Tuesday, August 6, 2013

पुनर्जन्म का वैज्ञानिक आधार-एक परिकल्पना|क्रमश:२२|अहंकार-२|

क्रमश:
           अहंकार,एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में बहुत सारी भ्रान्तियां है|अहंकारी व्यक्ति को लोग अलग ही दृष्टि  से देखते हैं|लेकिन यह सब वास्तविकता से परे है|अहंकार संसार में जीवित रहने के लिए आवश्यक तत्व है गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
                                  महाभूतान्यहंकारो   बुद्धिरव्यक्त  मेव  च |
                                  इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचरा ||गीता१३/५||
अर्थात्,पांच महाभूत,दस इन्द्रियां,पांच इन्द्रियों के विषय,एक मन,बुद्धि,अहंकार और मूल प्रकृति आत्मा(अव्यक्त)यह सब इस शरीर में स्थित है|
        यहाँ भगवान क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग नामक १३ वें अध्याय में अर्जुन को यही समझा रहे हैं कि इस शरीर में उपरोक्त २४ तत्वों की उपस्थिति ही व्यक्ति को इस संसार में बने रहने के लिए आवश्यक है|इनमे किसी भी एक तत्व की  अनुपस्थिति व्यक्ति की जीवन शैली को प्रभावित कर सकती है|एक इन्द्रिय के सही कार्य न कर पाने से ही जब व्यक्ति विचलित हो जाता है ,तो उनसे भी सूक्ष्म मन और बुद्धि में विकार आने से उपस्थित होने वाली समस्याओं की सहज ही कल्पना की जा सकती है|मन बुद्धि से भी कोई अति सूक्ष्म है तो वह है अहंकार|अहंकार स्थूल प्रकृति का २३वां तत्व है|इससे सूक्ष्म आत्मा ही है ,जिसकी प्रकृति सूक्ष्म यानि परा प्रकृति कही गयी है|
                                       अहंकार की प्रकृति भी स्थूल और सूक्ष्म यानि अपरा और परा दोनों प्रकार की बताई गयी है|जब आपका अहंकार इस शरीर के कारण ,इन्द्रियों के कारण या इन्द्रियों के विषयों के कारण होता है तब यह अहंकार अपरा प्रकृति का हुआ|और यही अहंकार जब आत्मा और परमात्मा के कारण होता है ,तब यह परा यानि सूक्ष्म प्रकृति का माना जाता है|
                               किसी को अपनी सुंदरता पर ,किसी को अपने शारीरिक सौष्ठव पर,किसी को अपनी इन्द्रियों पर या इन्द्रियों के विषयों पर अभिमान होता है,तब जो अहंकार पैदा होता है वह निम्नतम प्रकृति का होता है|किसी का धन के कारण और किसी को अपनी बुद्धि पर गर्व होता है ,तो यह भी निम्न प्रकृति का माना जाता है|लेकिन यह अहंकार उसे जीवन जीने के लिए इस संसार में बने रहने के लिए आवश्यक है|यह अहंकार बिलकुल झूठा है(False Ego) क्योंकि जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं हो और उसका अभिमान हो तो फिर यह अहंकार झूठ ही तो हुआ|इस अहंकार के वशीभूत होकर व्यक्ति संसार में इतना रच बस जाता है कि इस चक्र से उसका निकलना मुश्किल हो जाता है|
                                  अगर यही अहंकार इस संसार में रहते हुये आत्मा और परमात्मा के लिए हो तो यह अहंकार सच्चा होगा(True Ego Or Self Ego)|यहाँ व्यक्ति यही मान लेता है कि परमात्मा ने जो यह शरीर दिया है वह इस संसार की सेवा के लिए दिया है,और मुझे यह शरीर संसार में जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित कर देना चाहिए|तब व्यक्ति के दिमाग में कभी भी यह नहीं आता कि यह कार्य केवल मैं ही कर सकता हूँ|बल्कि यह होगा कि इस कार्य के लिए परमात्मा ने मेरे को इस संसार में भेजा है तो जिस किसी की भी मेरे इस कार्य से सेवा हो सकती है,मुझे करनी चाहिए|यह अहंकार परमात्मा के प्रति होता है ,इसमे व्यक्ति को अपनी बुद्धि,धन इन्द्रियों अथवा शरीर पर अभिमान नहीं होता है|अतः यह अहंकार इस जीवन के लिए उपयोगी है और आवश्यक भी|कई बार इस संसार की सेवा करना या स्वयं को परमात्मा का मानने का भी अभिमान हो जाता है ,यह फिर अपरा पर्कृति के अहंकार की श्रेणी में आ जायेगा|अतः परमात्मा का स्वयं को मान लेना और संसार की सेवा में लग जाना और इतना करके कुछ भी नहीं किया या नहीं करता हूँ यह मान लेना ही सच्चा अहंकार है| यह अहंकार ही व्यक्ति के लिए आवश्यक है|
                                           ज्यादातर सांसारिक जीव झूठे अहंकार से ही जीवन जी रहे है,और जब इस अहंकार को चोट पहुंचती है तब एक प्रकार की छटपटाहट पैदा होती है जो व्यक्ति को आंतरिक रूप से  परिवर्तित कर सकती है|अगर यहाँ व्यक्ति, बुद्धि से कार्य लेते हुये अपने आप को परमात्मा का मान लेता है तो अपना भावी जीवन तत्काल बदल लेता है|अगर ऐसा करने में वह असफल रहता है तो उसमे फिर आत्महत्या कर लेने जैसी प्रवृति पैदा होने लगती है|मानसिक संताप की यह स्थिति व्यक्ति को कहीं भी और किधर भी ले जा सकती है|यह सब उसकी बुद्धि और विवेक पर निर्भर करता है| यहाँ उसे अर्जुन की तरह किसी कृष्ण की जरूरत होती है|परन्तु दुर्भाग्य,इस संसार में हर कोई अर्जुन नहीं है जिसे कृष्ण मिल सके|
   क्रमश:
                        || हरि शरणम् || 

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