मैं ही आत्मा हूँ जो सभी जीवों में समान रूप(Equal) से स्थित हूँ|यह आत्मा ,परमात्मा का अंश(Part) अलग होकर शरीर में प्रवेश करता है,तब तो अकेली इस धरा पर ही असंख्य जीव जन्तु रहते है|सब में वही एक समान परमात्मा का अंश आत्मा ही रहती है|अब प्रश्न यह उठता है कि फिर परमात्मा को ऐसे कितने अंशो में विभक्त (Divide)किया जा सकता है?फिर कभी ना कभी तो परमात्मा ऐसी स्थिति में आ जायेगा कि उसके और अंश नहीं किये जा सके|
वृहदारण्यक उपनिषद् में कहा गया है-
पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
अर्थात्,वह भी पूर्ण है|यह भी पूर्ण है|पूर्ण में पूर्ण जोड़ने पर जो योग बनता है वह भी पूर्ण है|अगर पूर्ण में से पूर्ण निकालने पर निकाला गया भी पूर्ण है और जो भी शेष बचता है ,वह भी पूर्ण है|
उपनिषद् के इस श्लोक से स्पष्ट है कि परमात्मा के कितने भी अंश कर लिए जाये,तो वह अंश भी पूर्ण होगा और परमात्मा की पूर्णता में भी कोई कमी नहीं होगी|चाहे कितनी ही पूर्ण आत्माएं परमात्मा में विलीन हो जाये फिर भी परमात्मा पूर्ण ही रहेगा|
यह तो हो गयी गीता और उपनिषद् जैसे सनातन धर्मशास्त्रों की बात|जिनसे स्पष्ट होता है कि आत्मा ,परमात्मा की छोटी से छोटी ईकाई(Unit) का नाम है|अब हम इसी सन्दर्भ में विज्ञानं की बात करते हैं|इस संसार में जो भी हमें नज़र आता है या यहाँ जो भी अस्तित्व में है उनको स्पष्टतः दो भागों में बांटा जा सकता है-चेतन (Conscious) और अचेतन (Unconscious)| इनको और स्पष्ट करते हुये कहा जा सकता है कि पहला भाग जिसे चेतन कहते है वह है शरीर(Living Body) और दूसरे भाग को जिन्हें हम अचेतन कहते है ,वह है पदार्थ(Material)|तीसरी किसी भी वस्तु का इस ब्रह्माण्ड(Universe) में अस्तित्व नहीं है| चेतन को फिर दो भागों में बांटा जा सकता है-स्व - चेतन ( Self Conscious) और स्व - अचेतन (Self Unconscious)| मनुष्य स्व-चेतन है क्योंकि उसे पता है कि मैं चेतन हूँ| क्योंकि वह जानता है कि वह इस संसार में क्यों है,कहाँ से आया है ,किस लिए आया है आदि आदि| वह स्वयं के बारे में जानता है|पशु,पक्षी व अन्य सभी स्व-अवचेतन में आते हैं क्योंकि उन्हें स्वयं क्या है इसका कुछ भी पता नहीं होता है|बस मात्र यही फर्क है,पशु और मानव होने में|अगर मानव यह सब नहीं जानता और समझता तो हम बेहिचक उस मानव को पशु की श्रेणी में रख सकते है|
शरीर ,विभिन्न अंगों(Organs) से मिलकर बना है|अंग अपने आप में पूर्ण है|अंग (Organ)उत्तकों(Tissues) से बने है|उत्तक भी अपने आप में पूर्ण है|उत्तक कोशिकाओं(Cells) से बनते है ,कौशिका भी अपने आप में पूर्ण है|इससे आगे अब कोशिका को विभक्त नहीं किया जा सकता|इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि शरीर की ईकाई कोशिका है|ठीक उसी तरह जैसे परमात्मा की ईकाई आत्मा है|
पदार्थ,अपने आप में पूर्ण है|पदार्थ कई यौगिकों(Compounds) का मिश्रण है|यौगिक अपने आप में पूर्ण है|यौगिक,विभिन्न तत्वों (Elements)के मिलाने से बनता है;तत्व भी अपने आप में पूर्ण है|तत्व,कई अणुओं(Molecules) के मिलाने से बनता है;अणु भी पूर्ण है|एक अणु भी परमाणुओं(Atoms) से मिलकर बनता है,परमाणु भी पूर्ण है|परमाणु को अब आगे और विभक्त नहीं किया जा सकता|अतः पदार्थ की ईकाई परमाणु हुई|जैसे परमात्मा की ईकाई आत्मा होती है|कहा जा सकता है कि परमाणु को भी आगे विभक्त किया जा चूका है,परन्तु ऐसा प्राकृतिक (Natural)तौर पर होंना असंभव है|अगर प्रयोगशाला(Laboratory) या परमाणु संयंत्रों(Atomic power station) में इसे तोडा भी जाता है तो उससे अत्यधिक उर्जा(Energy) उत्पन्न होती है और खतरनाक रेडियोधर्मिता(Radioactivity) पैदा हो जाती है,जो जीवन के लिए महान संकट पैदा करने वाली परिस्थिति होती है|
शरीर या पदार्थ ,दोनों की ही प्रकृति अपरा मानी गयी है,अतः इनकी भी इकाइयां अर्थात् कोशिका और परमाणु की प्रकृति भी अपर यानि स्थूल हुई|जबकि आत्मा को इनसे पर यानि सूक्ष्म कहा गया है|अतः यह स्पष्ट है कि आत्मा न तो एक कौशिक हो सकती है और न ही एक परमाणु|इन दोनों से आत्मा सूक्ष्म ही होगी,क्योंकि इसकी प्रकृति भी परा यानि सूक्ष्म है|कोशिका व परमाणु से सूक्ष्म क्य हो सकता है,जिसको आत्मा माना जा सकता है ,यही अब चिंतन का विषय है|तभी आत्मा के बारे में जाना जा सकता है|और जब आत्मा को जान सकेंगे तो फिर परमात्मा को जानने की कोई आवश्यकता भी नहीं है|क्योंकि जो आत्मा में है वही परमात्मा में होगा|आत्मा में और परमात्मा में कोई अंतर नहीं है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
आत्मा के बारे में दो बातें स्पष्ट हो चुकी है-पहली तो यह कि आत्मा ,परमात्मा का अंश है और दूसरी यह कि आत्मा सब में समान होती है|आत्मा परमात्मा का ही अंश है ,और यह शरीर में उपस्थित रहने वाली एक मात्र परा यानि सूक्ष्म(Micro) प्रकृति की है|शरीर में बाकी बचे २३ तत्व सब अपरा यानि स्थूल(Macro) प्रकृति के होते है|गीता में भगवान कहते हैं कि "अहमात्मा गुडाकेश ..."अर्थात् हे गुडाकेश (नींद को जीतनेवाला) ,हे अर्जुन ,मैं ही आत्मा हूँ जो सभी जीवों में समान रूप(Equal) से स्थित हूँ|यह आत्मा ,परमात्मा का अंश(Part) अलग होकर शरीर में प्रवेश करता है,तब तो अकेली इस धरा पर ही असंख्य जीव जन्तु रहते है|सब में वही एक समान परमात्मा का अंश आत्मा ही रहती है|अब प्रश्न यह उठता है कि फिर परमात्मा को ऐसे कितने अंशो में विभक्त (Divide)किया जा सकता है?फिर कभी ना कभी तो परमात्मा ऐसी स्थिति में आ जायेगा कि उसके और अंश नहीं किये जा सके|
वृहदारण्यक उपनिषद् में कहा गया है-
पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
अर्थात्,वह भी पूर्ण है|यह भी पूर्ण है|पूर्ण में पूर्ण जोड़ने पर जो योग बनता है वह भी पूर्ण है|अगर पूर्ण में से पूर्ण निकालने पर निकाला गया भी पूर्ण है और जो भी शेष बचता है ,वह भी पूर्ण है|
उपनिषद् के इस श्लोक से स्पष्ट है कि परमात्मा के कितने भी अंश कर लिए जाये,तो वह अंश भी पूर्ण होगा और परमात्मा की पूर्णता में भी कोई कमी नहीं होगी|चाहे कितनी ही पूर्ण आत्माएं परमात्मा में विलीन हो जाये फिर भी परमात्मा पूर्ण ही रहेगा|
यह तो हो गयी गीता और उपनिषद् जैसे सनातन धर्मशास्त्रों की बात|जिनसे स्पष्ट होता है कि आत्मा ,परमात्मा की छोटी से छोटी ईकाई(Unit) का नाम है|अब हम इसी सन्दर्भ में विज्ञानं की बात करते हैं|इस संसार में जो भी हमें नज़र आता है या यहाँ जो भी अस्तित्व में है उनको स्पष्टतः दो भागों में बांटा जा सकता है-चेतन (Conscious) और अचेतन (Unconscious)| इनको और स्पष्ट करते हुये कहा जा सकता है कि पहला भाग जिसे चेतन कहते है वह है शरीर(Living Body) और दूसरे भाग को जिन्हें हम अचेतन कहते है ,वह है पदार्थ(Material)|तीसरी किसी भी वस्तु का इस ब्रह्माण्ड(Universe) में अस्तित्व नहीं है| चेतन को फिर दो भागों में बांटा जा सकता है-स्व - चेतन ( Self Conscious) और स्व - अचेतन (Self Unconscious)| मनुष्य स्व-चेतन है क्योंकि उसे पता है कि मैं चेतन हूँ| क्योंकि वह जानता है कि वह इस संसार में क्यों है,कहाँ से आया है ,किस लिए आया है आदि आदि| वह स्वयं के बारे में जानता है|पशु,पक्षी व अन्य सभी स्व-अवचेतन में आते हैं क्योंकि उन्हें स्वयं क्या है इसका कुछ भी पता नहीं होता है|बस मात्र यही फर्क है,पशु और मानव होने में|अगर मानव यह सब नहीं जानता और समझता तो हम बेहिचक उस मानव को पशु की श्रेणी में रख सकते है|
शरीर ,विभिन्न अंगों(Organs) से मिलकर बना है|अंग अपने आप में पूर्ण है|अंग (Organ)उत्तकों(Tissues) से बने है|उत्तक भी अपने आप में पूर्ण है|उत्तक कोशिकाओं(Cells) से बनते है ,कौशिका भी अपने आप में पूर्ण है|इससे आगे अब कोशिका को विभक्त नहीं किया जा सकता|इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि शरीर की ईकाई कोशिका है|ठीक उसी तरह जैसे परमात्मा की ईकाई आत्मा है|
पदार्थ,अपने आप में पूर्ण है|पदार्थ कई यौगिकों(Compounds) का मिश्रण है|यौगिक अपने आप में पूर्ण है|यौगिक,विभिन्न तत्वों (Elements)के मिलाने से बनता है;तत्व भी अपने आप में पूर्ण है|तत्व,कई अणुओं(Molecules) के मिलाने से बनता है;अणु भी पूर्ण है|एक अणु भी परमाणुओं(Atoms) से मिलकर बनता है,परमाणु भी पूर्ण है|परमाणु को अब आगे और विभक्त नहीं किया जा सकता|अतः पदार्थ की ईकाई परमाणु हुई|जैसे परमात्मा की ईकाई आत्मा होती है|कहा जा सकता है कि परमाणु को भी आगे विभक्त किया जा चूका है,परन्तु ऐसा प्राकृतिक (Natural)तौर पर होंना असंभव है|अगर प्रयोगशाला(Laboratory) या परमाणु संयंत्रों(Atomic power station) में इसे तोडा भी जाता है तो उससे अत्यधिक उर्जा(Energy) उत्पन्न होती है और खतरनाक रेडियोधर्मिता(Radioactivity) पैदा हो जाती है,जो जीवन के लिए महान संकट पैदा करने वाली परिस्थिति होती है|
शरीर या पदार्थ ,दोनों की ही प्रकृति अपरा मानी गयी है,अतः इनकी भी इकाइयां अर्थात् कोशिका और परमाणु की प्रकृति भी अपर यानि स्थूल हुई|जबकि आत्मा को इनसे पर यानि सूक्ष्म कहा गया है|अतः यह स्पष्ट है कि आत्मा न तो एक कौशिक हो सकती है और न ही एक परमाणु|इन दोनों से आत्मा सूक्ष्म ही होगी,क्योंकि इसकी प्रकृति भी परा यानि सूक्ष्म है|कोशिका व परमाणु से सूक्ष्म क्य हो सकता है,जिसको आत्मा माना जा सकता है ,यही अब चिंतन का विषय है|तभी आत्मा के बारे में जाना जा सकता है|और जब आत्मा को जान सकेंगे तो फिर परमात्मा को जानने की कोई आवश्यकता भी नहीं है|क्योंकि जो आत्मा में है वही परमात्मा में होगा|आत्मा में और परमात्मा में कोई अंतर नहीं है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
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